तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन की स्वीडन को लेकर अमेरिका से दो टूक, क्या है मक़सद?

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DMT : तुर्की  : (09 दिसंबर 2023) : –

स्वीडन को पश्चिमी मुल्कों के सैन्य गठबंधन नेटो में शामिल करने के मुद्दे को लेकर एक बार फिर तुर्की के कड़े सुर सुनाई दे रहे हैं. हालांकि, इस बार मामला थोड़ा उलट है और इस बार इस बहाने तुर्की ने सीधे अमेरिका को चुनौती दे दी है.

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा है कि स्वीडन को ‘नेटो में शामिल करने के लिए अमेरिका को अपनी ज़िम्मेदारी भी निभानी चाहिए.’

उन्होंने इशारों-इशारों में कहा है कि अगर अमेरिकी संसद एफ़-16 लड़ाकू विमानों को लेकर कोई फ़ैसला लेगी तो स्वीडन की ‘नेटो की सदस्यता को लेकर हमारे पास भी संसद है.’

जानकारों की राय है कि दरअसल, तुर्की के राष्ट्रपति ऐसे बयान इसलिए दे रहे हैं क्योंकि तुर्की को अमेरिका के एफ़-16 लड़ाकू विमान और उसके पुर्ज़े चाहिए.

ग्रीस के एक दिवसीय दौरे से लौटते हुए उन्होंने विमान में पत्रकारों से कहा, “अगर हम दो (तुर्की और अमेरिका) नेटो सहयोगी हैं तब आपको भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए. उसी तरह से हमारी संसद भी अहम फ़ैसले लेगी.”

“आपने कहा कि कांग्रेस से पास होने के बाद ही एफ़-16 के मुद्दे पर क़दम उठाया जाएगा. हमारे पास भी संसद है. मेरी संसद से पास होने से पहले मेरे पास भी किसी तरह का कोई क़दम उठाने की संभावना नहीं है.”

स्वीडन को लेकर नरम पड़ते सुर

स्वीडन पश्चिमी देशों के सैन्य गुट नेटो में शामिल होना चाहता है, उससे पहले फ़िनलैंड नेटो में शामिल हो चुका है. इन देशों ने ये क़दम रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद उठाया है. इससे पहले ये देश गुटनिरपेक्षता के पक्षधर थे.

हालांकि, स्वीडन के नेटो में शामिल होने का तुर्की अब तक विरोध करता रहा था क्योंकि तुर्की स्वीडन पर आरोप लगाता है कि वो कुर्द संगठन पीकेके का समर्थन करता है.

तुर्की पीकेके को एक आतंकी संगठन मानता है और कहता है कि दशकों से जारी उसके हमले में अब तक तुर्की के 40 हज़ार लोगों की जान गई हैं.

तुर्की की मांग थी कि स्वीडन की सरकार पीकेके के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करे तभी वो उसकी नेटो सदस्यता का समर्थन करेगा. इसके बाद स्वीडन ने पीकेके के ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी जिसके बाद जुलाई में राष्ट्रपति अर्दोआन ने अपनी आपत्ति हटा ली थी.

अर्दोआन ने इसी साल अक्तूबर में नेटो में स्वीडन को शामिल करने से जुड़े एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर कर उसे संसद में दिया था. लेकिन नवंबर में संसद की विदेश मामलों की कमिटी ने उसको टाल दिया था.

इसके लिए नेटो के महासचिव जेन्स स्टॉल्टेनबर्ग ने तुर्की की आलोचना भी की थी. स्वीडन से पहले तुर्की ने फ़िनलैंड की सदस्यता को भी लटकाए रखा था क्योंकि नेटो में किसी देश को शामिल करने के लिए सभी सदस्य देशों की अनुमति अनिवार्य होती है.

तुर्की के अलावा हंगरी भी स्वीडन की सदस्यता का विरोध करता रहा है, लेकिन अब इन देशों के सुर नरम पड़ते दिख रहे हैं.

अमेरिका को क्यों दिखाए तेवर?

अब ऐसा लग रहा है कि स्वीडन की सदस्यता को लेकर तुर्की अपना हित भी साधना चाहता है जिस वजह से उसने अमेरिका को एफ़-16 विमान के सौदे पर तेज़ी से फ़ैसला लेने के लिए कहा है.

तुर्की अमेरिका से उसके लड़ाकू विमान एफ़-16 के ताज़ा मॉडल चाहता है. वो एफ़-16 ब्लॉक 70 विमान के साथ-साथ उसकी मॉडर्न किट भी चाहता है ताकि उसके पास पहले से रखे हुए एफ़-16 को वो ब्लॉक 70 में बदल सके.

तुर्की की वायु सेना के विमान अब पुराने पड़ते जा रहे हैं. साल 2019 में अमेरिका की निगरानी में संयुक्त रूप से बन रहे एफ़-35 लड़ाकू विमान का कार्यक्रम रद्द हो गया था जिसका असर उसकी वायु सेना की क्षमता पर पड़ा है.

यह कार्यक्रम अर्दोआन के रूस से मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम ख़रीदने के फ़ैसले के कारण रद्द हुआ था. नेटो इस मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम को अपने लिए ख़तरा मानता रहा है.

दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन वादा करता रहा है कि वो 20 अरब डॉलर के एफ़-16 विमान तुर्की को बेचेगा. हालांकि, अमेरिकी संसद में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ आवाज़ उठती रही है.

कई अमेरिकी सांसद तुर्की के मानवाधिकारों के रिकॉर्ड और नेटो के सदस्य ग्रीस के साथ होते रहे तनाव को लेकर भी उसे एफ़-16 विमान नहीं देना चाहते हैं.

इसराइल को लेकर भी तुर्की नाराज़

हमास के इसराइल पर हमले और उसके बाद ग़ज़ा में इसराइली कार्रवाई के बाद तुर्की अमेरिका से नाराज़ है. अमेरिका इस जंग में इसराइल का समर्थन कर रहा है.

अर्दोआन ने शुक्रवार को यह भी कहा कि उनका अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से किसी भी समय मिलने का कोई इरादा नहीं है.

अर्दोआन ने कहा, “राष्ट्रपति बाइडन के साथ मुलाक़ात हमारे एजेंडा में नहीं है. ग़ज़ा पर उनका रुख़ आप सब जानते हैं. अगर वो हमें कॉल करते हैं तो हम उनसे उन सभी मुद्दों पर बात करेंगे जिस पर बात करनी चाहिए.”

इसके साथ ही अर्दोआन ने बताया कि तुर्की के विदेश मंत्री हाकान फ़िदान संयुक्त अरब-इस्लामिक सम्मेलन द्वारा नियुक्त अपने समकक्षों के साथ ग़ज़ा पर बातचीत के लिए अमेरिका का दौरा करने जा रहे हैं.

तुर्की के राष्ट्रपति ने उम्मीद जताई है कि फ़िदान मुस्लिम समूह के सदस्यों के साथ ग़ज़ा पर अमेरिका के इसराइल समर्थित रुख़ को ख़त्म कर पाएगा.

उन्होंने कहा कि इसके ज़रिए इसराइल पर शांति के लिए दबाव डाला जा सकता है.

7 अक्तूबर को इसराइल पर हमास के हमले के बाद ग़ज़ा पट्टी पर इसराइली हमले में अब तक 17 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. इसके अलावा तक़रीबन 46 हज़ार लोग घायल हुए हैं.

तुर्की क्यों कर रहा था विरोध?

तुर्की और कुछ हद तक हंगरी ने दोनों देशों की ओर से नेटो में शामिल होने की दिशा में की जा रही शुरुआती कोशिशों का विरोध किया था.

तुर्की ने नॉर्डिक देशों पर उन तत्वों का समर्थन करने का आरोप लगाया था जिन्हें वह ‘आतंकी संगठन’ कहता था.

इनमें कुर्दिश चरमपंथी संगठन पीकेके और गुलेन मूवमेंट शामिल हैं जिसे तुर्की 2016 के तख़्तापलट प्रयासों के लिए ज़िम्मेदार ठहराता है.

तुर्की की आबादी में कुर्द समुदाय लगभग 15-20 फीसद है जो एक लंबे समय से तुर्की की सरकारों की ओर से प्रताड़ित किया जाता रहा है.

लेकिन स्वीडन के प्रति तुर्की की नाराज़गी बढ़ने की वजह स्वीडन में रहने वाला कुर्दिश समुदाय है जो पिछले कुछ दशकों में स्वीडन की राजनीति में एक जगह बनाने में सफल रहा है.

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने सवाल किया था, “एक देश जिसकी सड़कों पर आतंकवादी घूमते हों… वो नेटो में योगदान कैसे दे सकता है.”

उनकी मुख्य मांग थी कि स्वीडन चरमपंथियों को ‘राजनीतिक, आर्थिक और हथियारों का समर्थन देना बंद करे.’

इसके बाद स्वीडन ने इसी साल जून महीने में आतंकवाद से जुड़े अपने क़ानून में बदलाव लाते हुए चरमपंथी संगठनों का सदस्य बनने को ग़ैरक़ानूनी बना दिया है.

इसके कुछ हफ़्ते बाद एक कुर्दिश शख़्स को आतंकी गतिविधियों के लिए आर्थिक मदद देने के मामले में जेल भेजा गया है.

हालांकि, माना जाता है कि तुर्की की ओर से स्वीडन के रास्ते में रोड़ा बनने की दूसरी कई वजहें भी थीं.

इनमें से एक वजह तुर्की का अमेरिकी लड़ाकू विमान एफ़-16 का इंतज़ार करना है.

हालांकि, तुर्की ने इसे वजह मानने से इनकार किया है.

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