कर्नाटकः सोनिया गांधी के दख़ल के बाद कैसे निकला संकट का हल

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DMT : कर्नाटक  : (18 मई 2023) : –

कर्नाटक में बीते चार दिनों से चल रहे ‘नाटक’ के हल के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को आख़िरकार सोनिया गांधी की शरण में जाना पड़ा.

मौजूदा संकट के हल के लिए शीर्ष नेतृत्व ने सोनिया गांधी से डीके शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री और राज्य में पार्टी अध्यक्ष पद के लिए मनाने का अनुरोध किया ताकि सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाया जा सके.

सूत्रों से मिल रही इस जानकारी के कुछ ही घंटों के अंदर कांग्रेस पार्टी की ओर से इसकी औपचारिक घोषणा भी हो गई.

इससे पहले शिवकुमार से दिल्ली में जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या उन्होंने उप मुख्यमंत्री का पद स्वीकार कर लिया है तो प्रसन्न मुद्रा में उन्होंने कहा, “अगर आलाकमान का निर्देश मिलता है, तो मैं स्वीकार कर लूंगा.”

हालांकि सोनिया गांधी के दख़ल देने से पहले तक शिवकुमार मुख्यमंत्री पद के लिए अड़े हुए थे, लेकिन अब वे उपमुख्यमंत्री होंगे और साथ ही प्रदेश में पार्टी की कमान उनके हाथों में रहेगी.

कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने पहचान ज़ाहिर न करने की शर्त पर कहा, “सोनिया गांधी ने शिवकुमार से कहा कि हमारी पार्टी संकट में है, इसलिए आप समस्या नहीं बढ़ाइए. बाक़ी आप मुझ पर छोड़ दीजिए. आप मेरे बेटे के समान हैं. मैं आपका ख़्याल रखूंगी.”

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के लिए खींचतान का अंत दिल्ली में देर रात तब हुआ जब कांग्रेसी पार्टी की ओर से बेंगलुरु में विधायक दल के नेताओं की सात बजे शाम में होने वाली बैठक की सूचना देर रात डेढ़ बजे दी गई.

सिद्धारमैया और शिवकुमार का शपथ ग्रहण कांतिरवा स्टेडियम में होगा, जहां एक फ़ेक न्यूज़ के सामने आने के बाद, बुधवार से ही तैयारियों का सिलसिला शुरू हो गया था.

हालांकि जब कांग्रेस पार्टी के महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मीडिया से कहा कि सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाए जाने की सूचना ग़लत है तब जाकर तैयारियों का सिलसिला थमा.

सही साबित हु मीडिया रिपोर्ट्स

जब सिद्धारमैया राहुल गांधी के आवास से मुस्कुराते हुए बाहर आए थे, तभी मीडिया ने यह रिपोर्ट चलाना शुरू कर दिया था कि सिद्धारमैया ही विधायक दल के नेता बनेंगे.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात से पहले सिद्धारमैया राहुल गांधी से मिल रहे थे.

इसके कुछ ही देर बाद शिवकुमार ने खड़गे से मुलाकात की और उसके बाद वे राहुल गांधी से मिले. इन मुलाकातों में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से अपना दावा छोड़ने से इनकार कर दिया था.

शिवकुमार का कहना था कि जब कोई नेता प्रदेश में पार्टी की कमान संभालने को तैयार नहीं था, तब जाकर उन्होंने यह चुनौती स्वीकार की थी. उन्होंने सिद्धारमैया के 30 महीने के कार्यकाल के बाद 30 महीने के लिए मुख्यमंत्री बनाए जाने के प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया था.

सुरजेवाला ने दिल्ली में पत्रकारों से कहा था कि अंतिम फ़ैसला अगले 24 से 48 घंटों में होगा. “संकट ख़त्म करने की समय सीमा एक तरह से शिवकुमार के लिए पार्टी का फ़ैसला स्वीकार करने की थी. हालांकि पार्टी ने शिवकुमार की सांगठनिक क्षमता और संसाधन संपन्न भूमिका की भी प्रशंसा की.”

शिवकुमार पार्टी आलाकमान के सामने दो दलीलें रख रहे थे. एक तो रविवार को विधायक दल की बैठक में एक लाइन का प्रस्ताव पारित किया गया था कि विधानमंडल के नेता का फ़ैसला आलाकमान करेगा.

वहीं उनकी दूसरी दलील ये थी कि अतीत में प्रदेश अध्यक्ष को ही मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी मिलती रही है, चाहे वो 1989 में वीरेंद्र पाटील रहे हों या फिर 1999 में एसएस कृष्णा हों, लेकिन एक पंक्ति के प्रस्ताव के साथ साथ खड़गे के निर्देशन पर गुप्त मतदान भी कराया गया.

विधायकों को विधानमंडल के नेता के लिए अपनी पसंद का नाम एक पर्ची पर लिखकर बैलेट बॉक्स में सुशील कुमार शिंदे के नेतृत्व वाले पर्यवेक्षकों के सामने डालना था.

सोनिया गांधी के निर्देश से बनी बात

इस समस्या के हल के लिए सोनिया गांधी की भूमिका पर राजनीतिक विश्लेषक और मैसूर यूनिवर्सिटी में आर्ट्स विभाग के डीन प्रोफेसर मुजफ्फर असादी कहते हैं, “केवल सोनिया गांधी ही शिवकुमार पर असर डाल सकती हैं. शिवकुमार सबसे ज्यादा उनकी ही बात सुनते हैं.”

यहां यह याद रखना ज़रूरी है कि शिवकुमार ने चुनावी नतीजों के सामने आने के तुरंत बाद बेहद भावुक होकर कहा था, “वे सोनिया गांधी के बहुत आभारी हैं, क्योंकि वह उनसे मिलने तिहाड़ जेल गई थीं.”

जेल में हुई मुलाकात के दौरान ही सोनिया गांधी ने शिवकुमार को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने का भरोसा दिया था.

द्धारमैया कैसे पड़े भारी?

किन वजहों से शिवकुमार पर सिद्धारमैया भारी पड़े, इस बारे में प्रोफेसर असादी कहते हैं, “उनकी समाज के सभी तबके तक पहुंच है. वे सोशल इंजीनियरिंग में माहिर हैं और उनकी छवि भी साफ सुथरी है. वे अच्छे प्रशासन के लिए जाने जाते हैं.”

वहीं शिवकुमार के पिछड़ने की वजहों पर असादी कहते हैं, “दो वजहें हैं. बहुत संभव है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद केंद्रीय एजेंसियां शिवकुमार पर शिकंजा कसतीं और उनको जेल में डालने की कोशिश को भी खारिज नहीं किया जा सकता.”

“इससे पार्टी की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचता. इसके अलावा जब सिद्धारमैया रिटायर होंगे तो शिवकुमार के लिए पूरा मैदान खाली होगा क्योंकि उनकी उम्र काफ़ी कम है.”

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