क्या भारत की वजह से आसमान छू रही हैं बांग्लादेश में चीनी की कीमतें

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DMT : बांग्लादेश  : (23 जून 2023) : –

भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में पिछले कुछ हफ्तों से चीनी की कीमतें आसमान छू रही हैं. खुली चीनी बाज़ार में उपलब्ध है और डिब्बाबंद चीनी काफी हद तक बाज़ार से ग़ायब हो गई है.

बांग्लादेश के खुदरा बाज़ार में चीनी का रेट सरकार तय करती है. सरकार ने जो रेट तय किया है वो कारोबारियों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है.

इस वजह से बांग्लादेश शुगर रिफ़ाइनर्स एसोसिएशन ने चीनी के दाम 20 से 25 टाका प्रति किलो बढ़ा दिए हैं.

संगठन ने बांग्लादेश के व्यापार एवं शुल्क आयोग को पत्र भेजकर इस फ़ैसले की जानकारी दी.

बाज़ार में इस समय पैकट वाली चीनी की क़ीमत 125 रुपये और खुली चीनी 120 रुपये प्रति किलो है.

ट्रेड एंड टैरिफ़ कमीशन को भेजे गए पत्र के मुताबिक़, अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़ने से कंपनियों को सरकारी रेट पर चीनी बेचने में घाटा हो रहा है इसलिए उन्होंने चीनी के दाम बढ़ाने का फ़ैसला किया है.

इससे पहले छह जून को व्यापारियों ने टैरिफ़ कमीशन को पत्र भेजकर चीनी के दाम बढ़ाने का अनुरोध किया था.

लेकिन सरकार की ओर से कोई फ़ैसला आए इससे पहले ही व्यापारियों ने चीनी के दाम बढ़ाने का ऐलान कर दिया.

व्यापारियों ने 22 जून से चीनी की नई क़ीमतें लागू करना शुरू कर दी हैं.

पिछले एक महीने से बांग्लादेश के बाज़ारों में पैकेट वाली चीनी उपलब्ध नहीं है. लोग बाज़ार से खुली चीनी में 10 से 15 टाका महंगी ख़रीद रहे हैं.

राजधानी ढाका के कालाबाग़ान इलाक़े के रहने वाले इब्राहिम मुंशी कहते हैं, “तीन हफ्ते पहले मैंने 120 टाका प्रति किलो की दर से चीनी खरीदी. पैकेट वाली चीनी नहीं मिली, इसलिए मुझे खुली चीनी लेनी पड़ी. मैंने कल वह चीनी 135 टका प्रति किलो की कीमत पर खरीदी. जिस तरह चीनी के दाम बढ़ रहे हैं, चीनी अब मीठी नहीं रही, ये कड़वी होती जा रही है.”

वहीं कथलबग़ान इलाक़े के किराना दुकानदार मनोवर हुसैन कहते हैं, “एक महीने से ज़्यादा समय हो गया है हम चीनी के पैकेट नहीं लाए हैं. हमारी खुली चीनी खरीदने की लागत 125 रुपये प्रति किलो है. इसके साथ ही ट्रांसपोर्ट की भी लागत है, और हमें मुनाफ़ा भी तो कमाना है. इसलिए चीनी को ऊंचे दामों पर बेचना पड़ रहा है.”

बांग्लादेश में चीनी की सालाना खपत 1.8 से 2.0 करोड़ मीट्रिक टन है.

इसमें से देश में लगभग एक लाख टन चीनी का उत्पादन होता है. बाकी चीनी वो भारत, ब्राजील, अर्जेंटीना से आयात करता है.

बांग्लादेश में चीनी की क़ीमत पिछले एक साल में लगभग दोगुनी हो गई है. जून 2022 में चीनी के दाम 80 से 84 रुपए प्रति किलो थे.

यहां के कारोबारी चीनी क़ीमतों में तेज़ी के लिए डॉलर संकट, लेटर ऑफ़ क्रेडिट देने में असमर्थता, डॉलर एक्सचेंज दर में वृद्धि और आयात शुल्क और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में क़ीमतों में तेज़ी को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं.

कई व्यापारियों ने कहा कि भारत ने चीनी का निर्यात बंद कर दिया है इसलिए दुनिया के अन्य चीनी बाज़ारों में ख़रीदार बढ़ गए हैं. मांग बढ़ने के कारण दाम भी बढ़ रहे हैं.

भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक है और निर्यात के मामले में दुनिया में ये दूसरे नंबर पर है. पहले नंबर पर ब्राज़ील है.

भारत से चीनी खरीदने वाले मुल्कों में सबसे पहले नंबर पर इंडोनेशिया है.

साल 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार इसके बाद बांग्लादेश, सऊदी अरब, इराक़ और मलेशिया का नंबर आता है.

बांग्लादेश के कारोबारियों का कहना है कि चीनी के आयात में कमी और इसके आयात शुल्क में बढ़ोतरी के कारण देश के भीतर इसकी क़ीमतों में उछाल आ रहा है.

शुगर रिफ़ाइनर्स एसोसिएशन के पत्र के अनुसार आयात शुल्क 22 हज़ार से बढ़ाकर 32 हज़ार टाका प्रति टन कर दिया गया है. एसोसिएशन का कहना है कि सरकारी रेट पर चीनी बेचना संभव नहीं है.

कारोबारियों का दावा है कि आयात से लेकर खुदरा बाज़ार तक चीनी पर उन्हें 42 टाका टाका प्रति किलो तक का शुल्क देना पड़ता है. उनका कहना है कि टैरिफ़ घटाने से खुदरा कीमतें घटाई जा सकती हैं.

बांग्लादेश शुगर रिफ़ाइनरी एसोसिएशन के महासचिव गुलाम रहमान ने कहा, “अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में चीनी के दाम बहुत अधिक हैं. जैसे-जैसे डॉलर का मूल्य बढ़ता है, वैसे-वैसे आयात की लागत भी बढ़ती जाती है. डॉलर संकट के कारण बैंक भी लाइन ऑफ़ क्रेडिट नहीं खोल रहे हैं. इससे देश के भीतर चीनी की आपूर्ति घट गई है. इन्हीं वजहों से चीनी के दाम बढ़ रहे हैं.”

इससे पहले पिछले साल मई में एसोसिएशन ने वाणिज्य मंत्रालय को पत्र लिखकर विश्व बाज़ार में चीनी की क़ीमतों की स्थिति की जानकारी दी थी.

पत्र में उल्लेख किया गया था कि अगर चीनी का आयात अंतरराष्ट्रीय बाज़ार मूल्य पर किया जाता है तो उसका आयात मूल्य सरकारी रेट से काफी अधिक होता है.

सरकार बांग्लादेश व्यापार और शुल्क आयोग के माध्यम से खाद्य तेल, चीनी सहित कुछ अन्य आयात किए जाने वाले उत्पादों की क़ीमत निर्धारित करती है.

लेकिन सरकार के फ़ैसले में देरी के कारण व्यापारियों ने खुद ही चीनी के दाम बढ़ा दिए.

कारोबारियों का कहना है कि चीनी की आपूर्ति के अलावा कंपनियां भी अपने पास चीनी होने के बावजूद धीरे-धीरे इसे बाज़ार में उतार रही हैं.

नाम न बताने की शर्त पर एक व्यापारी ने बीबीसी को बताया कि जब सरकार ने चीनी की क़ीमत तय की थी, तब विश्व बाज़ार में इसकी क़ीमत 580 डॉलर प्रति टन थी.

अब यह बढ़कर 670 डॉलर तक हो गया है. इसलिए उन्हें चीनी के दाम बढ़ाए बिना कोई रास्ता नज़र नहीं आता.

इंटरनेशनल शुगर ऑर्गनाइज़ेशन के मुताबिक़, पिछले छह महीनों में विश्व बाज़ार में चीनी की क़ीमत में 20 फ़ीसदी से ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई है.

अधिकारी क्या कर रहे हैं?

उपभोक्ता मामलों के विभाग के महानिदेशक एएचएम सफ़ीकुज्जमां ने कहा कि विभिन्न सरकारी एजेंसियां ​​चीनी का उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही हैं.

उन्होंने कहा कि “अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में चीनी की क़ीमत, आयात पर आने वाले ख़र्च वगैहरा को ध्यान में रखते हुए ही टैरिफ़ आयोग और वाणिज्य मंत्रालय इस बात पर काम कर रहे हैं कि चीनी की क़ीमत कितनी होनी चाहिए. मंगलवार को भी कारोबारियों के साथ बैठक की गई.”

हाल ही में वाणिज्य सचिव तपन कांति घोष ने कहा, “चीनी के मुख्य स्रोत हमारे लिए भारत और ब्राजील हैं. इस समय भारत से आयात बंद है. अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी चीनी की किल्लत है. चीनी की क़ीमत 450 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 700 डॉलर प्रति टन हो गई. अगर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार अस्थिर है, तो देश के बाज़ार को स्थिर रखना बहुत कठिन है.”

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