जी-20: पीएम मोदी ने जिस घोषणा-पत्र की तारीफ़ की उससे यूक्रेन क्यों ख़फ़ा

Hindi New Delhi

DMT : नई दिल्ली : (10 सितंबर 2023) : –

नई दिल्ली में शनिवार को सर्वसम्मति से जारी जी-20 के नई दिल्ली घोषणा-पत्र में यूक्रेन में चल रहे युद्ध का ज़िक्र तो किया गया लेकिन रूस की आलोचना नहीं की गई.

इस घोषणा-पत्र में सात पैराग्राफ़ यूक्रेन युद्ध पर हैं लेकिन इनमें एक जगह भी रूस का ज़िक्र नहीं है.

यूक्रेन ने इस पर प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि ‘रूस के युद्ध पर आये बयान में गर्व करने लायक कुछ भी नहीं है.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घोषणा पत्र को ऐतिहासिक कहा है और इसके सर्वसम्मति से पारित होने को एक उपलब्धि बताया है.

नई दिल्ली में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान यूक्रेन युद्ध पर चर्चा होने की संभावनाएं ज़ाहिर की गईं थीं और ये कयास लगाये गए थे कि यूक्रेन में चल रहे युद्ध पर मतभेदों की वजह से साझा बयान जारी करने में चुनौतियां आ सकती हैं.

लेकिन शनिवार को जारी बयान में ‘ज़मीन पर क़ब्ज़े के लिए आक्रमण और बल के प्रयोग’ की आलोचना की गई लेकिन रूस का सीधे नाम लेने से बचा गया.

इस घोषणा पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए यूक्रेन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओलेग नीकोलेन्को ने एक बयान में कहा है, “यूक्रेन उन सहयोगी देशों का आभारी है जिन्होंने टेक्स्ट में सख़्त शब्दों को शामिल करवाया. लेकिन ठीक इसी समय, यूक्रेन पर रूस की आक्रामकता के संदर्भ में, जी-20 समूह ने कुछ ऐसा नहीं किया है जिस पर गर्व किया जाए.”

नीकोलेन्को ने ‘एक्स’ पर लाल रंग से संपादित बयान की एक तस्वीर भी शेयर की. उन्होंने ‘यूक्रेन में युद्ध’ को ‘यूक्रेन पर युद्ध’ में बदल दिया और रूस से जुड़े संदर्भ जोड़ दिए.

घोषणा पत्र में कहा गया है- यूक्रेन में चल रहे युद्ध के संबंध में, सभी राष्ट्रों को संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों और मक़सद को ध्यान में रखकर कार्रवाइयां करनी चाहिए.

नीकोलेन्को ने अपने पोस्ट में ‘सभी राष्ट्रों’ को बदलकर रूस कर दिया है.

घोषणापत्र में परमाणु हमलों की चेतावनी का भी ज़िक्र किया गया है. हालांकि रूस का नाम नहीं लिया गया है.

नीकोलेन्को ने अपने पोस्ट में यहां भी संपादित करके रूस लिख दिया है.

यूक्रेन युद्ध को रूस की आक्रामकता के रूप में देखता है जबकि रूस ने इसे यूक्रेन में अपना विशेष सैन्य अभियान बताया है.

अमेरिका-ब्रिटेन ने भी की तारीफ़

यूक्रेन युद्ध में अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश खुले तौर पर यूक्रेन की मदद कर रहे हैं और उसे हथियार भी मुहैया कराये हैं.

ऐसे में घोषणा पत्र में रूस का नाम न होने को इसे रूस की जीत के रूप में भी देखा जा रहा है.

हालांकि अमेरिका और ब्रिटेन ने जी-20 घोषणा पत्र की तारीफ़ की है. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवन ने इस घोषणा पत्र में कई मुद्दे के समाधान पर सहमति बनाने को ‘अहम मील का पत्थर’ कहा है.

वहीं ब्रितानी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा कि साझा बयान में यूक्रेन में युद्ध के बारे में बहुत सख़्त भाषा का इस्तेमाल किया गया है.

सुनक ने कहा, “बयान में आप बेहद सख़्त भाषा देखेंगे जो खाद्य पदार्थों की क़ीमतों और खाद्य सुरक्षा पर युद्ध के प्रभाव को रेखांकित करती है.”

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पिछले साल बाली में हुए जी-20 सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे. वो इस बार दिल्ली भी नहीं आए.

चीन के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग ने हर जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लिया है लेकिन वो भी भारत नहीं आए. चीन की तरफ़ से प्रधानमंत्री ली चियांग ने हिस्सा लिया है.

बाली के घोषणा पत्र में रूस का नाम लिया गया था और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का संदर्भ देते हुए, “सख़्त शब्दों में यूक्रेन पर रूस की आक्रामकता” की आलोचना की गई थी.

भारत ने जी-20 सम्मेलन में मेहमान देश के रूप में यूक्रेन को आमंत्रित नहीं किया था.

नीकोलेन्को ने कहा, “ये स्पष्ट है कि यूक्रेन की हिस्सेदारी (बैठक में) हिस्सा ले रहे देशों को स्थिति को बेहतर ढंग से समझाती.”

नई दिल्ली में जारी हुए घोषणा पत्र को एक तरह से भारत की कूटनीति की कामयाबी के रूप में भी देखा जा रहा है क्योंकि भारत एक बेहद जटिल मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने में कामयाब रहा है.

इसे यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर पश्चिमी देशों के नरम रुख़ अपनाने के रूप में भी देखा जा रहा है.

भारतीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक़ भारतीय राजनयिकों और कूटनीतिज्ञों ने इस स्थिति तक पहुंचने के लिए कई जटिल बैठकें और लंबी वार्ताएं कीं और सभी देशों को मना लिया गया.

समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उभरते हुई आर्थिक शक्तियों ब्राज़ील, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ़्रीका ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है.

पीटीआई ने दावा किया है कि इन तीनों देशों ने घोषणा पत्र का मसौदा तैयार करने और सभी देशों से इसे अनुमोदित कराने की भी भूमिका निभाई.

घोषणा पत्र जारी होने के बाद की गई प्रेस वार्ता में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, “बाली घोषणा पत्र से तुलना के संबंध में मैं ये कहना चाहूंगा कि बाली बाली था और नई दिल्ली, नई दिल्ली है. मेरे कहने का मतलब ये है कि बाली एक साल पहले था.”

विदेश मंत्री ने ये भी बताया कि जी-20 सम्मेलन से पहले ‘भू-राजनैतिक मुद्दों’ पर सहमति बनाने पर काफ़ी वक़्त ख़र्च किया गया.

इस घोषणा पत्र में कुल 83 पैराग्राफ़ हैं और इसमें यूक्रेन युद्ध पर सात पैराग्राफ़ हैं.

विदेश मंत्री ने कहा, “इसमें कई विषयों को शामिल किया गया है.”

बाली घोषणा पत्र से नई दिल्ली घोषणा पत्र की तुलना को लेकर पूछे गए सवाल पर भी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जवाब दिया.

विदेश मंत्री ने कहा, “तब स्थिति अलग थी. तब से बहुत सी चीज़ें हो चुकी हैं. और अगर वास्तव में आप नेताओं के घोषणा पत्र में भू-राजनीतिक हिस्से को देखेंगे तो इसके आठ पैराग्राफ़ हैं जिनमें से सात यूक्रेन के मुद्दे पर ही केंद्रित हैं.”

भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, “मुझे लगता है कि इसे थियोलॉजिकल (धर्मतत्वविषयक) नज़रिये से भी देखा जाना चाहिए. मुझे लगता है कि नई दिल्ली घोषणा पत्र आज की स्थिति और चिंताओं का जवाब देता है, ठीक वैसे ही जैसे बाली घोषणा पत्र में एक साल पहले की स्थिति में किया था.”

नई दिल्ली घोषणा पत्र में सिर्फ यूक्रेन युद्ध को संदर्भित किया गया है और ‘दुनिया भर में युद्धों और संघर्षों के प्रतिकूल प्रभाव और मानवीय पीड़ा’ को यूक्रेन के संदर्भ में शामिल किया गया है.

नया नज़रिया

नई दिल्ली घोषणा पत्र की एक लाइन में कहा गया है, ‘स्थिति को लेकर अलग नज़रिए और आंकलन थे.’

जब जयशंकर से इस संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ‘जो वास्तविकता है’ उसे शामिल करना ठीक है.

जयशंकर ने कहा, “अलग-अलग नज़रिये और आंकलन को लेकर जो वाक्यांश है उस पर मैं ये कहना चाहूंगा कि हम पारदर्शिता अपना रहे हैं. ये एक तथ्य है कि ये (यूक्रेन युद्ध) आज बहुत विभाजनकारी मुद्दा है.”

जयशंकर ने कहा, “इस पर कई तरह के विचार हैं. पूरी निष्पक्षता से मैं ये सोचता हूं, कि बैठकों में जो हक़ीक़त थी, उसे रिकॉर्ड करना ही सही था और मुझे ये लगता है कि इस भवना को समझा जा रहा है.”

यूक्रेन ने नई दिल्ली घोषणा पत्र के मसौदे पर ज़रूर नाराज़गी दिखाई है लेकिन समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि पश्चिमी देश ‘रूस की आक्रामकता’ को घोषणा पत्र में शामिल न करने को लेकर संतुष्ट हैं.

बाली घोषणा पत्र में यूक्रेन युद्ध को लेकर शामिल किए गए दोनों ही पैराग्राफ़ पर तब चीन और रूस दोनों ही सहमत हो गए थे लेकिन आगे चलकर वो इससे पीछे हट गए. इस वजह से भी भारत के लिए यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर सर्वसम्मति हासिल करना मुश्किल हो गया था.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने नई दिल्ली में सम्मेलन से पहले प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा था कि नई दिल्ली घोषणा पत्र के मसौदे में यूक्रेन युद्ध को लेकर पैराग्राफ़ खाली छोड़ दिया गया है. इससे संकेत मिले थे कि अंतिम समय तक यूक्रेन युद्ध को लेकर चर्चाएं चल सकती हैं.

प्रेस वार्ता में एस जयशंकर ने ये स्वीकार भी किया कि बैठक से पहले अंतिम समय तक यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर गंभीर चिंतन हुआ और आख़िरकार सभी को मना लिया गया.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *