कफ़ सिरप: दवा जानकर बच्चों को पिलाया ज़हर, जम्मू से गांबिया तक कहर

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DMT : जम्मू  : (21 अगस्त 2023) : –

डेढ़ साल का श्रेयांश, तीन साल का लामिन, तीन साल की सुरभि शर्मा, 22 महीने की अमीनाटा, ढाई साल का अनिरुद्ध… और कई दूसरे बच्चे.

भारत और गांबिया के ये वो बच्चे हैं, जिनके माँ-बाप ने उन्हें दम तोड़ते देखा.

दो महीने से पाँच साल की उम्र तक के बच्चे.

इसकी वजह थी खाँसी की कथित ज़हरीली दवा खाने से उनका पेशाब बंद होना, शरीर में सूजन और गुर्दे का ख़राब होना.

पिछले साल जुलाई और अक्तूबर के बीच गांबिया में क़रीब 70 बच्चों की मौत हो गई.

जबकि साल 2019 दिसंबर और जनवरी 2020 के बीच जम्मू के रामनगर में कम से कम 12 बच्चों की मौत हो गई थी.

मौत के लिए भारतीय कंपनियों के बनाए कफ़ सिरप को ज़िम्मेदार ठहराया गया.

कंपनियों ने आरोपों को ग़लत बताया, लेकिन पीड़ित परिवारों को उन पर विश्वास नहीं.

पुलिस ने जम्मू में बच्चों की मौत की जाँच की और मामला अदालत में है.

जबकि गांबिया में बच्चों की मौत की जाँच के बाद सरकारी रिपोर्टें जारी की गईं, जिनमें एक भारतीय कंपनी के बनाए कफ़ सिरप को मौत के लिए ज़िम्मेदार बताया गया.

जम्मू और गांबिया के बीच क़रीब 10,000 किलोमीटर की दूरी है, जिनको पाटता इनका एक जैसा दर्द है, एक जैसी न्याय मांगने की लड़ाई है, जो अब भी जारी है.

मृतकों में गांबिया की क़रीब पाँच लाख की आबादी वाली राजधानी बैंजुल में रहने वाला तीन साल का लामिन भी था.

लामिन को ड्राइव के दौरान पापा की गोद में बैठना बहुत पसंद था.

पिछले साल सितंबर में जब उसे बुख़ार आया, तो डॉक्टर ने जो दवाइयाँ देने को कहा, उनमें कफ़ सिरप भी था.

लामिन दवा नहीं पीना चाहता था, लेकिन परिवार चाहता था कि वो जल्द ठीक हो जाए.

ड्राइवर का काम करने वाले उसके पिता एब्रिमा सानिया उस क्षण को याद करते हैं, “मैंने लामिन से ज़बरदस्ती दवा खाने को कहा.”

एब्रिमा शायद ही उस लम्हे को भूल पाएँ. उस क्षण को याद करके वो रोने लगे.

दवा लेने के कुछ समय बाद ही लामिन का खाना और पेशाब कम होने लगा.

डॉक्टरी जाँच में पता लगा कि लामिन को गुर्दे की समस्या थी. उसके होठ काले होने लगे थे.

एब्रिमा बोले, “लामिन ने मेरी ओर, मेरी आँखों में देखा. मैंने पूछा, लामिन तुम्हें क्या हो गया? मुझे उसका चेहरा, उसकी आँखें हमेशा याद रहेंगी क्योंकि वो मेरी आँखों के भीतर देख रहा था. मैं भी उसकी आँखों में देख रहा था.”

परिवार के मुताबिक़ कफ़ सिरप पीने के सात दिनों में ही लामिन की मृत्यु हो गई.

बच्चों के इस तरह अचानक चले जाने के सदमे से अभी भी उभर रहे माता-पिता याद करते हैं कि कैसे उनके बच्चों ने दर्द से तड़पते हुए दुनिया छोड़ी.

एक पिता ने कहा, “मेरी बेटी लगातार इतना चिल्ला रही थी कि आख़िरकार उसके मुंह से आवाज़ निकलनी बंद हो गई. आख़िरी वक़्त में वो माँ का नाम ले रही थी, जैसे माँ से मदद मांग रही हो.”

लामिन के घर के नज़दीक ही 22 महीने की अमीनाटा रहती थी.

अमीनाटा के माँ-बाप को भी समझ नहीं आया कि उनके बेटी के साथ क्या हो रहा है.

लकड़ी बेचकर गुज़ारा करने वाले अमीनाटा ने पिता मोमोदू डैंबेले ने उसे बेहतर, लेकिन महंगे इलाज के लिए पड़ोसी देश सेनेगल तक भेजा.

वो याद करते हैं, “उसका शरीर फूल रहा था. वो ख़त्म हो रही थी. हमें समझ नहीं आ रहा था कि उसके शरीर के अंदर क्या हो रहा है.”

उन्होंने आख़िरी बार बेटी का चेहरा एक वीडियो कॉल में देखा. अमीनाटा सेनेगल के एक अस्पताल के बिस्तर पर बेसुध लेटी थी.

मोमोदू याद करते हैं, “मुझे उसका सिर हिलता दिख रहा था. मैं उसे बताना चाह रहा था कि ये मैं हूँ, उसका पापा.”

इस वीडियो कॉल के कुछ ही देर बाद अमीनाटा नहीं रहीं.

पिछले साल जुलाई में दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में से एक गांबिया में स्वास्थ्य अधिकारियों को एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) के मामलों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली. ऐसे मामले पाँच साल से कम के बच्चों में देखे जा रहे थे.

एकेआई मतलब गुर्दे में गड़बड़ी, जिसका असर दूसरे अंगों पर पड़ता है, जिससे जान तक जा सकती है.

बाद में गांबिया की सरकार ने ये जानकारी दी कि इससे 69 बच्चों की मौत हो गई है.

गांबिया ने इसकी सूचना डब्लूएचओ को दी जिसके बाद डब्लूएचओ ने जाँच शुरू की.

डब्लूएचओ ने कहा कि उसने इस कंपनी के बनाए चार कफ़ सिरप के सैंपल की जाँच की और फिर ये निष्कर्ष निकाला कि इनमें तय मानदंड से अधिक मात्रा में डाइइथिलीन ग्लाइकोल और इथिलीन ग्लाइकोल था. ये दोनों ज़हरीले पदार्थ हैं.

डब्लूएचओ ने कहा कि इस कारण पेट में दर्द, उल्टी, डायरिया, पेशाब करने में तकलीफ़, सिरदर्द, मानसिक स्थिति में बदलाव और एक्यूट किडनी इंजरी हो सकती है जो मौत का कारण भी बन सकती है.

डब्लूएचओ ने जिन चार कफ़ सिरप का नाम लिया था, वो हैं प्रोमिथाज़ाइन ओरल सॉल्यूशन, कोफ़ेक्सामलिन बेबी कफ़ सिरप, मेकऑफ़ बेबी कफ़ सिरप और मैगरिप एन कोल्ड सिरप. ये सिरप मेडन फार्मासूटिकल बनाती है.

इसके बाद भारत सरकार एक्शन में आई और जाँच शुरू हुई.

गांबिया में मौत पर संसदीय जाँच की रिपोर्ट और हाल में ही जारी हुई एक्यूट किडनी इंजरी जाँच रिपोर्ट में भारतीय मेडन फ़ार्मासूटिकल्स कंपनी के बनाए “दूषित” कफ़ सिरप को ज़िम्मेदार ठहराया गया.पहली अगस्त को संसद में एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि द गांबिया मामले में जांच में पता चला कि गुड मैन्युफ़ैक्चरिंग प्रैक्टिसेज़ का उल्लंघन हुआ, जिसके बाद मेडन फ़ार्मा को शोकॉज़ नोटिस भेजा गया, और कंपनी को आदेश दिया गया कि वो तुरंत सोनीपत में सभी मैन्युफ़ैक्चरिंग गतिविधि बंद कर दे.

फार्मासूटिकल्स एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ साल 2022-23 में भारत ने गांबिया को 9.09 मिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य की दवाइयाँ भेजीं, जबकि उसी साल अफ़्रीका को भेजी दवाइयों का मूल्य 3.646 बिलियन डॉलर था.

नेशनल एसेंबली के सदस्य यायदा सानयांग ने बताया, “मैं अपने लिए, अपने बच्चों के लिए दवा लाने से डरने लगा था. सब कुछ बहुत डरावना और परेशान कर देने वाला था.”

गांबिया में आयातित दवाओं की जाँच के लिए लैब तक नहीं है और दूसरे अफ़्रीकी देशों की तरह यहाँ भी बड़ी मात्रा में भारतीय दवाएँ पहुँचती हैं.

लेकिन गांबिया ही नहीं, बल्कि उज़्बेकिस्तान, इराक़, कैमरून में भी भारतीय कफ़ सिरप से जुड़े मामलों पर रिपोर्टें सामने आने के बाद भारतीय फार्मासूटिकल कंपनियों को लेकर सवाल बढ़े हैं.

भारत में क़रीब 3,000 दवा बनाने वाली कंपनियों की क़रीब 10,000 मैन्युफ़ैक्चरिंग फ़ैक्टरियाँ हैं. साल 2030 तक ये इंडस्ट्री 130 अरब डॉलर तक की हो सकती है.

उदय भास्कर बताते हैं, “अगर आप उस त्रासदी को देखें और जिस तरह से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अलर्ट जारी किए, इतने सारे देश दोबारा सोच रहे हैं. वो लगातार पूछताछ कर रहे हैं. ये आसान नहीं है.”

गांबिया में हमने जितने लोगों से बात की, उन्हें आरोपों पर भारत सरकार और भारतीय कंपनी के खंडन पर भरोसा नहीं.

मौत पर जाँच रिपोर्ट बनाने वाली नेशनल एसेंबली की सेलेक्ट कमेटी ऑन हेल्थ के प्रमुख अमाडु कामरा कहते हैं, “मैं इससे बिल्कुल असहमत हूँ. बिल्कुल. क्योंकि हमारे पास सबूत हैं. हमने उन दवाओं की जाँच की. उन दवाओं में अस्वीकार्य मात्रा में एथलीन ग्लायकॉल और डाइथिलीन ग्लायकॉल (डीईजी) था, उन्हें मेडन ने बनाया और उन्हें सीधा भारत से आयात किया गया था.”

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