पुतिन ने परमाणु हथियार आख़िर इस मुल्क में क्यों भेजा

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DMT : वारसा : (16 जून 2023) : –

बेलारूस की निर्वासित नेता स्वेतलाना तिखानोव्स्काया ने रूस द्वारा परमाणु हथियारों को बेलारूस को दिए जाने के ख़तरे के प्रति चेतावनी दी है.

अभी हाल ही में अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने इस बात की पुष्टि की है कि देश में परमाणु हथियार ले जाने वाली मिसाइलों और परमाणु बमों की पहली खेप बेलारूस पहुंच चुकी है.

इसके तुरंत बाद स्वेतलाना ने कहा कि रूस से परमाणु हथियार बेलारूस में ‘एक पागल तानाशाह के हाथों’ में देना ख़तरनाक है.

बेलारूस के एकाधिकारवादी नेता अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने देश की एक अज्ञात जगह पर रूस के सरकारी टीवी प्रेजेंटर के साथ बातचीत में इन हथियारों की डिलिवरी की घोषणा की.

इस बातचीत की पृष्ठभूमि में मिलिटरी ट्रक और सैन्य उपकरण दिखाई दे रहे हैं.

जब प्रजेंटर ने उनसे इस बात को और स्पष्ट करने को कहा कि बेलारूस को हथियार उम्मीद से पहले ही मिल चुके हैं, इसका क्या मतलब है? लुकाशेंको ने मुस्कराते हुए कहा, ‘एक साथ नहीं बल्कि धीरे-धीरे.’

लुकाशेंको को रूस के मुख्य सहयोगी के तौर पर देखा जाता रहा है और बेलारूस ने फ़रवरी 2022 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन के यूक्रेन पर व्यापक हमले में लॉन्चपैड की भूमिका निभाई.

लुकाशेंको क्यों उत्साहित हैं?

लुकाशेंको ने साफ़ तौर पर यूक्रेन के सहयोगी पश्चिमी देशों को परेशान करने की मंशा से और ज़ोर देकर कहा कि रूसी परमाणु बम विश्व युद्ध के दौरान नागाशाकी और हिरोशिमा पर अमेरिका द्वारा गिराए गए बमों से ‘तीन गुना ज़्यादा शक्तिशाली’ हैं.

उन्होंने ये भी कहा कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से परमाणु हथियारों के लिए सिर्फ़ कहा नहीं था बल्कि ‘मैंने उन्हें वापस करने की मांग की थी.’

लूकाशेंको ने दावा किया कि बाहरी आक्रामकता से बचाव के लिए उन्हें इनकी ज़रूरत थी.

हालांकि ये एक झूठा ख़तरा है, जिसे वो अपने सभी राजनीतिक विरोधियों को दबाने को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं.

लूकाशेंको 1994 से ही सत्ता में बने हुए हैं और साल 2020 में हुए विवादित राष्ट्रपति चुनावी नतीजों में जीत का दावा किया था, जिसके बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन फूट पड़े.

इन्हें दबाने के लिए बेलारूस की केजीबी सिक्यॉरिटी सर्विस और दंगा पुलिस ने प्रदर्शनकारियों का बर्बर दमन किया.

यूक्रेन और कज़ाख़स्तान की तरह बेलारूस ने भी 1990 के दशक में सोवियत बाद के रूस और पश्चिमी देशों द्वारा रक्षा की गारंटी के बदले अपने परमाणु हथियार रूस को दे दिये थे.

फिर से बेलारूस में परमाणु हथियारों की तैनाती अब उस नीति के विपरीत है, इसलिए भी ये महत्वपूर्ण घटनाक्रम है.

हालांकि अब भी इस बात का कोई पक्का सबूत नहीं है कि रूसी हथियार बेलारूस को सौंप दिए गए हैं.

बेलारूस को मिले हथियारों की रेंज क्या है?

पुतिन ने बीते मार्च में पहली बार परमाणु हथियारों की तैनाती की घोषणा की थी और कहा था कि अमेरिका ने यूरोप में ऐसे हथियार तैनात कर रखे हैं.

बाद में उन्होंने कहा कि हथियारों का ट्रांसफ़र तभी होगा जब इन्हें रखने की जगह तैयार हो जाएगी, लेकिन अलेक्जेंडर लुकाशेंको अब कहते हैं कि बेलारूस के पास बहुत सारी जगह है और कई का नवीनीकरण कर दिया गया है.

मॉस्को का कहना है कि मिसाइलों का कंट्रोल उसके पास रहेगा. ये टेक्टिकल मिसाइलें हैं और लंबी दूरी के रणनीतिक हथियार नहीं हैं.

अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने कहा, “मेरी योजना अमेरिका से लड़ने की नहीं है, हमारे लिए टेक्टिकल हथियार ही ठीक हैं.”

उन्होंने कहा, “इस्कांडर रॉकेट की मारक क्षमता 500 किलोमीटर या इससे अधिक है.”

स्वेतलाना का कहना है, “इस तैनाती से नेटो देशों को कोई नया ख़तरा नहीं है, इसलिए वे इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं.”

उनके तर्क के पीछे ये उनकी समझ है कि पश्चिमी देशों को फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मिसाइल रूस से दागी गई है या बेलारूस से.

रूस अपने सुदूर पश्चिम में कालिनिनग्राद इलाक़े में परमाणु हथियार को तैनात किए हुए है, जिसकी रेंज में पोलैंड और बाल्टिक देश आते हैं.

स्वेतलाना ने कहा, “लेकिन बेलारूस हमारा देश है और हम परमाणु हथियार नहीं चाहते हैं. अपनी स्वतंत्रता बचाए रखने का ये अंतिम मौक़े जैसा है. लेकिन पश्चिम इस बारे में चुप्पी साधे हुए है.”

पुतिन की योजना क्या है?

2014 में क्राइमिया प्रायद्वीप को रूस में मिलाने और पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों के समर्थन के कारण बेलारूस में पुतिन को लेकर संदेह बढ़ा है. पुतिन पिछले दो दशक से रूस की सत्ता में हैं. यह कार्यकाल भी उनका 2024 तक रहेगा.

इसके बाद भी वो शायद ही सत्ता से हटें क्योंकि संविधान बदलने के लिए प्रधानमंत्री समेत पूरी कैबिनेट से इस्तीफ़ा ले लिया है. बेलारूस में पुतिन को लेकर संदेह बढ़ रहा है.

पिछले महीने आठ दिसंबर को दोनों नेताओं ने ‘यूनियन स्टेट ऑफ रूस और बेलारूस’ की बीसवीं वर्षगाँठ मनाई थी. दोनों देशों के बीच यह संधि आठ दिसंबर 1999 में हुई थी.

‘यूनियन स्टेट ऑफ रूस और बेलारूस’ का मतलब है कि बेलारूस को रूस में मिलाने की बात थी लेकिन यह काग़ज पर ही रह गया था.

राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको की राय रूस के साथ यूनियन को लेकर बदलती रही है. सोची में राष्ट्रपति पुतिन के साथ मुलाक़ात से पहले बेलारूस के राष्ट्रपति ने कहा था कि उनकी सरकार किसी भी मुल्क का हिस्सा नहीं बनना चाहती, यहां तक कि सिस्टर रूस का भी नहीं.

हालांकि राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको इसे लेकर पहले कुछ और सोचते थे. 1990 के दशक में राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको मॉस्को और मिंस्क के एकीकरण के समर्थक रहे हैं.

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