‘बड़े भाई’ लालू यादव से एक बार फिर क्यों अलग हुए नीतीश कुमार, क्या है अंदर की कहानी

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DMT : बिहार  : (29 जनवरी 2024) : –

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का रिश्ता पुराना है. दोनों ने राजनीति में पहला कदम छात्र जीवन में रखा.

यहीं रिश्ते को एक नाम मिला. लालू प्रसाद यादव मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए ‘बड़े भाई’ हो गए.

प्रदेश की राजनीति में एकसाथ शुरुआत करने और राष्ट्रीय फलक पर नाम बनाने तक दोनों साथ रहे लेकिन 1970 के दशक से शुरू हुई इस कहानी में 1990 के दशक के बाद कुछ अनदेखे मोड़ आने लगे.

पहले हाथ और फिर साथ छूटा. नीतीश कुमार ने अलग पार्टी बनाई. लालू यादव ने भी अलग पार्टी बनाई. करीब तीन दशक से बिहार की राजनीति के सबसे अहम किरदार ये दोनों ही हैं.

नीतीश कुमार ने एक बार फिर बीजेपी का हाथ थाम लिया और रविवार शाम एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली.

मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि जब हर तरफ़ नीतीश कुमार के पाला बदल की चर्चा थी, तब लालू यादव ने उनसे कई बार संपर्क का प्रयास किया. सीनियर नेता शिवानंद तिवारी ने भी दावा किया कि वो भी नीतीश कुमार से बात करना चाहते थे लेकिन कोशिश कामयाब नहीं हुई.

नीतीश कुमार के इस फ़ैसले से राष्ट्रीय जनता दल ही नहीं विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया को भी बड़ा झटका लगा.

इस ‘गठबंधन का आइडिया’ ही नीतीश कुमार लेकर सामने आए थे. उन्होंने ही क्षेत्रीय दलों से बातचीत कर उन्हें साथ लाने की कोशिशें की थीं.

इस बार का अलगाव कई लोगों के लिए हैरान करने की वजह बन गया है. नीतीश कुमार के ‘बड़े भाई’ लालू प्रसाद यादव और इंडिया गठबंधन से अलग होने की क्या वजह रहीं, क्या है अंदर की कहानी?

‘तेजस्वी का बढ़ता कद और लालू यादव की महत्वाकांक्षा’

बिहार के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम का इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर क्या असर होगा, इस सवाल पर ठाकुर ने कहा कि असर ‘ऐसा होगा जिसकी कल्पना लोगों ने आज से पहले नहीं की होगी.’

उन्होंने कहा, “बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मकसद आज पूरा हुआ है. बीजेपी को ‘इंडी’ गठबंधन की वजह से खतरा नजर आ रहा था. विपक्ष की मजबूत मोर्चेबंदी से मोदी सरकार परेशान नजर आने लगी थी. इसलिए बीजेपी ने इस गठबंधन के सूत्रधार को ही खिसकाने की सोची, ताकि गठबंधन ही ध्वस्त हो जाए. वह इसमें सफल भी हुई है. यह आज नजर भी आ रहा है.”

ठाकुर ने कहा कि बिहार में दो तरह की महत्वाकांक्षाओं के बीच टकराव था.

उन्होंने कहा, “पहला टकराव यह था कि तेजस्वी यादव की राजनीतिक हैसियत बनने लगी थी. इससे उनके पिता लालू यादव को लगने लगा था कि उनका बेटा मुख्यमंत्री बन जाएगा. इसके लिए उन्होंने नीतीश कुमार को जरिया बनाना चाहा.”

वहीं नीतीश कुमार ने लालू यादव और महागठबंधन को आधार पर बनाकर खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने की कोशिश की. ऐसे में इन दोनों महत्वाकांक्षाओं में टकराव होने लगा.

ठाकुर कहते हैं, “नीतीश कुमार कहने भर के लिए कहते रहे कि वो प्रधानमंत्री पद का चेहरा या ‘इंडिया’ गठबंधन का संयोजक नहीं बनना चाहते हैं, लेकिन उनकी पार्टी ने जो प्रयास किए वे सब इसी दिशा में थे. यहां तक की नीतीश ने राज्यसभा में जाने की भी इच्छा जताई थी. उन्हें लगता था कि लालू यादव इसके लिए प्रयास करेंगे और ‘इंडिया’ गठबंधन में उनका नाम आगे बढाएंगे. उन्हें खुद इसकी पहल नहीं करनी पड़ेगी. उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिद्वंदी के रूप में देखा जाने लगेगा. लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिखा और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का दबाव बढ़ने लगा. इससे नीतीश कुमार दोनों तरफ से दबाव में थे.”

नीतीश कुमार के बार-बार पाला बदलने से जुड़े सवाल पर ठाकुर ने कहा कि आजकल राजनीति में छवि की चिंता अब कोई नेता नहीं कर रहा है.

‘सत्ता का लोभ आज सबसे ऊपर है. वही सर्वोपरि है, ऐसे में सिद्धांत की बात कहीं ठहरती नजर नहीं आती है.’

बिहार में राजद, कांग्रेस और वाम दलों के महागठबंधन को कमजोर करने की बीजेपी की कोशिशों के सवाल पर ठाकुर ने कहा, “प्रदेश की सत्ता जाने के बाद बिहार बीजेपी में छटपटाहट साफ नजर आ रही थी. बिहार बीजेपी नीतीश को फिर से अपने पाले में कर सरकार बनाने के पक्ष में नहीं थी. लेकिन बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए इसे अपनी प्राथमिकता बना लिया. इस कोशिश में उसने इस बात की चिंता नहीं की कि लोग क्या कहेंगे. उसे अमित शाह का बयान भी याद नहीं रहा, जिसमें उन्होंने कहा था कि बिहार के लोग गांठ बांध लें कि अब हम फिर से नीतीश कुमार को अपने साथ नहीं लेने वाले हैं.”

नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत के सवाल पर ठाकुर ने कहा, “बिहार में नीतीश की राजनीतिक ताकत बढ़ने की जगह घटती जा रही है. उन्हें जनादेश बीजेपी के साथ सरकार चलाने का मिला था, लेकिन वो उसे छोड़कर महागठबंधन में चले आए. इससे आम लोगों में नीतीश कुमार की छवि अच्छी नहीं बन रही है.”

नीतीश कुमार के वापस एनडीए में आने से उसमें शामिल छोटे दलों पर क्या असर पड़ेगा और लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा कितना मुश्किल या आसान होगा.

इस सवाल पर ठाकुर ने कहा, “राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद जो माहौल बना है या जैसा माहौल बना दिया गया है, उसे देखते हुए एनडीए में शामिल दलों को लगता है कि यही अब आसान रास्ता है. यही उनके हक में है.”

“उनको लगता है कि इसमें ही उन्हें कुछ मिल सकता है. विपक्ष में में उनको ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. इसलिए मुझे नहीं लगता की सीट बंटवारे में कोई दिक्कत आएगी. छोटे दलों को यह बात समझ में आ गई है कि उन्हें जो भी मिलेगा, यहीं से मिलेगा. इसलिए वो एक साथ रहेंगे, टूटेंगे नहीं.”

लोकसभा चुनाव में बिहार में कैसा होगा मुकाबला?

लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में विपक्ष की भूमिका पर ठाकुर कहते हैं कि विपक्षी महागठबंधन में शामिल दल राज्य के राजनीतिक घटनाक्रम और तेजस्वी यादव के रोजगार के वायदों और सरकार में उस पर किए गए अमल के आधार पर चुनाव में जाने के बारे में सोच रहे होंगे.

‘इंडिया’ गठबंधन के भविष्य के सवाल पर ठाकुर ने कहा, “उसके आधार को ही नीतीश ने खिसका दिया है. इसमें नीतीश के अलावा अन्य दलों की भी भूमिका है, जैसे अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस. इन दोनों दलों ने अकेले ही चुनाव में जाने की घोषणा की है.”

“ऐसे में यह गठबंधन फिर से मजबूती नहीं हासिल कर पाएगा. ऐसे में जहां पर जो है, उसे ही बचाने की कोशिश होगी, जैसे बिहार का महागठबंधन और महाराष्ट्र का गठबंधन. इन परिस्थितियों में क्षेत्रीय क्षत्रप भी अपनी ताकत बढ़ाना चाहेंगे और कांग्रेस पर दबाव बनाएंगे.”

लालू और कांग्रेस ने किया नीतीश को निराश?

क्या कांग्रेस में नीतीश कुमार को लेकर कोई दुविधा थी, जिसकी वजह से उसने उन्हें ‘इंडिया’ गठबंधन का संयोजक नहीं बनाया, इस सवाल पर ठाकुर ने कहा कि विपक्ष में राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व की क्षमता केवल कांग्रेस के पास ही है.

वो कहते हैं, “नीतीश केवल एक राज्य के नेता हैं. ऐसे में कांग्रेस को लगा कि अगर संयोजक का पद या पीएम पद का चेहरा भी उसके हाथ से चला गया तो उसके पास कुछ नहीं बचेगा, जिसके आधार पर कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति में आगे बढ़ पाती. ऐसे में उसे नीतीश कुमार को ‘इंडिया’ का संयोजक बनाना भी नहीं था.”

“इस काम में लालू यादव ने भी दिल लगाकर प्रयास नहीं किया. इससे नीतीश को निराशा हुई और उन्होंने यह फैसला लिया.”

ठाकुर ने कहा, “अगर कांग्रेस ने शुरू में ही नीतीश कुमार को ‘इंडिया’ का संयोजक बना दिया होता और खुद को राज्यों में मजबूत करती तो शायद आज यह नौबत नहीं आती. निश्चित तौर पर यह कांग्रेस की चूक है.”

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