DMT : बेंगलुरु : (06 जून 2023) : –
साल 2007 में दक्षिण भारत के भीड़-भाड़ वाले शहर बेंगलुरु की एक व्यस्त सड़क पर एक दृष्टिबाधित व्यक्ति ने पुष्पा से सड़क पार करने में मदद करने के लिए कहा. जैसे ही दोनों ने सड़क पार की तब दृष्टिबाधित व्यक्ति ने एक और गुजारिश की, जिसकी वजह से पुष्पा की ज़िंदगी बदली दी.
पुष्पा याद करते हुए कहती हैं, “उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके दोस्त के लिए एक परीक्षा लिख सकती हूं.”
पुष्पा ने इस गुज़ारिश पर हामी भर दी लेकिन परीक्षा का दिन नज़दीक आते ही पुष्पा का उत्साह घबराहट में बदल गया.
उन्होंने कभी किसी दूसरे के लिए परीक्षा नहीं लिखी थी और उन्हें इस बारे में कोई जानकारी भी नहीं थी.
भारत में शारीरिक रूप से अक्षम कई छात्र परीक्षा लिखने के लिए सहायक की मदद लेते हैं. ऐसे छात्र अपने सहायक को उत्तर बताते हैं, फिर वही सहायक उनके बताए उत्तर को लिखते हैं.
सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, परीक्षा लिखने वाले सहायक को किसी ऐसे विषय की परीक्षा देने की मंजूरी नहीं है जिसे उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर तक पढ़ा हो.
मदद का बढ़ाया हाथ और हज़ारों परीक्षाएं लिखीं
सरकार के द्वारा आयोजित परीक्षाओं में ऐसे सहायकों को एक निर्धारित राशि अदा की जाती है, लेकिन ज़्यादातर परीक्षा सहायक अपनी मर्जी से ये काम करते हैं.
पुष्पा इस काम को मुफ़्त में करती हैं.
वो एक अनुभव को साझा करते हुए कहती हैं, ”यह तीन घंटे तक का तनाव था. उम्मीदवार बहुत धीरे-धीरे जवाब लिखवा रहा था और मुझसे बार-बार सवाल पढ़ने को कह रहा था.”
लेकिन उन्होंने 19 साल की हेमा को स्कूल के फाइनल एग्जाम पास कराने के लिए काफी कुछ किया.
इसके बाद दृष्टिहीन लोगों के साथ काम करने वाले एक एनजीओ ने पुष्पा से मदद मांगी और फिर कई दूसरे छात्रों से भी मदद के लिए संपर्क किया.
पिछले 16 सालों में पुष्पा ने 1,000 से अधिक परीक्षाओं में बग़ैर किसी शुल्क के अभ्यर्थी की परीक्षा लिखने के लिए सहायक की भूमिका में रही हैं.
पुष्पा कहती हैं, “एग्जाम हॉल मेरे लिए दूसरे घर जैसा है.”
पुष्पा ने स्कूल और विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के अलावा सरकारी नौकरियों के लिए प्रवेश परीक्षा और चयन परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों की भी मदद की है.
पुष्पा को इतिहास से लेकर सांख्यिकी तक का कोई ज्ञान नहीं था लेकिन इम्तिहानों में सहायक की भूमिका में बैठने की वजह से उन्हें कई विषयों के बारे में सीखने को मिला.
वह कहती हैं, “अब यह मेरे लिए नियमित काम है. मुझे कोई तनाव महसूस नहीं होता है.”
अब तक उन्होंने दृष्टिबाधित, सेरेब्रल पाल्सी (मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी), डाउन सिंड्रोम, ऑटिज्म, डिस्लेक्सिया और दुर्घटनाओं से असमर्थ हुए छात्रों की मदद की है.
पुष्पा बताती हैं कि सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित छात्रों के साथ काम करना कई दफ़ा चुनौतीपूर्ण हो जाता है, क्योंकि ऐसे छात्रों को बोलने में परेशानी होती है.
पुष्पा कहती हैं कि “छात्रों को समझने के लिए उन्हें ज़्यादा ध्यान से सुनना होता है. उनके होठों की हरकतों पर नज़र टिकाए रखनी होती है.”
लेकिन वह ऐसे हालातों से सहज हैं. उन्होंने कार्तिक नाम के एक छात्र के लिए 47 परीक्षाएं लिखी हैं. कार्तिक विकलांग हैं और वे व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते हैं.
जब स्कूल की एक परीक्षा के दौरान कार्तिक के परीक्षा सहायक ने अचानक से उनका साथ छोड़ दिया, तब पुष्पा उनकी मदद के लिए सामने आईं.
25 साल के कार्तिक का कहना है कि उस घटना के बाद से पुष्पा का उनके प्रति लगातार समर्थन की वो काफी सराहना करते हैं.
स्कूल परीक्षा के दौरान उभरे इस संकट की वजह से ही कार्तिक और पुष्पा का ये रिश्ता इतने लंबे समय से चला आ रहा है.
सालों तक साथ रहने और काम करने से दोनों के बीच काफी समझ बन गई हैं. कार्तिक की ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी हो चुकी है और अब वह सरकारी क्लर्क भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं.
पुष्पा कहती हैं, “मैंने कई छात्रों के लिए कई परीक्षाएँ लिखी हैं और हर एक की एक अनोखी कहानी है.”
मार्च के तीसरे हफ़्ते में पुष्पा ने 19 साल की भूमिका वाल्मीकि के लिए यूनिवर्सिटी डिग्री परीक्षा का पेपर लिखा था.
भूमिका वाल्मीकि दृष्टिहीन हैं, वह पढ़ाई के लिए टेक्स्ट को ऑडियो में बदलने वाले टूल का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन परीक्षा के दौरान ऐसे ऐप्स के इस्तेमाल की इज़ाजत नहीं हैं.
भूमिका कहती हैं, “मैं अपने जीवन में तभी आगे बढ़ सकती हूं जब पुष्पा मेरे लिए लिखती हैं.”
वो कहती हैं, “पुष्पा बहुत सहनशील हैं. वह मेरे उत्तर ख़त्म होने तक इंतज़ार करती थी. उन्होंने मुझे कभी डिस्टर्ब नहीं किया. वह हमेशा मेरे जवाबों को लिखने से पहले दोहराया करती थी.”
पुष्पा की सहायता लेने वाले ज़्यादातर छात्रों ने विश्वविद्यालय में दाख़िले के लिए संघर्ष किया है. लेकिन पुष्पा का कहना है कि इसके बावजूद छात्रों से उनकी सहानुभूति उनकी ईमानदारी को कम नहीं करेगी.
वह कहती हैं, “मेरा काम है वे (छात्र) जो कहते हैं उसे लिखना. जब छात्र मुझसे ग़लत जवाब पर टिक करने या व्याकरण की दृष्टि से गलत वाक्य लिखवाने के लिए कहते हैं तो मेरे पास चुपचाप उसे करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. मैं इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती हूं.”
पुष्पा कहती हैं कि जब दूसरी भाषा बोलने वाले छात्रों को अंग्रेजी के शब्दों को समझने में परेशानी होती है तो वह उनके लिए शब्द का अनुवाद करती हैं.
वह कहती हैं, “मैं केवल इतनी मदद करती हूं.”
पुष्पा एक गरीब परिवार से आती हैं. एक दुर्घटना में उनके पिता के घायल होने के बाद उनकी माँ ने उन्हें और उनके भाई के पालन-पोषण के लिए कड़ी मेहनत की.
पुष्पा याद करती हैं, “एक समय पर मुझे और मेरे भाई को स्कूल छोड़ना पड़ा था क्योंकि हम फीस नहीं भर सकते थे.”
तब उनकी मदद एक अजनबी ने की थी. इस वजह से ही पुष्पा ने समाज में अपना योगदान देने के लिए शारीरिक रूप से असमर्थ छात्रों की मदद के लिए आगे आई.
पिछले कुछ सालों में उन्होंने अपने परिवार के भरन-पोषण के लिए कई छोटे-मोटे काम किए हैं, लेकिन बीते कुछ साल उनके लिए मुश्किलों भरे रहे हैं.
2018 में उनके पिता की मृत्यु हो गई और 2020 में उनके भाई का भी निधन हो गया. इसके एक साल बाद पुष्पा को एक और बुरी ख़बर मिली.
वो कहती हैं, “मई 2021 में मेरी मां का देहांत हो गया. कुछ महीने बाद अगस्त में मैंने 32 परीक्षाएं लिखीं. कई दिन तो ऐसा भी हुआ की मुझे एक ही दिन दो परीक्षाएं देनी पड़ी.”
वह कहती हैं कि परीक्षाओं में सहायक के तौर पर लिखने से उन्हें अपने दुःख पर काबू पाने में मदद मिली.
पुष्पा की अथक मेहनत बेकार नहीं गयी. उन्हें 8 मार्च 2018 को तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनके प्रयासों के लिए सम्मानित किया था.
उन्होंने अन्य पुरस्कार विजेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की.
पुष्पा अब एक टेक स्टार्ट-अप में काम करती हैं और कॉरपोरेट इवेंट्स में मोटिवेशनल टॉक्स करती हैं.
लेकिन वह अब भी उन लोगों के लिए परीक्षाएं लिखती हैं जो खुद नहीं लिख सकते हैं.
वह तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी, तेलुगु और हिंदी में बोल और लिख सकती हैं. पांच भाषाओं की जानकारी होने की वजह से उनकी सेवाओं की काफी मांग है.
वह कहती हैं, “मैं अपना समय और ऊर्जा देती हूं. अगर मैं किसी के लिए परीक्षा लिखती हूं, तो इससे उनका जीवन बदल जाता है.”