बाइडन से नहीं मिलेंगे अरब नेता, इसराइल दौरा क्यों बन गया है चुनौती

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DMT : अमेरिका  : (17 अक्टूबर 2023) : –

बुधवार को जो बाइडन की इसराइल यात्रा में बहुत बड़ी चीज़ें दांव पर लगी हुई हैं. वो जब ये यात्रा कर रहे हैं तो मध्य-पूर्व में हालात काफ़ी गंभीर हैं.

खासकर ग़ज़ा के अस्पताल पर हुए हमले के बाद इस क्षेत्र में हालात कभी भी तेज़ी से बदल सकते हैं. इस घटना में 500 लोग मारे गए हैं.

हमास का कहना है कि अस्पताल पर इसराइल ने एयर स्ट्राइक की है, लेकिन इसराइल कह रहा है कि अल अहली अस्पताल पर फ़लस्तीनी इस्लामिक जिहाद ने रॉकेट दागा है.

अमेरिका ने कहा है कि इसराइल ने अस्पताल पर हमला करने के आरोप को पूरी तरह ख़ारिज किया है.

अरब नेताओं ने रद्द की जॉर्डन की बैठक

योजना ये थी कि पहले बाइडन इसराइल जाएंगे, पीएम बिन्यामिन नेतन्याहू से मिलेंगे और फिर जॉर्डन में अरब देश के नेताओं से मुलाकात करेंगे.

लेकिन बाइडन के उड़ान भरने से ठीक पहले पता चला कि जॉर्डन के अम्मान में होने वाली अरब नेताओं की मुलाक़ात हमले के बाद रद्द कर दी गई है. बाइडन इसराइल के बाद जॉर्डन जाकर ये साबित करना चाहते थे कि वह एक ईमानदार मध्यस्थ हैं.

अब जब जॉर्डन, मिस्र और फ़लस्तीनी प्राधिकरण के नेता ने बाइडन के साथ होने वाली बैठक रद्द कर दी है, तो ये ऐसा है जैसे जो बाइडन के मुंह पर अरब के नेतओं ने कह दिया हो कि उन्हें अमेरिका की मध्यस्थता करने की क्षमता पर भरोसा ही नहीं रहा. ये जो बाइडन के लिए शर्मिंदगी से कम नहीं है.

ये बात छिपी नहीं है कि जब इसराइल और हमास के बीच युद्ध की बात आती है तो अमेरिका किसके साथ खड़ा है.

सात अक्टूबर को इसराइल के हमास पर हुए हमले को अमेरिका ने ‘बेहद बर्बर और दुष्टतापूर्ण’ बताया था.

बाइडन का जल्दबाज़ी में तैयार किया गया ये दौरा अमेरिका का इसराइल के प्रति एकजुटता दिखाने की कोशिश है.

लेकिन बाइडन को ग़ज़ा में मर रहे आम लोगों की जान को लेकर अपनी फ़िक्र के साथ ही हमास को नष्ट करने के इसराइल के लक्ष्य के समर्थन को भी संतुलित करना पड़ रहा है.

अमेरिका ने इसराइल को सार्वजनिक रूप से “युद्ध के नियमों” के अनुसार कार्रवाई करने को कहा है लेकिन बंद दरवाजे के पीछे संदेश और अधिक कठोर हो सकता है.

व्हाइट हाउस के नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा है कि अमेरिका और इसराइल युद्ध के नियमों के अनुरूप काम करते हैं, ना कि ‘हमास की तरह’ उसके ख़िलाफ़.

उन्होंने कहा था, “युद्ध नियमों का पालन हमारी और इसराइल की बात का आधार रहा है.”

अमेरिका चाहता है कि इसराइल ग़ज़ा में मदद पहुंचाने की इजाज़त दे और ग़ज़ा में फंसे अमेरिकी लोगों को निकलने का सुरक्षित मार्ग दिया जाए.

सोमवार को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और इसराइली पीएम बिन्यामिन नेतन्याहू के बीच चली नौ घंटे की बैठक के बाद एंटनी ने कहा कि उन्होंने बातचीत उद्देश्य की दिशा में आगे बढ़ाई है, हालांकि इस बैठक में किसी मुख्य बात पर सहमति नहीं बनी.

बीबीसी के रक्षा संवाददाता फ़्रैंक गार्डनर कहते हैं, “ये असाधारण है क्योंकि आमतौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति का दौरा होने में हफ़्तों का समय लगता है, सिक्योरिटी सर्विसेज़ तैयारियां करती हैं. यात्रा का मार्ग योजना के तहत तय किया जाता है. लेकिन उनका ये अचानक किया जाने वाला दौरा बताता है कि मध्य पूर्व की स्थिति को लेकर व्हाइट हाउस कितना चिंतित है और ये आपातकालीन स्थिति है. ”

“अमेरिका की इस वक्त दो चिंताएं हैं. पहली- बड़ी संख्या में मरते आम लोग, अमेरिका ये मानता है कि इसराइल को अपनी सुरक्षा करने और हमास पर हमला करने का अधिकार है, लेकिन इन सबके बीच वह चाहते हैं कि इसराइल आम लोगों की जान की भी परवाह करे लेकिन अभी इसराइल की ओर से ऐसा होता नहीं दिख रहा. दूसरी चिंता है कि इस युद्ध में ईरान भी प्रॉक्सी सेना के साथ दक्षिणी लेबनान में हरकत करता दिख रहा है.”

वो बाइडन के इस दौरे पर कहते हैं, “नेतन्याहू के लिए जो बाइडन का दौरा बेहद अहम है क्योंकि इस हमले से पहले नेतन्याहू की सरकार राजनीतिक संकट में थी और साल भर से उनकी सरकार के अति राष्ट्रवादी नीतियों को लेकर देशभर में असमान्य विरोध प्रदर्शन हो रहे थे.”

“जब से इस बार बिन्यामिन नेतन्याहू चुने गए उन्हें व्हाइट हाउस से बुलावा नहीं आया. माना जा रहा था कि उनकी सरकार के अति राष्ट्रवादी रवैये से बाइडन प्रशासन नाराज़ था. ये इमरजेंसी स्थिति है. इसराइल में इमरजेंसी युद्ध सरकार है जिसमें विरोधी खेमे के नेता भी साथ आए हैं. ये दौरा सुरक्षा और इस क्षेत्र में कभी भी बिगड़ सकने वाले हालात की चर्चा पर फोकस होगा.”

मध्य पूर्व में एक बड़े संघर्ष का डर

एक बड़ा डर ये भी है कि ग़ज़ा पर तेज़ होते इसराइल के हमले इस क्षेत्र में संघर्ष को और ज़्यादा फैला देंगे जिसमें यहां के और भी देश शामिल हो जाएंगे.

कई बड़ी सुरक्षा चिंताएं यहां गहराती जा रही हैं.

विदेश में राष्ट्रपति के साथ जाने वाला तंत्र सबसे उपयुक्त समय में काफ़ी मज़बूत और तगड़ा होता है, लेकिन संघर्ष क्षेत्र में जल्दबाज़ी में तैयार की गई इस यात्रा की एक अलग चुनौती होगी.

सोमवार को तेल अवीव में हवाई हमले के सायरन बजने के कारण ब्लिंकन और उनकी टीम को एक बंकर में शरण लेनी पड़ी, ये करना एक राष्ट्रपति के लिए मुश्किल होगा.

यहां जो बाइडन की उम्र उनके पक्ष में जाएगी और संभव है कि उनके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था हो.

बाइडन बीते 50 सालों से इसराइल जा रहे हैं और 40 सालों से नेतन्याहू को जानते हैं. बाइडन ने नेतन्याहू के साथ अपने रिश्ते को ‘फ़्रैंक रिलेशनशिप’ बताया था.

इसलिए इस रिश्ते में विचारों का आदान- प्रदान ज्यादा ईमानदार और खुला होगा, बजाय उन देशों के जहां नेता निजी तौर पर एक-दूसरे को ठीक से नहीं जानते.

बाइडन को ये बहुत अच्छे से पता है कि वह इस युद्ध में आगे क्या चाहते हैं और क्या नहीं चाहते है.

उनका मानना है कि ग़ज़ा पर कब्ज़ा करना इसराइल की गलती होगी.

उन्होंने कहा है कि एक फ़लस्तीनी प्राधिकरण और फ़लस्तीनी देश के लिए एक मार्ग तैयार करने की ज़रूरत है, हालांकि बीते कई सालों से फ़लस्तीनियों के अलग देश बनाने की कोशिशें ठप पड़ी हैं.

बाइडन चाहते क्या हैं?

बाइडन निश्चित रूप से ग़ज़ा में इसराइल के अधिक सावधानी से कार्रवाई करने और संघर्ष को जल्द से जल्द ख़त्म करने के लिए इसराइल पर दबाव डालेंगे.

अमेरिका इसराइल का हमेशा से सबसे भरोसेमंद दोस्त रहा है. व्हाइट हाउस में कोई भी नेता हो उसने हमेशा इसी नीति का पालन किया है.

राष्ट्रपति बाइडन दशकों से इसराइल के समर्थन में सबसे मुखर अमेरिकी नेताओं में से एक रहे हैं, उन्होंने 1986 में कहा था कि “अगर इसराइल नहीं होता, तो अमेरिका को इस क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा के लिए एक इसराइल का आविष्कार करना पड़ता.”

अब समय आ गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति इस ख़ूनी जंग को और पूरे मध्य पूर्व में चौतरफा युद्ध को रोकने के लिए अपने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करें.

हालांकि जो कुछ भी ज़मीन पर होता दिख रहा है उसके लिहाज से अमेरिका के लिए ऐसा कर पाना एक बहुत बड़ी चुनौती है.

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