जी-20 की बैठकों से पहले श्रीनगर के लाल चौक का घंटा घर क्यों बना बहस का सबब

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DMT : श्रीनगर : (11 अप्रैल 2023) : –

चीन और पाकिस्तान के ज़बरदस्त विरोध के बावजूद भारत सरकार, भारत प्रशासित कश्मीर में जी-20 देशों के प्रतिनिधिमंडल की मेज़बानी के लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां कर रही है.

इसी सिलसिले में श्रीनगर को ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने की घोषणा की गई है. स्मार्ट सिटी योजना के तहत घाटी की राजधानी श्रीनगर के व्यापारिक केंद्र लाल चौक की साज-सज्जा ज़ोर-शोर से जारी है.

याद रहे कि भारत इस वर्ष जी-20 देशों का नेतृत्व कर रहा है और फ़िलहाल चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी समेत दुनिया के 20 देशों के प्रतिनिधि इस कॉन्फ़्रेंस की तैयारी के सिलसिले में भारत के दौरे पर हैं.

इसके अलावा मई के अंत में पर्यटन से संबंधित उन्हीं देशों के एक वर्किंग ग्रुप की बैठक कश्मीर में होगी.चालीस साल पहले वादी के व्यापारिक केंद्र लाल चौक में उस समय के प्रधानमंत्री शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला ने बाज़ार के ठीक बीच में एक घंटा घर बनवाया था जिस पर चारों तरफ़ से दिखने वाली बहुत बड़ी घड़ी लगाई गई थी

इस पांच मंज़िला ‘घड़ियाल’ को श्रीनगर के केंद्रीय प्रतीक के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया और धीरे-धीरे यह घंटा घर लाल चौक की पहचान बन गया.

इतिहासकार ग़ुलाम रसूल कहते हैं कि शेख़ अब्दुल्लाह उन दिनों भारत के व्यापारिक समुदाय के साथ मेलजोल बढ़ा रहे थे.

ग़ुलाम रसूल कहते हैं, “भारत की प्रसिद्ध कंपनी बजाज इलेक्ट्रॉनिक्स ने घंटा घर बनवाया और शुरू शुरू में यह बजाज कंपनी के विज्ञापन के तौर पर नज़र आता था.”

‘घंटा घर’ के निर्माण के कुछ साल बाद ही कश्मीर में भारत विरोधी सशस्त्र गतिविधियों की शुरुआत हुई तो लाल चौक का इलाक़ा प्रदर्शनों, सशस्त्र झड़पों और सुरक्षा कार्रवाइयों के लिए मशहूर हुआ.

पृथकतावादी ‘घंटा घर’ पर पाकिस्तानी झंडा लहराने लगे तो 1992 में भारतीय जनता पार्टी के कई नेता मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में कश्मीर आए और अत्यंत सख़्त सुरक्षा घेरे में ‘घंटा घर’ पर भारतीय तिरंगा लहराया गया.

बाद के दशकों में ‘घंटा घर’ एक व्यापारिक नहीं बल्कि सियासी प्रतीक बनकर रह गया.

अगस्त 2019 के बाद से ‘घंटा घर’ पर केवल तिरंगा लहराता है. स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस के अवसरों पर यहां महत्वपूर्ण शख़्सियतें और सरकार समर्थक कई युवा तिरंगा लहराते हैं.

चूंकि अब जी-20 कॉन्फ़्रेंस से पहले लाल चौक के आसपास सड़कों, रास्तों और दूसरी जगहों की मरम्मत व सजावट हो रही है, इसलिए सरकार ने ‘घंटा घर’ को भी नए सिरे से बनवाने के लिए पुराने निर्माण को ढाह दिया है.

इस कार्रवाई पर कुछ कश्मीरियों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि “कश्मीर के इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है”, लेकिन सरकार का कहना है कि ‘घंटा घर’ को आधुनिक तर्ज़ पर नए सिरे से बनवा कर उसका प्रतीकात्मक महत्व बढ़ाया जाएगा.

सोशल मीडिया पर दूसरे लोगों के अलावा जब नेशनल कॉन्फ़्रेंस की युवा सदस्य बिस्मा मीर ने ‘लाल चौक की तोड़फोड़’ का विरोध किया तो सरकार समर्थक नेता शेख़ इमरान ने उन पर आपत्तिजनक आरोप लगाए जिसके बाद बिस्मा ने लिखा, “मर्द नेता महिलाओं का मुंह बंद करते हैं, इसका इलाज यह है कि ज़्यादा से ज़्यादा औरतें सियासत में आएं.”

इस मामले में सोशल मीडिया पर वाद- विवाद के बाद सरकार ने एक डिजिटल तस्वीर जारी करके स्पष्ट किया कि ‘घंटा घर’ को ध्वस्त नहीं किया जा रहा बल्कि नए सिरे से बेहतर अंदाज़ में बनवाया जा रहा है.

शेख़ बाग़ का नाम लाल चौक क्यों रखा गया?

लाल चौक और ‘घंटा घर’ कश्मीर के इतिहास में बिल्कुल नए संस्करण हैं.

इतिहासकारों का कहना है कि झेलम नदी के किनारे स्थित श्रीनगर के प्राचीन बाज़ार ‘शेख़ बाग़’ का नाम 1947 के बाद सत्ता में आने वाले उस समय के लोकप्रिय नेता शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला ने बदलकर ‘लाल चौक’ कर दिया था.

‘शेख़ बाग़’ का नाम भी एक युद्ध के बाद पड़ा है जो 19वीं सदी के शुरू में उसी स्थान पर हुआ था. इतिहासकार ग़ुलाम रसूल कहते हैं कि उससे पहले पूरे इलाक़े का नाम ‘आबी गुज़र’ (जल मार्ग) था क्योंकि झेलम नदी के घाटों पर बड़ी किश्तियों के ज़रिए व्यापारिक सामान लाया और ले जाया जाता था.

महाराजा रंजीत सिंह ने उस ज़माने में एक मुसलमान शेख़ इमामुद्दीन को कश्मीर का गवर्नर बनाकर भेजा तो ब्रिटिश फ़ौजियों ने स्थानीय मददगारों से मिलकर श्रीनगर पर चढ़ाई कर दी.

शेख़ इमामुद्दीन ने ख़ुद हमलावरों का मुक़ाबला ‘आबी गुज़र’ के स्थान पर किया और वह सैंकड़ों फ़ौजियों समेत वहीं पर मारे गए. उनकी लाशों को पड़ोस के इलाक़े में दफ़न किया गया जिससे उस जगह का नाम ‘शहीद गंज’ यानी शहीदों का ख़ज़ाना पड़ गया.

जंग के बाद उस पूरे इलाक़े को शेख़ बाग़ कहा जाने लगा लेकिन भारत के विभाजन के बाद जब शेख़ अब्दुल्ला को सत्ता मिली तो उन्होंने इसका नाम लाल चौक रख दिया.

पीर ग़ुलाम रसूल और दूसरे कई इतिहासकारों ने अपनी किताबों में लिखा है कि जवाहरलाल नेहरू समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे और उन्हें ख़ुश करने के लिए शेख़ अब्दुल्ला ने मॉस्को के रेड स्क्वायर के नाम पर शेख़ बाग़ का नाम लाल चौक रख दिया और यह बताने की कोशिश की कि अतीत की तल्ख़ यादों को भुला कर एक नए कश्मीर का निर्माण होगा.

पाकिस्तान और चीन कश्मीर में जी-20 कॉन्फ़्रेंस के ख़िलाफ़ क्यों?

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता आसिम इफ़्तिख़ार अहमद ने कश्मीर में इस कार्यक्रम के आयोजन पर भारत की यह कहकर आलोचना की है कि वह वैश्विक स्तर पर एक सर्वमान्य विवाद (कश्मीर) की सच्चाई बदलना चाहता है.

उनका कहना था कि भारत “इस कार्यक्रम से वैश्विक स्तर पर कश्मीर में अपनी सभी कार्रवाइयों को जायज़ ठहराने की कोशिश कर रहा है.”

जी-20 की बैठक जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में आयोजित करने के भारत सरकार के फ़ैसले पर मंगलवार को पाकिस्तान ने प्रतिक्रिया दी है.पाकिस्तान विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज़ में जी-20 टूरिज़्म वर्किंग ग्रुप की बैठक 22-24 मई को श्रीनगर में आयोजित करने के भारत के फ़ैसले पर कड़ी नाराज़गी ज़ाहिर की गई है.

“भारत का गैर-ज़िम्मेदाराना कदम जम्मू-कश्मीर पर उसके अवैध कब्ज़े को स्थायी बनाने की उसकी लगातार जारी कोशिशों का हिस्सा है. ये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिष्द के प्रस्तावों का घोर उल्लंघन है और यूएन चार्टर के सिद्धांतों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय कानूनों का भी उल्लंघन है. इस तरह की गतिविधियों से ये हकीकत नहीं छिपती कि जम्मू-कश्मीर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादित क्षेत्र है, जो बीते सात दशक से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडा में बना हुआ है.”

चूंकि कश्मीर के अलावा भारत के उत्तर पूर्व राज्य अरुणाचल प्रदेश में इन कार्यक्रमों का आयोजन होने वाला है इसलिए चीन ने भी इसका विरोध किया है.

सरकारी संरक्षण में छपने वाले चीन के समाचार पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में चीन के ‘स्ट्रेटजी इंस्टिट्यूट’ के प्रमुख केवान फ़ेंग ने लिखा है कि भारत की “मोदी सरकार कश्मीर में जी-20 के कार्यक्रमों का आयोजन कर कश्मीर से संबंधित अपनी कूटनीतिक जीत का ऐलान करना चाहती है ताकि वह हिंदू बहुल आबादी में अपनी पकड़ और मज़बूत कर सके.”

चीन के विदेश मंत्रालय ने भी इस क़दम को एकतरफ़ा बताकर भारत पर आरोप लगाया है कि वह “विवाद को और जटिल बना रहा है.”

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