प्रचंड के भारत दौरे पर क्यों हुआ विवाद, क्या कह रहे हैं नेपाल के लोग

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DMT : नेपाल  : (07 जून 2023) : –

  • नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल ने 31 मई से लेकर 03 जून तक भारत का दौरा किया.
  • इस दौरान उन्होंने कहा कि दोनों देश आपसी दोस्ती के दायरे में रहकर सीमा समस्या सुलझाएंगे.
  • सीमा समस्या सुलझाने के लिए ज़मीन अदला-बदली के उनके प्रस्ताव की कड़ी आलोचना हो रही है.
  • दौरे के दौरान उनकी उज्जैन स्थित महकालेश्वर मंदिर जाने को लेकर भी उनकी आलोचना हो रही है.
  • उनके भारत दौरे से दो दिन पहले भारत की संसद का उद्घाटन हुआ जिसमें लगे भित्तिचित्र को लेकर विवाद हुआ. इस मामले पर भी प्रचंड की आलोचना की गई.

बीते सप्ताह नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कुछ महत्वपूर्ण समझौते ज़रूर हुए लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस यात्रा ने कई सवालों को जन्म दिया है.

प्रचंड के साथ साझा संवाददाता सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वो 10 सालों में नेपाल से 10,000 मेगावाट बिजली ख़रीदने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करने पर सहमत हुए हैं.

उन्होंने अपने संबोधन में इस बात का भी ज़िक्र किया था कि दोनों देश आपसी रिश्ते को ‘हिमालय जैसी ऊंचाई देने’ के लिए काम करेंगे और उसी भावना के आधार में दोनों के बीच चल रही सीमा समस्या का भी समाधान करेंगे.

नेपाल के कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारी इस यात्रा को उपलब्धि करार दे रहे हैं क्योंकि इस दौरान दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं.

प्रचंड ने कहा कि उनकी यात्रा ने नेपाल-भारत संबंधों को ‘भविष्य के लिए एक स्पष्ट दिशा’ दी है और कहा है कि सीमा समस्या को हल करने सहित कई मुद्दों पर इस दौरान महत्वपूर्ण समझ बनी है.

उन्होंने 10 सालों में नेपाल से 10,000 मेगावाट बिजली ख़रीदने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता का उल्लेख किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि इससे दोनों देशों के बीच ऊर्जा और जल संसाधन के क्षेत्र में सहयोग मज़बूत होगा.

सीमा विवाद पर सवाल

लेकिन विपक्षी नेता यह सवाल उठा रहे हैं कि प्रचंड के दौरे के दौरान नेपाल ने अपने नक्शे में मौजूद कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा इलाक़ों के लिए ज़मीन अदला-बदली करने का विकल्प पेश किया है.

प्रधानमंत्री प्रचंड ने भारत में नेपाली संवाददाता के साथ अपने साक्षात्कार में सीमा समस्या सुलझाने के लिए ज़मीन अदला-बदली को भी एक विकल्प को रूप में प्रस्तुत किया था.

मगर सोमवार को, प्रधानमंत्री प्रचंड ने प्रतिनिधि सभा में इसे बारे में बात की और कहा कि उन्होंने नेपाल के कुछ जानकारों द्वारा उठाए गए कुछ मुद्दों पर चर्चा की है लेकिन नेपाल की ज़मीन की अदला-बदली का विकल्प पेश नहीं किया है.

प्रचंड ने प्रतिनिधि सभा में कहा, “बांग्लादेश मॉडल मेरा नहीं है. इस मुद्दे को उठाने वाले नेता प्रतिपक्ष के क़रीबी एक जाानकार ने मुझे यह बताया है. मुख्य बात है सीमा समस्या का समाधान करना.”

उन्होंने बताया कि कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को नेपाल की ज़मीन के रूप में स्थापित करना सबसे बड़ी बात थी और कहा कि उन्होंने उसी के अनुसार अपनी भूमिका निभाई है.

‘द राज लिव्स: इंडिया इन नेपाल’ के लेखक संजय उपाध्याय ने कहा कि हो सकता है कि प्रधानमंत्री ने जटिल सीमा विवाद पर गतिरोध को कम करने की कोशिश की हो, लेकिन इससे नेपाल में गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं.

वो कहते हैं, “प्रधानमंत्री ने नेपाली लोगों को इस पर बहस करने का मौक़ा दिए बिना ही अपनी राय रख दी है. इस तरह के दीर्घकालिक महत्व के मामले पर हल्के तरीके से आगे बढ़ने की प्रधानमंत्री की कोशिश ने उनके कूटनीतिक कौशल पर सवाल खड़े कर दिए हैं.”

नेपाल में प्रधानमंत्री की यात्रा पर जो सवाल पूछे जा रहे हैं उसमें भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ हुई मुलाक़ात से लेकर उज्जैन की तीर्थ यात्रा और संसद में भित्तिचित्र का मुद्दा शामिल है.

जानकारों का कहना है कि नेपाली थिंक टैंक ‘इमिनेंट पर्सन्स ग्रुप’ की रिपोर्ट को औपचारिक तौर पर नहीं उठाया गया हालांकि उनकी इस रिपोर्ट को नेपाल-भारत संबंधों को परिभाषित करने वाला माना जाता रहा है.

प्रधानमंत्री प्रचंड ने कहा कि इस बारे में भारतीय पक्ष के साथ उनकी अनौपचारिक चर्चा हुई है.

इस रिपोर्ट की उपेक्षा को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए, संजय उपाध्याय कहते हैं कि इस यात्रा ने सवालों का उत्तर देने की बजाय कहीं अधिक प्रश्न खड़े कर दिए हैं.

उन्होंने कहा, “द्विपक्षीय संबंधों में आपसी अविश्वास और संदेह अभी बना हुआ है. इमिनेंट पर्सन्स ग्रुप रिपोर्ट की पूरी तरह से अवहेलना किए जाने के बाद ये प्रश्न अब ख़तरनाक रूप से उजागर हो गए हैं. लोग सवाल कर रहे हैं कि हमारे माओवादी सेंटर के नेता ने उज्जैन में महकालेश्वर मंदिर की यात्रा की.”

“इस मुददे को धार्मिक रंग दिया जा रहा है और इन सभी सवालों ने उनके वैचारिक और राजनीतिक क़द को और कमजोर किया है.”

महाकालेश्वर मंदिर जाने पर क्या बोले कम्युनिस्ट पीएम?

इसके साथ ही एक मुद्दा ये भी उठा कि भारत की नई संसद में बने भित्तिचित्र में नेपाल के लुंबिनी और कपिलवस्तु को दिखाया गया है. इस बारे में नेपाल में काफ़ी विरोध किया जा रहा है.

भारत की नई संसद का उद्घाटन 28 मई को हुआ था.

जानकारों ने कहा कि चूंकि इस दौरान प्रधानमंत्री प्रचंड भारत दौरे पर हैं, उन्हें इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत करनी चाहिए और अपना विरोध जताना चाहिए.

उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर जाने के अपने फ़ैसले का बचाव करते हुए प्रधानमंत्री प्रचंड ने कहा कि धार्मिक स्थल की यात्रा उन्होंने आमंत्रित करने वालों की इच्छा का सम्मान करने के लिए की.

प्रचंड धार्मिक निरपेक्षता के समर्थक हैं और दूसरे धर्मों के कार्यक्रमों में भी खुलकर शिरकत करते हैं.

कुछ लोगों का मानना है कि वो इस मामले में इसलिए सफ़ाई दे रहे हैं क्योंकि वो चाहते हैं कि उनके उज्जैन मंदिर जाने को अन्यथा न लिया जाए.

डोभाल से मुलाक़ात पर भी उठे सवाल

भारतीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की प्रधानमंत्री प्रचंड से हुई मुलाक़ात के प्रोटोकॉल को लेकर भी कई लोग सवाल उठा रहे हैं.

बैठक को लेकर जारी तस्वीरों में भारतीय विदेश सचिव ने भारतीय सुरक्षा सलाहकार के साथ शिरकत की, लेकिन नेपाली प्रधानमंत्री के साथ विदेश मंत्रालय का कोई अधिकारी नज़र नहीं आया.

इस पर प्रधानमंत्री के मुख्य राजनीतिक सलाहकार हरिबोल गजुरेल ने सफ़ाई दी है और कहा है ये एक अलग मामला था और आख़िरी घड़ी में उन्होंने बैठक में हिस्सा लिया.

उन्होंने कहा, “भारत के विदेश मंत्री बाहर गए हुए थे और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से प्रधानमंत्री अकेले मुलाक़ात करने वाले थे. भारतीय विदेश सचिव भी वहां आए. उनके आने के तुरंत बाद दूसरों को कॉल करना संभव नहीं था.”

गजुरेल का कहना है कि प्रधानमंत्री की हालिया यात्रा ने 2019 के बाद से नेपाल-भारत संबंधों में बर्फ जम गई थी, उसे दूर दूर करते हुए उन्होंने एक बार फिर भरोसे का माहौल बनाया है.

जानकार कहते रहे हैं कि ऐसी बेहद महत्वपूर्ण उच्चस्तरीय बैठकों को विदेश मंत्रालय की जानकारी के तहत रखा जाना चाहिए और इसके लिए राजनयिक अधिकारियों को बैठकों में शामिल किया जाना चाहिए.

विपक्षी पार्टी यूएमएल के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सोमवार को संसद की बैठक के दौरान ऐसी बैठकों में प्रोटोकॉल का पालन करने की बात कहकर प्रधानमंत्री के क़दम को ग़लत बताया.

नई दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में प्रधानमंत्री प्रचंड ने कहा था कि उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ‘तीन बार आमने-सामने बातचीत की’ और इस कारण दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण समझौते हुए.

संजय उपाध्याय कहते हैं, “इन तीनों बैठकों में उठे मुद्दों पर गोपनीयता बरतने और हमारे प्रधानमंत्री के समझौतों के लिहाज़ से उन्हें महत्वपूर्ण बताने ने नकारात्मक प्रभाव डाला है. पुरानी पेचीदगियों को बिना सुलझाए नया ख़ाका तैयार करना बुद्धिमानी नहीं है.”

उनका कहना है कि विभिन्न समझौतों को दिखाकर यह निष्कर्ष निकालने की कोशिश की जा रही है कि उनकी यात्रा सफल रही, लेकिन नेपाल-भारत संबंधों में ऐसी सांकेतिक बातों की बजाय ठोस परिणाम की ज़रूरत है.

‘भारत पर नेपाल की बढ़ती निर्भरता’

नेपाल के प्रधानमंत्री के साथ साझा प्रेस वार्ता में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत अगले 10 सालों में नेपाल से 10,000 मेगावाट बिजली खरीदेगा.

प्रधानमंत्री प्रचंड ने कहा कि दोनों देशों के बीच ऊर्जा व्यापार समझौता को लेकर सहमति हो गई है और जल्द ही इसे औपचारिक रूप दिया जाएगा.

भारत ने नेपाल में चीन के निवेश वाली पनबिजली परियोजनाओं में बन रही बिजली नहीं खरीदने की रणनीति अपनाई है.

नेपाली प्रधानमंत्री प्रचंड देश की संसद में कह चुके हैं कि उन्होंने ‘ग्लोबल टेंडर’ के ज़रिए बनने वाली परियोजनाओं के लिए बिजली ख़रीदने का मुद्दा उठाया है.

यात्रा के दौरान, 480 मेगावाट फुकोट करनाली और 669 मेगावाट लोअर अरुण परियोजनाओं पर सहमति बनी, जबकि पेट्रोलियम पाइपलाइनों और ट्रांसमिशन लाइनों के निर्माण सहित अन्य मामलों पर समझौते हुए.

भू-राजनीतिक मामलों के विश्लेषक अजयभद्र खनाल का मानना है कि नेपाल हाल के सालों में भारत पर ‘गंभीर रूप से निर्भर’ हो गया है.

खनाल ने कहा, “अब नेपाल को पहले की तरह स्वतंत्र रूप से काम करने की स्वतंत्रता नहीं है. पहले तो वे अपने राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए इधर-उधर कोई फ़ैसला ले सकते थे. अब ऐसा नहीं होगा.”

चीन के साथ संबंधों पर असर

अजयभद्र खनाल कहते हैं कि पहले भारत के पास नेपाल में राजनीतिक रूप से फ़ायदा उठाने की ज़्यादा ताक़त थी, लेकिन अब उसने इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में भी फ़ायदा उठाने की अपनी ताक़त बढ़ा दी है.

वो कहते हैं, “पेट्रोलियम पाइपलाइन बन रहे है, जलविद्युत व्यापार और नेपाल की बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र भारतीय कंपनियों के प्रभाव में आ गए हैं. वित्तीय प्रणालियों को भी समायोजित किया जा रहा है. भारत के पास इसका फ़ायदा उठाने की ताक़त है, लेकिन नेपाल के पास नहीं.”

नेपाल की विदेश नीति में इसे नई चुनौती मानने वाले खनाल ने कहा कि नेपाल को अपने राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए गंभीर प्रयास करने की ज़रूरत है.

उन्होंने कहा, “नेपाल धीरे-धीरे अपने राष्ट्रीय हित के लिए विकास, घरेलू राजनीति और निवेश जैसे मामलों पर स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. इसलिए नेपालियों को इस पर तथ्यों और आंकड़ों के साथ बहस करनी चाहिए. हमारी स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता ख़त्म न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर होमवर्क की आवश्यकता है.”

वहीं नेपाली अधिकारियों ने कहा है कि वे भारत और चीन दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध चाहते हैं और चाहते हैं कि दोनों ही मुल्क नेपाल में बुनियादी ढांचे के निर्माण के क्षेत्र में नवेश करें. लेकिन ऐसा लगता है कि नेपाल में बढ़ रहे भू-राजनीतिक स्वार्थ के कारण कुछ मुद्दों पर निर्णय लेना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है.

प्रधानमंत्री प्रचंड के देश लौटने के बाद चीन के ग्लोबल टाइम्स में इस सप्ताह छपे एक लेख में टिप्पणी की गई कि भारत और चीन के बीच एक संतुलित विदेश नीति नेपाल के हित में होगी.

लेख में इस बात का ज़िक्र है कि हाल के सालों में नेपाल और चीन के बीच संबंधों को कमज़ोर करने के लिए भारत द्वारा कई क़दम उठाए गए हैं.

लेख में चीनी जानकार झांग जियोदोंग ने मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन नेपाल कॉम्पैक्ट का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के समर्थन के बिना इसे पारित करना संभव नहीं है.

लेख में नेपाल में चीन के निवेश से बनी परियोजनाओं से बिजली की ख़रीद पर भारत के प्रतिबंध लगाने का ज़िक्र किया गया है. इसमें लिखा गया है कि नेपाल के लिए भारत और चीन दोनों के बीच तटस्थता बनाए रखते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़ने में कठिनाइयां बढ़ सकती है.

लेखक संजय उपाध्याय कहते हैं कि बदलते क्षेत्रीय, रणनीतिक और सुरक्षा चिंताओं के बीच भारत ने पश्चिमी देशों के समर्थन से नेपाल में चीन के प्रभाव को कमज़ोर करने की रणनीति अपनाई है.

वो कहते हैं, “इस अवधारणा के साथ समस्या यह है कि दूसरे जिसे अनुचित मानते हैं वह नेपाल के विचार में भी ऐसा हो, ऐसा हमेशा नहीं हो सकता. नेपाल के दो बड़े पड़ोसियों में चीन एक है और नेपाल जितना संभव हो सके पारस्परिक लाभ के लिए उसके साथ गहरा संबंध बनाना चाहता है.”

हालांकि उपाध्याय ये चेतावनी देते हैं कि नेपाल को भारतीय और पश्चिमी नीति के मंचों के माध्यम से संस्थागत या स्वायत्त रूप से निर्णय लेने से वंचित करना क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के हित में नहीं है.

वो कहते हैं, “भारत की निकटता पश्चिमी देशों के साथ है. वहीं चीन नेपाल को दक्षिण एशिया से उसे जोड़ने वाले एक पुल के रूप में देख रहा है. इस लिहाज़ से मौजूदा वक्त नेपाल के लिए आसान समय नहीं है.”

“नेपाल के लिए मौजूदा दौर चुनौतियों से भरा है और राजनीतिक नेतृत्व को जो संवेदनशीलता दिखानी चाहिए वह प्रधानमंत्री प्रचंड की भारत यात्रा में नहीं दिखा.”

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