DMT : चीन : (07 सितंबर 2023) : –
इस साल यानी 2023 में जी-20 की अध्यक्षता भारत कर रहा है और इसका शिखर सम्मेलन 9-10 सितंबर को दिल्ली में होने जा रहा है.
जी-20 दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है.
साल की शुरुआत से ही भारत की कोशिश रही कि इस पूरे आयोजन को सफल बनाया जाए.
इन कोशिशों के बावजूद भारत में इस साल जी-20 की जितनी भी बैठकें हुईं, उसमें आम सहमति से एक भी साझा बयान जारी नहीं हो सका.
यूक्रेन में जारी जंग के कारण रूस और पश्चिमी देशों के बीच दूरियां आई हैं. चीन इस मोर्चे पर रूस के साथ खड़ा नज़र आता है.
ऐसे में जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जी-20 सम्मेलन में भारत ना आने का फ़ैसला किया तो एक बार फिर साझा बयान जारी हो सकने के भविष्य पर सवाल उठने लगे.
अब अमेरिका की ओर से भी ऐसे ही चिंता जताई गई है.
व्हाइट हाउस के नेशनल सिक्योरिटी प्रवक्ता जॉन किर्बी ने बुधवार को जी-20 सम्मेलन में सहमति से पास होने वाले प्रस्ताव की कम ही उम्मीद जताई है.
किर्बी ने कहा, ”हम उम्मीद करते हैं कि साझा बयान जारी हो सके. लेकिन आप जानते हैं कि 20 देशों को एक चीज़ पर सहमत करना कितना मुश्किल है. हम इस पर काम करेंगे.”
सहमति से प्रस्ताव पास करवाने की कोशिश भारत की भी रहेगी, क्योंकि ये सम्मेलन भारत की अध्यक्षता में हो रहा है और इसके ज़रिए वो ख़ुद को वैश्विक मंच पर बेहतर स्थिति में देखना चाहता है.
अगर सहमति से कोई प्रस्ताव पास होता है तो इसे भारत की उपलब्धि के तौर पर देखा जाएगा.
भारत की कोशिशों पर किर्बी बोले, ”हम जानते हैं कि भारत भी यही चाहेगा कि साझा प्रस्ताव पास हो सके. हम देखते हैं कि आगे क्या होता है.”
किर्बी ने प्रस्ताव पास होने की राह में बड़ा रोड़ा यूक्रेन में जारी जंग को बताया.
किर्बी ने कहा, ”अक्सर बात यूक्रेन में जारी जंग के कारण अटकती है. इस जंग को लेकर बाक़ी देश जैसी भाषा के इस्तेमाल पर ज़्यादा सहज हैं, उस पर चीन और रूस के सहमत होने की उम्मीद कम ही है. ऐसे में हम देखते हैं कि आगे क्या होगा.”
जिनपिंग, पुतिन के ना आने पर जयशंकर क्या बोले थे?
भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर से एक इंटरव्यू में बुधवार को पूछा गया कि पुतिन और जिनपिंग के भारत ना आने का जी-20 सम्मेलन पर क्या असर होगा?
जयशंकर ने कहा, “मुझे लगता है कि जी 20 में अलग-अलग मौक़ों पर ऐसे कुछ राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री रहे हैं, जो किसी भी वजह से शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने नहीं पहुँचे. लेकिन उस देश के प्रतिनिधि बैठक में अपना पक्ष बताते हैं. मुझे लगता है कि बैठक में सभी प्रतिनिधि बहुत गंभीरता से शामिल हो रहे हैं.”
जयशंकर ने कहा, ”मैं ये कहना चाहूंगा कि मुद्दे पहले से ही मौजूद हैं. ये मुद्दे आज सुबह नहीं लाए गए हैं. आठ-नौ महीनों में मंत्रियों और अधिकारियों के स्तर पर मुद्दों पर सहमति बनती है. लंबी प्रक्रिया के बाद एक सम्मेलन होता है.”
जिनपिंग और पुतिन के जी-20 सम्मेलन में ना आने की वजह क्या भारत से नाराज़गी है?
जयशंकर ने जवाब दिया, ”मुझे नहीं लगता कि इसका भारत से कोई संबंध है. उन्होंने जो फ़ैसला लिया है, उसके बारे में वो बेहतर जानते होंगे.”
जिनपिंग भले ही पहली बार जी-20 सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे हों, मगर पुतिन अतीत में कई बार ऐसा कर चुके हैं. पुतिन ब्रिक्स सम्मेलन में भी वर्चुअली जुड़े थे.
जानकारों का ये कहना है कि चीन चाहता है कि भारत ऐसी स्थिति में ना पहुंच पाए, जहां से वो ख़ुद को दक्षिण एशिया के नेता के तौर पर पेश कर सके.
चीन मामलों के जानकार तक्षशिला इंस्टिट्यूशन के मनोज केवलरमानी ने टेलीग्राफ़ अखबार से कहा, ”हमने जी-20 को ऐसे पेश किया, जिससे वैश्विक मंच पर भारत को दक्षिण एशिया का नेता कहा जा सके.”
अख़बार लिखता है कि जिनपिंग की कोशिश है कि ब्रिक्स समूह को जी-20 के समक्ष खड़ा किया जाए. जानकारों ने बीते ब्रिक्स सम्मेलन को भी जिनपिंग की जीत के तौर पर देखा.
ब्रिक्स समूह में नए सदस्यों को जोड़ने की कोशिश चीन की ही थी और विरोध के बावजूद इस पर सहमति भी बनी.
एक जनवरी 2024 से छह नए देशों को ब्रिक्स में जोड़ा जाएगा.
जानकारों का कहना है कि हाल में जी-20 या ब्रिक्स में जो हुआ, उससे एक बात नहीं बदलेगी वो ये कि ब्रिक्स में चीन और रूस का वर्चस्व है और जी-20 पर पश्चिमी देशों का.
जिनपिंग के दूरी बनाने की वजह क्या है?
कुछ दिनों पहले ब्रिक्स सम्मेलन में पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाक़ात हुई थी. इस मुलाक़ात में सीमा विवाद पर भी चर्चा हुई थी.
ऐसे में जानकारों को उम्मीद थी कि अगर जिनपिंग भारत आए तो रिश्ते बेहतर करने की दिशा में दोनों देश बढ़ सकते हैं.
मगर जब चीन के अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चिन को अपनी सीमा में बताने वाला नक़्शा जारी किया तो जिनपिंग के भारत आने की संभावनाओं पर सवाल उठने लगे थे.
जिनपिंग से मुलाक़ात की उम्मीद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को भी थी.
जब उनसे जिनपिंग के भारत ना आने की ख़बरों पर प्रतिक्रिया मांगी गई तो बाइडन ने इसे निराशाजनक बताया था.
ऐसे में सवाल ये है कि जब जिनपिंग का इंतज़ार भारत समेत अमेरिका को भी था तो वो जी-20 सम्मेलन से दूरी क्यों बरत रहे हैं और ख़ुद आने की बजाय चीनी प्रीमियर ली चियांग को दिल्ली क्यों भेज रहे हैं?
फाइनेंशियल टाइम्स ने एक रिपोर्ट में जिनपिंग के सम्मेलन में ना आने पर लिखा- ये कदम वैश्विक मंच के तौर पर जी-20 के कद को कम करने का काम करता है.
ये पहली बार है जब सत्ता संभालने के बाद शी जिनपिंग किसी जी-20 सम्मेलन में शिरकत नहीं कर रहे हैं.
फाइनेंशियल टाइम्स ने भारतीय विश्लेषकों के हवाले से लिखा है कि ऐसे वक़्त में जब चीन से भारत का सीमा विवाद जारी है, तब जिनपिंग की कोशिश ये है कि वो भारत के इस आयोजन का मज़ा ख़राब कर दे.
कई मीडिया रिपोर्ट्स में भी कहा गया कि चीन भारत की अनदेखी करना चाहता है.
जिनपिंग ना आकर क्या संदेश देना चाहते हैं?
चीन और अमेरिका की गिनती दुनिया की दो प्रमुख महाशक्तियों के रूप में होती है. दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हैं.
इनमें ताइवान, कारोबार और यूक्रेन युद्ध अहम हैं.
हाल में दोनों देशों के रिश्तों में आई तल्खी उस वक़्त बढ़ गई जब अमेरिका ने चीन के एक मानवरहित गुब्बारे को गिरा दिया.
अमेरिका ने इसे ‘जासूसी उपकरण’ बताया. चीन का कहना था कि गुब्बारे का अमेरिकी आसमान में पहुंचना एक ‘हादसा’ था, जिस पर अमेरिका ने ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिक्रिया दी.
ऐसे में जिनपिंग के भारत ना आने, बाइडन से मुलाक़ात होने की संभावनाओं का ख़त्म होना भारत के लिए क्या एक मौक़ा है?
द टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिनपिंग के दिल्ली ना आने में भी एक संदेश है कि चीन जी-20 को लेकर कितना गंभीर है.
यहां ये याद रखना होगा कि जिनपिंग ने बीते महीने हुए ब्रिक्स सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका जाकर शिरकत की थी और अपनी राजनीतिक ऊर्जा का निवेश ब्रिक्स में किया था.
जी-20 सम्मेलन में भी पूरब बनाम पश्चिम का ध्रुवीकरण होने से ग्लोबल साउथ को लेकर भारत के इरादों की रफ्तार धीमी होगी.
हालांकि चीन के ना होने से अब भारत पश्चिमी देशों से अपने लक्ष्यों पर ज़्यादा ज़ोर दे पाएगा और बड़ी भूमिका भी अदा कर सकता है.