नाटू-नाटू: दुनियाभर में धूम मचा रहा गाना ऑस्कर में इतिहास क्यों रच सकता है?

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DMT : Mumbai : (12 मार्च 2023) : –

तेलुगू फ़िल्म आरआरआर का ये गाना इतना लोकप्रिय हुआ कि इंटरनेट पर धमाल मचा दिया. और अब ये ओरिजिनल सॉन्ग का ऑस्कर पाने की होड़ में सबसे आगे है. बीबीसी कल्चर की चारुकेशी रामदुरै इसकी वजह बता रही हैं.

दाढ़ीवाला एक दिलकश हिंदुस्तानी नौजवान, हैरत से अपनी ओर देख रहे एक अंग्रेज़ से पूछता है, ‘सालसा नहीं. फ्लेमेंको नहीं, मेरे भाई. क्या तुमको नाटू के बारे में पता है?’ और, उस अंग्रेज़ के जवाब का इंतज़ार किए बग़ैर वो हिंदुस्तानी नौजवान अपने दोस्त के साथ, उस गाने की धुन और बोल पर थिरकने लगता है, जिसे सिनेमा के पर्दे पर धमाल मचाने वाला, अब तक का सबसे जोशीला और क़दमों को लट्टू की तरह नचाने वाला गाना कहा जा रहा है.

विदेशियों की उस महफ़िल में अल्लुरी सीतारामा राजू (राम चरण तेजा), कुमारम भीम (एनटी रामाराव जूनियर) बस अपनी खिली हुई मुस्कान और पैंट के फीते के सहारे अपने जोशीले, तेज़ी रफ़्तार लय पर थिरकते क़दमों से एक तूफ़ान उठा देते हैं.

शानदार यूरोपियन सूट पहनकर मचाया गया उनका ये धमाल, उनके लिबास से बिल्कुल मेल नहीं खाता. इस सीन में खलनायक दिख रहे अंग्रेज़ को हम सिर्फ़ जैक के नाम से जानते हैं.

पहले तो वो सीतारामा राजू और कुमारम भीम के इस धूम मचाने वाले डांस को ‘घटिया’ और ‘अश्लील’ कहकर ख़ारिज करता है. मगर फिर, जैक भी ख़ुद को रोक नहीं पाता. थोड़ी ही देर बाद वो भी राजू और कुमारन के साथ इस जोशीले गाने की धुनों पर नाचने लगता है.

फिर वो नाचते-नाचते थककर चूर हो जाता है, और ज़मीन पर गिर पड़ता है. वहीं, राजू और भीम नाचते ही चले जाते हैं. मानो इस डांस में ही उनकी जीत है. ये गाना ज़ुबान पर चढ़ने वाला नाटू-नाटू है, जो 2022 की ब्लॉकबस्टर तेलुगू फिल्म आरआरआर यानी, राइज़, रोर, रिवोल्ट का गीत है.

इस गाने में ‘नाटू’ शब्द का सीधा मतलब एकदम देसी और अपनी माटी की ख़ुशबू का इज़हार है, जो ग़ैर भारतीय या विदेशी सालसा और फ्लैमेंको के उलट खालिस हिंदुस्तानी है. इस गाने के बोल हर उस चीज़ का बखान करते हैं, जो ज़मीनी है, देसी है. जिसमें अपने मुल्क की मिट्टी की महक है.

ये गाना कुछ कुछ ऐसा ही है, जैसे खाना खाते हुए आप बीच में एक टुकड़ा हरी मिर्च खाएं, जिसके ज़ुबान पर छूते ही आपको नए ज़ायक़े का एक झटका सा लगता है. या फिर आप नगाड़े की तेज़ थाप से अपनी रगों में एक रवानी उठती महसूस करते हैं, जो आपकी धड़कनें बढ़ा देती है.

असल में आज़ादी का गीत

नाटू-नाटू गाना अपने आप में इस फ़िल्म का ही एक अक़्स है. आरआरआर फ़िल्म में आज़ादी की लड़ाई के दो नाटू योद्धा, ताक़तवर ब्रिटिश साम्राज्य से टकरा जाते हैं.

इस फिल्म में ब्रिटिश साम्राज्य की नुमाइंदगी एक अंग्रेज़ अधिकारी गवर्नर स्कॉट बक्सटन और उसकी उतनी ही ख़राब बीवी कैथरीन करते हैं.

इनके साथ अंग्रेज़ी हुकूमत के कुछ छोटे-मोटे अफ़सरों की जमात है, जो जब-तब हिंदुस्तानी लोगों को थप्पड़ या ठोकर मारते रहते हैं. लेकिन, राजू और भीम अपनी बहादुरी से अंग्रेज़ हुकूमत को झुकने पर मजबूर कर देते हैं.

ये गाना असल में आज़ादी का गीत है. जिसमें एक कमज़ोर क़ौम नाचते-नाचते, अपने को अजेय समझने का ग़ुरूर रखने वाली विदेशी ताक़त को शिकस्त दे देती है.

चूंकि आरआरआर फ़िल्म की कहानी ऐतिहासिक है. इसमें देश के जज़्बात का इज़हार है. इसलिए, इस फ़िल्म की भारत में ज़बरदस्त कामयाबी देखकर कोई हैरानी नहीं होती. हालांकि, दुनिया के दूसरे देशों में इस फ़िल्म की लोकप्रियता और बॉक्स ऑफ़िस पर इसकी सफलता अभूतपूर्व है.

आरआरआर ने 2022 की बेहतरीन फ़िल्मों की कई फ़ेहरिस्तों में अपनी जगह बनाई है. पिछले साल अक्टूबर में रिलीज़ होने के बाद से आरआरआर, जापान में अब तक सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म बन चुकी है.

मशहूर अमरीकी मैग़ज़ीन ‘न्यूयॉर्कर’ ने फिल्म के निर्देश राजामौली के साथ एक इंटरव्यू में, आरआरआर को एक ‘ख़ुश कर देने वाली ज़रूरत से ज़्यादा फंतासी फिल्म’ बताया.

राजामौली ने इसी साल जनवरी में न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक्स सर्किल अवार्ड्स में बेहतरीन निर्देशक का पुरस्कार जीता था. वहीं, एक और अमेरिकी पत्रिका रोलिंग स्टोन ने आरआरआर को ‘2022 की ‘सबसे अच्छी’ और ‘क्रांतिकारी ब्लॉकबस्टर’ फिल्म करार दिया था.

इसमें कोई दो राय नहीं कि फिल्म आरआरआर की कामयाबी की एक बड़ी वजह इस फिल्म का गीत संगीत और ख़ासतौर से नाटू-नाटू गाना रहा है. अमरीकी पत्रिका वैराइटी ने ‘फिल्म और संगीत का रगों को फड़का देने वाला धमाका’ क़रार दिया था.

नाटू-नाटू ने भारतीय सिनेमा में उस वक़्त नया इतिहास रच दिया था, जब जनवरी में इसने रिहाना, टेलर स्विफ्ट और लेडी गागा जैसे मशहूर कलाकारों को पछाड़कर बेस्ट ओरिजिनल गाने का गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीता था.

ये गाना ऑस्कर के बेस्ट ओरिजिनल गीत के दर्जे में भी नामांकित किया गया है. और इस रविवार को ऑस्कर पुरस्कार समारोह में नाटू-नाटू का परफॉर्मेंस होना है. ऐसे में इस गाने को लेकर पूरी दुनिया में ज़बरदस्त दिलचस्पी दिखाई जा रही है.

सोशल मीडिया पर मची धूम

आज जब भारत में दर्शकों की ज़ुबान पर ये गाना चढ़ा हुआ है. हर कोई इसे गुनगुना रहा है. इसकी तेज़ धुनों पर नाच रहा है, तो क्या, भारतीय इसे अनूठा या असाधारण गीत मानते हैं? शायद नहीं.

दक्षिण भारतीय फिल्मों में साउंड डिज़ाइनर आनंद कृष्णमूर्ति, इस गाने को ‘नाचने को मजबूर करने वाला मज़ेदार गीत’ ज़रूर मानते हैं. लेकिन, वो बीबीसी से कहते हैं, “भारत में फिल्म देखने वालों ने निश्चित रूप से इससे कहीं ज़्यादा अच्छे गाने देखे हैं. हालांकि जिन दर्शकों को हमारे जैसी फिल्में देखने का तजुर्बा नहीं है, उन्हें इसमें ताज़गी दिखाई देती है.’ लेकिन, इस गाने का ज़बरदस्त असर होने से कोई इनकार नहीं कर सकता.”

भारतीय लेखिका रीमा खोखर ने ख़ुद के लिए पूरे साल डांस करने की चुनौती रखी है.

बीबीसी के साथ बातचीत में रीमा कहती हैं, “ये गाना देखकर ऐसा लगता है कि मानो आपने बिजली का नंगा तार छू लिया हो, जिससे इतना तेज़ झटका लगा कि आपके क़दम बिजली जैसी तेज़ी के साथ थिरकने लगे, वो भी एक लय में. ये मनोरंजन का एक बम था, जो स्क्रीन पर फट पड़ा. पिछले कई बरसों से मुझे किसी और गाने को देखकर इतना मज़ा नहीं आया था, जितना नाटू-नाटू देखकर आया.”

हालांकि, आनंद कृष्णमूर्ति को इस बात की ख़ुशी है कि एक भारतीय गाने को ऑस्कर में बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग के लिए नामांकित किया गया है.

इससे पहले ऐसा सिर्फ़ एक बार हुआ था, जब एआर रहमान ने स्लमडॉग मिलिनेयर (2009) के ‘जय हो’ गाने के लिए ऑस्कर जीता था. हालांकि, उस फ़िल्म को पूरी तरह से भारतीय नहीं कहा जा सकता. फिल्म का निर्देशन डैनी बॉयल ने किया था. और फिल्म बनाने वालों में ज़्यादातर लोग ब्रिटेन के थे.

विशाल कैनवास पर फ़िल्मांकन

कृष्णमूर्ति कहते हैं कि बॉलीवुड शब्द ही अपने आप में ये भाव देने वाला है कि भारतीय सिनेमा में कोई अनूठी बात नहीं है. ये तो बस हॉलीवुड की सस्ती सी नक़ल है.

कृष्णमूर्ति कहते हैं, “ये बात सच है कि वैसे तो हमारी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत विविधता है. इसकी कई बारीकियां हैं. लेकिन ये भी सच है कि, हमारे फ़िल्म निर्माण के बहुत से पहलू अभी भी दूसरों से उधार लिए हुए ही हैं. लेकिन, हमारी फ़िल्मों में एक बात ऐसी है, जिसमें हमारा कोई सानी नहीं. हमारी ये ख़ूबी खालिस हमारी है. और वो है, हमारा संगीत और डांस. हम इस मामले में अनूठे हैं और दुनिया को बहुत कुछ सिखा सकते हैं.”

कृष्णमूर्ति आगे कहते हैं, “दुनिया भर के दर्शकों ने बहुत सी दूसरी चीज़ें देखी होंगी. मगर हमारी फ़िल्मों का नाच-गाना ऐसा है, जिसका अनुभव दुनिया के किसी और देश के दर्शकों ने नहीं किया होगा. ऐसे में हमारी फ़िल्म का एक गाना भाषा की हदों को पार करते हुए, दुनिया में लोकप्रिय हुआ, तो ये वाजिब ही है.”

नाटू-नाटू गाने का फ़िल्मांकन भी विशाल कैनवास पर किया गया है. ये गाना, 2021 में यूक्रेन की राजधानी किएव शहर में राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की के शानदार आधिकारिक आवास के बाहर फिल्माया गया था.

रगों को फड़काने वाली अपनी धुनों और नाचने को मजबूर करने वाले जोश की बदौलत, नाटू-नाटू गाना, बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग का ऑस्कर अवार्ड जीतने की रेस में सबसे आगे है. इस गाने के ‘हुक स्टेप’ ने रातों-रात टिकटॉक पर धमाल मचा दिया था.

सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों ने साढ़े चार मिनट के इस गाने के एक छोटे हिस्से की नक़ल करके, वो सीन दोबारा रचने की कोशिश की.

बहुत से लोगों ने नाटू-नाटू गाने पर थिरकना सिखाने के गुर देने शुरू कर दिए. इसके लिए एक वीडियो तो इस गाने के कोरियोग्राफर प्रेम रक्षित ने भी बनाकर सोशल मीडिया पर डाला. इससे न केवल अमरीकी दर्शकों के बीच नाटू-नाटू गाने की लोकप्रियता को बढ़ावा मिला. बल्कि, ये फिल्म भी उनके ज़ेहन पर छा गई.

रीमा खोखर ने ये गाना पहली बार इंस्टाग्राम पर देखा था. गाने को देखने के बाद रीमा ने पहले ख़ुद इसके डांस स्टेप पर थिरकने की कोशिश की, और फिर वो ये फ़िल्म देखने भी गईं.

रीमा कहती हैं कि आज के दौर में किसी भी गाने के सोशल मीडिया पर वायरल होने के लिए बहुत ज़रूरी है कि उसमें 15-20 सेकेंड का कोई यादगार टुकड़ा ज़रूर हो.

नाटू-नाटू गाने के मामले में देखें, तो इसका कोरस हिस्सा ऐसा ही है. ये हक़ीक़त है कि जनवरी में ‘बेयॉन्ड फेस्ट’ के दौरान जब लॉस एंजेल्स के चाइनीज़ थियेटर में आरआरआर फिल्म दिखाई गई थी, तो ये गाना बजते ही दर्शक अपनी सीट पर खड़े होकर नाचने लगे थे और, इसका वीडियो भी वायरल हो गया था.

एक ‘बड़ा बदलाव’

‘आरआरआर’ की कहानी बहुत सपाट और औसत दर्जे की है. फ़िल्म के हीरो और खलनायकों की भूमिकाएं घिसी-पिटी हैं.

उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का संदेश साफ़ दिखता है, और ज़मीनी स्तर से उठी बग़ावत दिल में जोश जगाने वाली है.

लेकिन, इस फ़िल्म के विरोधियों की भी कमी नहीं है. आलोचकों ने आरआरआर फिल्म में कई अहम कमियों की तरफ़ इशारा किया है. फ़िल्म में धार्मिक किरदारों का इस्तेमाल किया गया है, जिसे हिंदुत्ववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने वाला कहकर इसकी आलोचना की गई.

कहा गया कि आज जब भारत में दक्षिणपंथी सियासत उफ़ान पर है, तो इस फ़िल्म ने राष्ट्रवाद के जज़्बे को और भड़काने का ही काम किया है. इसके अलावा फ़िल्म पर आदिवासी संस्कृति को हथियाने का इल्ज़ाम भी लगा. इससे भी ज़्यादा चिंता की बात ये है कि पूरी फिल्म में जातिवाद की झलक साफ़ दिखाई देती रहती है.

निचली जाति से ताल्लुक़ रखने वाला भीम, ऊंची जाति के राम के आगे सिर झुकाता है, क्योंकि, भारतीय समाज में ये माना जाता है कि ऊंची जाति वालों के पास ज़्यादा अक़्ल होती है.

वॉक्स ने इस फिल्म की विस्तार से समीक्षा करते हुए लिखा, ”हो सकता है कि फिल्म जोश जगाने वाले मनोरंजन का मसाला हो. लेकिन इसमें ऊंचे दर्जे की उस सोच से कोई निजात मिलती नहीं दिखाई गई, जिसके चलते हम आज के हालात में पहुंचे हैं.”

फ़िल्म में हिंदुस्तानियों को ज़ुल्मी अंग्रेज़ हुकूमत पर जीत हासिल करते हुए भले ही दिखाया गया है. लेकिन, आनंद कृष्णमूर्ति को इस फ़िल्म में नस्लवाद की असहज करने वाली सोच की बू भी आती है.

उन्हें इस फिल्म को लेकर पश्चिमी देशों के दर्शकों के उत्साह में भी यही नस्लवाद दिखाई देता है.

कृष्णमूर्ति कहते हैं, “विदेश में अभी भी भारतीय फिल्मों को उसी नज़र से देखा जाता है, जैसे पिंजरे में क़ैद कोई जंगली जानवर हो. पश्चिमी देशों के दर्शकों को भारतीय फिल्में इसलिए दिलचस्प लगती हैं क्योंकि उनमें एक अजनबियत, एक विदेशीपन है. इसलिए नहीं कि उन्हें कोई जुड़ाव महसूस होता है. इसलिए नहीं कि वो फ़िल्म के भाव को समझ पाते हैं.”

”ऐसे में जब पश्चिमी दर्शक कोई भारतीय फ़िल्म देखने जाते हैं, तो उनके दिल में ये अपेक्षा पहले से रहती है कि वो कोई विदेशी तमाशा देखने जा रहे हैं. और, इस फ़िल्म ने तो पश्चिमी दर्शकों के सामने उस तमाशे का मनोरंजन वाला मसाला भर-भरकर परोसा है.”

इन बातों से इतर, ‘आरआरआर’ को जिस तरह तवज्जो दी जा रही है. तारीफ़ों से नवाज़ा जा रहा है, उससे ख़ुश होने की एक वजह तो बनती है. अब तक तो, मुंबई स्थित हिंदी फ़िल्म उद्योग यानी बॉलीवुड ही बाक़ी दुनिया के लिए भारतीय फ़िल्मों की पहचान था.

लेकिन, दक्षिण भारत के फ़िल्मी उद्योग और वो भी तेलुगू फ़िल्म की इस कामयाबी ने उस चलन को ही मज़बूती दी है, जिसमें देश के अन्य हिस्सों में बन रही फ़िल्में न केवल हिंदी बोलने वाले उत्तर भारतीय दर्शकों के बीच अपनी छाप छोड़ रही हैं, बल्कि वो पूरी दुनिया में अपना डंका बजा रही हैं.

जब नाटू-नाटू गाने ने गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीता, तो मशहूर संगीतकार ए आर रहमान ने ट्विटर पर बधाई देते हुए जिस ‘बड़े बदलाव’ की बात की थी, उसका इशारा इसी बदलाव की तरफ़ था. और, नाटू-नाटू के पास तो ऑस्कर जीतने का भी शानदार मौक़ा है.

क्योंकि, इससे अकादमी को भी ये मौक़ा मिलेगा कि वो अपने यहां हर तबक़े की नुमाइंदगी और विविधता को बढ़ावा देने में पैदा हुई नई दिलचस्पी का सुबूत दे सके.

और, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि नाटू-नाटू गाना और इसका डांस, ज़िंदादिली और मस्ती की जीती-जागती मिसाल है. ठीक उसी तरह, जैसे इस फ़िल्म की भारतीयों से हमदर्दी रखने वाली इकलौती अंग्रेज़ किरदार जेनी एक सीन में भीम से कहती है, ‘रगों में फड़कती धुन, बिजली जैसी तेज़ी से थिरकते क़दम और चमकती आंखें. ये तो बहुत ज़बरदस्त था.’

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