कनाडा पढ़ने गए सैकड़ों भारतीय छात्रों पर डिपोर्ट होने का ख़तरा, क्या है पूरा मामला?

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DMT : कनाडा : (10 जून 2023) : –

  • सैकड़ों भारतीय छात्रों पर कनाडा आने के लिए फ़र्जी दस्तावेज़ इस्तेमाल करने का आरोप है.
  • इस कारण उन्हें कनाडा में स्थायी निवास मिल पाना मुश्किल है.
  • ये छात्र पढ़ाई करने के लिए कनाडा गए थे. इनमें से अधिकतर मामले 2016-17 के हैं.
  • इन छात्रों पर अब डिपोर्टेशन का ख़तरा मंडरा रहा है.
  • कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि उनका उद्देश्य अपराधियों की पहचान करना है, पीड़ितों को सज़ा देना नहीं.

कनाडा से डिपोर्ट होने के डर से जूझ रहे सैकड़ों भारतीय छात्रों के लिए कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का बयान एक उम्मीद लेकर आया है.

प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा, “हमारा उद्देश्य अपराधियों की पहचान करना है, न कि पीड़ितों को दंडित करना.”

ट्रूडो देश की संसद में एनडीपी नेता जगमीत सिंह के पूछे एक सवाल का जवाब दे रहे थे.

बता दें कि पढ़ाई पूरी कर चुके सैकड़ों भारतीय छात्रों पर कनाडा आने के लिए फ़र्जी दस्तावेज़ों का इस्तेमाल करने का आरोप है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कनाडा में स्थायी निवास नहीं दिया जा सकता है.

छात्रों ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है, उन्हें डिपोर्ट किया जा सकता है.

ये छात्र कनाडा के रोड एजेंटों के धोखे और अपने भविष्य को लेकर विरोध भी कर रहे हैं.

कनाडा की संसद में भारतीय छात्रों के मुद्दे

सरकार में सहयोगी दल एनडीपी के नेता जगमीत सिंह ने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री आव्रजन धोखाधड़ी के शिकार भारतीय छात्रों को स्थायी नागरिकता देने पर विचार करेंगे?

इस सवाल के जवाब में जस्टिन ट्रूडो ने कहा, “हर मामले का मूल्यांकन किया जाएगा और पीड़ितों को अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिया जाएगा.”

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उनका मकसद धोखाधड़ी के शिकार लोगों को सज़ा देना नहीं बल्कि दोषियों की पहचान करना है.

ट्रूडो के इस बयान के बाद प्रभावित छात्रों को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है.

इससे पहले कनाडा की कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद ब्रैड रेडेकोप ने भी कहा था कि देश में इमिग्रेशन कमेटी से अंतरराष्ट्रीय छात्र प्रस्ताव पारित किया गया है.

उन्होंने इसकी जानकारी देते हुए एक वीडियो जारी किया था और कहा था कि इस प्रस्ताव के पारित होने से कनाडा में पढ़ाई करने आए छात्रों को राहत मिलेगी और देश की नागरिकता लेने वालों को भी आसानी होगी.

अंतरराष्ट्रीय भारतीय छात्रों का मामला

कनाडा में सैकड़ों भारतीय छात्र हैं जिन पर फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के आधार पर इमिग्रेशन करने का आरोप है. इनमें से ज़्यादातर मामले 2016-17 के हैं.

पढ़ाई पूरी कर चुके इन छात्रों को कनाडा से डिपोर्ट किया जा सकता है.

छात्रों ने ख़ुद को बेकसूर बताया है. उनका आरोप है कि स्टडी वीज़ा के लिए आवेदन करने में उनकी मदद करने वाले एजेंटों ने उनके साथ धोखाधड़ी की है.

कनाडा में डिपोर्ट होने से बचने के लिए भारतीय छात्र विरोध कर रहे हैं.

ऐसे ही मामलों में शामिल एक वकील के मुताबिक़ फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के मामले में शामिल छात्रों की संख्या 150 से 200 हो सकती है.

पंजाब का एक ऐसा छात्र लवप्रीत सिंह है जिसे 13 जून को डिपोर्ट किया जा रहा है.

छात्रों का क्या है कहना?

इसी साल मार्च में बीबीसी संवाददाता विनीत खरे ने उन पंजाबी छात्रों से बात की जिन्हें कनाडा से डिपोर्ट किया जा सकता है.

इन छात्रों ने ख़ुद को बेकसूर बताया. उनका दावा है कि जालंधर में एक इमिग्रेशन कंसल्टेशन एजेंसी ने उनके साथ कथित तौर पर धोखाधड़ी की है.

जिन छात्रों से बीबीसी ने बात की उनका कहना है कि वो बेकसूर हैं और उन्हें जालंधर की एक इमिग्रेशन कंसल्टेशन एजेंसी ने कथित तौर पर धोखा दिया और उन्होंने ही ये दस्तावेज़ मुहैया करवाए थे. हालांकि क्या दूसरी एजेंसियां भी इस मामले में शामिल हैं, ये साफ़ नहीं.

इससे पहले अमेरिका की एक फ़र्ज़ी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के मामले में 100 से अधिक भारतीय छात्रों की गिरफ़्तारी की ख़बर ने तूल पकड़ा था.

बीबीसी से इन छात्रों में एक डिंपल ने कनाडा से फ़ोन पर बातचीत में कहा, “मेरे आंखों के आगे अंधेरा ही अंधेरा है. मैं न तो आगे जा सकती हूं और न ही पीछे जा सकती हूं.”

वो दिसंबर 2017 में स्टूडेंट वीज़ा पर कनाडा आई थीं. अब उनकी शादी हो चुकी है और उनके पति भारत में हैं.

मध्यमवर्गीय परिवार की डिंपल के घर में उनके तीन भाई-बहन हैं. पंजाब के जालंधर में रहने वाले उनके पिता दर्जी हैं, और मां गृहणी.

साइंस से मास्टर्स की पढ़ाई करने वाली डिंपल लंबे वक़्त से नौकरी तलाश रही थीं.

वो कहती हैं, “दो बार बैंक का इम्तिहान दिया. वो नहीं क्लीयर हुआ. उन सबसे तंग आकर मैंने यहां (कनाडा) का अप्लाई किया था, कि उधर तो कुछ होगा. इतनी पढ़ाई की है उसका तो फायदा होना चाहिए.”

डिंपल को उनके एक रिश्तेदार ने जालंधर की एजुकेशन ऐंड इमिग्रेशन सर्विसेज़ और इससे जुड़े ब्रजेश मिश्रा के बारे में बताया था.

वो कहती हैं, “उस समय वो बहुत इनोसेंट था, उन्होंने मेरे सारे दस्तावेज़ देखे थे.”

आख़िरकार उन्हें नवंबर 2017 में कनाडा का वीज़ा मिल गया.

कनाडा से फ़ोन कॉल पर वो कहती हैं, “उन्होंने मुझे बताया कि एक कॉलेज ने मेरे दस्तावेज़ों को स्वीकार लिया है और कॉलेज एडमिशन लेटर आ गया है.”

डिंपल ने कनाडा में कंप्यूटर नेटवर्किंग के कोर्स के लिए अप्लाई किया था जिसके लिए उन्होंने उस वक़्त 12 लाख रुपये नकद दिए. इसमें उनकी कॉलेज फ़ीस और अन्य खर्च शामिल था.

लेकिन कनाडा में आने के दो दिन के बाद ही डिंपल को बताया गया कि उनके कॉलेज में हड़ताल है और वो किसी दूसरे कॉलेज में अप्लाई करें. उनके पुराने कॉलेज की फ़ीस को वापस लौटा दिया गया.

डिंपल ने कनाडा में अपनी पढ़ाई 2019 में पूरी की. उन्हें वर्क परमिट भी मिला. लेकिन उन्हें तब झटका लगा जब मई 2022 में स्थायी निवासी की उनकी अर्ज़ी पर जवाब आया कि जिस कॉलेज को उन्होंने पहले चुना था उसका स्वीकृति पत्र फ़र्ज़ी था.

इसी स्वीकृति पत्र के आधार पर उन्हें भारत में कनाडा का छात्र वीज़ा और कनाडा में प्रवेश मिला था.

यह कैसे हुआ, इसे लेकर अभी भी कई सवाल हैं.

बाहर जाने का आदेश

डिंपल को इमिग्रेशन अधिकारियों से मिलने को कहा गया. फिर, इस साल जनवरी में एक सुनवाई के बाद, उन्हें ” एक्सक्लूशन आर्डर ” दिया गया.

एक्सक्लूशन आर्डर के तहत, आपको एक वर्ष के लिए कनाडा से बाहर भेजा जाता है. लेकिन अगर आपने अपने बारे में ग़लत जानकारी दी है तो आपको कनाडा से पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाता है.

इमिग्रेशन अधिकारियों से मुलाक़ात पर डिंपल कहती हैं, “इंटरव्यू के दौरान मैं इतनी डरी हुई थी कि कुछ भी नहीं बोली. मैंने सोचा कि मुझे तुरंत भारत डिपोर्ट कर दिया जाएगा.”

उन्होंने कनाडा के फ़ेडरल कोर्ट में इस आदेश को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है. उनके वकील जसवंत सिंह मंगत भी इसी तरह की स्थिति में फंसे कई छात्रों के वकील हैं.

उनका कहना है कि ज़्यादातर मामलों में भारी भरकम फ़ीस लेकर फ़र्ज़ी प्रवेश पत्र जारी किए गए. इन्हीं दस्तावेज़ों के आधार पर वीज़ा आवेदन जमा हुए और वीज़ा जारी हुए.

आख़िर हुआ क्या?

छात्रों के कनाडा आने के बाद या फिर कनाडा आने से ठीक पहले भारतीय आप्रवासन एजेंसी ने छात्रों से कहा कि वो किसी कारण अपना दाखिला किसी और कॉलेज में करवा लें.

बहुत सारे छात्रों ने नए कॉलेजों में अपने कोर्स पूरे किए, वर्क परमिट के लिए अप्लाई किया लेकिन जब उन्होंने पर्मानेंट रेज़िडेंसी के लिए आवेदन दिया तो तब उन्हें बताया गया कि उनके पूर्व कॉलेज के ऐडमिशन लेटर जाली हैं.

डिंपल पूछती हैं, “जब आप्रवासन अधिकारियों को हवाई अड्डों पर, वीज़ा जारी करते हुए ये नहीं पता चला कि दस्तावेज़ जाली हैं तो हमसे कैसे उम्मीद की जा रही है कि हमें ये पता चल जाए.”

हमने इस बारे में एजुकेशन ऐंड माइग्रेशन सर्विसेज़ और ब्रजेश मिश्रा से बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया.

कई अन्य छात्रों की उम्मीदों पर फिरा पानी

चमनदीप सिंह पंजाब के एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं और बेहतर जीवन की उम्मीद में कनाडा चले गए.

वे कहते हैं, “जब मैंने स्टूडेंट वीज़ा लेने की कोशिश शुरू की, तो मुझे सिस्टम के बारे में पता नहीं था, इसलिए मैंने एक एजेंट को हायर किया.”

“नहीं पता था कि वे ऐसे नकली दस्तावेज़ों का इस्तेमाल कर सकते हैं.”

उन्होंने कनाडा में इंजीनियरिंग कोर्स के लिए आवेदन किया और इसके लिए 14-15 लाख रुपये दिए. इसलिए उन्हें कर्ज़ लेना पड़ा.

इस पूरे प्रकरण पर उनका कहना है, “यहां का लाइफस्टाइल तो बेहतर है, लेकिन यहां भारत से ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है. दूर से लगता है की यहां बहुत पैसा है, अब ऐसा नहीं है. आपको सही एजेंट चुनना होगा.

वो कहते है, “जब हम जालंधर जाते थे, एजेंट हर जगह दिखाई देते थे, लेकिन हम उस एजेंसी के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने हमारी फ़ाइल तैयार की है.”

चमनदीप कहते हैं, “मेरा सपना था कि लाइफ़स्टाइल अच्छी होगी. ख्वाब और हक़ीक़त में बड़ा फ़र्क़ होता है.”

इस पूरे प्रकरण से चमनदीप समेत कई छात्रों की उम्मीदें टूट गई हैं. ये छात्र व्हाट्सएप ग्रुप पर संपर्क में रहते हैं.

अंतरराष्ट्रीय छात्र प्रस्ताव

संसद में कनाडा की कंज़र्वेटिव पार्टी के सांसद ब्रैड रेडेकोप ने कहा कि देश में इमिग्रेशन कमेटी से इंटरनेशनल स्टूडेंट प्रपोज़ल पास किया गया है.

उन्होंने इसकी जानकारी देते हुए एक वीडियो जारी कर कहा था कि इस प्रस्ताव के पारित होने से कनाडा में पढ़ाई करने आए छात्रों को राहत मिल सकती है.

देश में स्थायी निवास लेने के इच्छुक छात्रों की मुश्किलें भी कम होंगी.

कनाडा के इमिग्रेशन विभाग ने क्या कहा

वहीं कनाडा के इमिग्रेशन मंत्री शॉन फ्रेजर ने भी एक ट्वीट शेयर कर देश में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की समस्याओं को लेकर कार्रवाई का आश्वासन दिया है.

उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “हम उन छात्रों के लिए समाधान ढूंढ रहे हैं, जो फ़र्ज़ी कॉलेज प्रवेश पत्र के साथ कनाडा में प्रवेश करने के कारण अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं.”

“जिन्होंने यहां पढ़ने की सच्ची इच्छा रखने वाले लोगों का फायदा उठाया है, उन्हें इसके परिणामों का सामना करना पड़ेगा.”

जानकारों की मानें तो भारतीय अधिकारियों को छात्रों को ठगने वाली एजेंसियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए.

छात्रों को भी कोई भी क़दम उठाने से पहले ख़ुद को शिक्षित करना चाहिए. वे विश्वसनीय एजेंटों और कॉलेजों के बारे में और जाने और समझें.

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