भारत के आधुनिक और युद्धक ड्रोन के निशाने पर कौन?

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DMT : दिल्ली : (21 जुलाई 2023) : –

जनवरी 2018 में उत्तर पश्चिम सीरिया में रूस प्रशासित ख़मीम सैन्य अड्डे पर विद्रोहियों के हमले के कुछ दिनों बाद उसी जगह पर 13 ड्रोनों ने एक साथ हमला कर दिया.

युद्ध के इतिहास में यह अपनी तरह का पहला हमला था, जब एक साथ ड्रोन्स के एक समूह ने हमला बोला था.

रूसी सेना ने उनमें से सात ड्रोन्स का गिरा दिया और बाक़ी छह को उन्होंने जाम कर दिया था. इस हमले में जानोमाल का कोई नुक़सान नहीं हुआ लेकिन यह चिंताजनक घटनाक्रम था.

ख़मीम का हमला एक विद्रोही गुट की तरफ से किया गया था, लेकिन अब रूस और यूक्रेन जैसी पारंपरिक सैन्य शक्तियां भी दुश्मन को निशाना बनाने के लिए ‘स्वार्म ड्रोन’ यानी ड्रोन्स के जत्थों का इस्तेमाल कर रही हैं.

स्वार्म ड्रोन क्या हैं?

ड्रोन, छोटे उड़ने वाले मानवरहित उपकरण होते हैं जिन्हें ‘यूएवी’ (अनमैन्ड एरियल व्हीकल) कहा जाता है. ये विमाननुमा भी हो सकते हैं.

ये अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं और इन्हें इस्तेमाल करना भी आसान होता है. इनमें ऐसी क्षमता होती है जो पारंपरिक युद्ध शैली को पूरी तरह उलट सकती है. ये सामान और हथियार ले जाने में सक्षम होते हैं, कई ड्रोन ऐसे भी होते हैं जो ठिकाने के साथ सीधे टकराकर उसे नष्ट कर देते हैं.

हालांकि ख़मीम एयरबेस पर हुए हमले के लिए इस्तेमाल किये गए ड्रोन, डिज़ाइन के हिसाब से शुरुआती क़िस्म के थे. लेकिन वे युद्ध के एक ऐसे भविष्य का प्रतीक थे जिसमें एक से अधिक ड्रोन एकदूसरे के साथ सहयोग और सामंजस्य के साथ लक्ष्य पर हमले करते हैं और मानव हस्तक्षेप के बिना असामान्य तेज़ गति से काम करते हैं.

रक्षा प्रणाली की भाषा में इस तरह के ड्रोन या ‘यूएवी’ हमलों को ‘स्वार्म ड्रोन’ कहा जाता है. इसमें ड्रोन्स का एक पूरा जत्था जिसमें 10 या 100 या कभी-कभी एक हज़ार से अधिक ड्रोन्स होते हैं, एक साथ उड़ान भरते हुए लक्ष्य को निशाना बनाते हैं.

इसमें हर ड्रोन स्वतंत्र रूप से काम करने के साथ-साथ समूह के बाक़ी ड्रोन्स के साथ इस तरह से सामंजस्य बनाता है कि हर पल इंसानी ऑपरेटर के हस्तक्षेप के बिना यह अपने काम को प्रभावी ढंग से अंजाम देते हैं.

भविष्य के लिए भारत किस कोशिश में है?

भारत की रक्षा संस्थाएं तकनीक में हो रहे बदलावों से पूरी तरह परिचित हैं.

सीरिया में हुई घटना का उल्लेख करते हुए 2021 में उस समय के सेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा था, “कंप्यूटर एल्गोरिद्म पर आधारित ड्रोन के आक्रामक इस्तेमाल ने युद्ध के दौरान पारंपरिक सैनिक हार्डवेयर को चुनौती दी है जैसे कि टैंक, तोपख़ाना और ज़मीनी फ़ौज.”

उनका कहना था, “ड्रोन का इस्तेमाल पहले सीरिया के शहर इदलिब और फिर आर्मेनिया- अज़रबैजान के युद्ध में हुआ था.”

उन्होंने यह भी कहा था कि महत्वपूर्ण संयंत्रों पर हमलों को रोकने के लिए भारत ड्रोन के आक्रामक इस्तेमाल और ड्रोन रोधी प्रणाली, दोनों पर ही काम कर रहा है.

हाल के सालों में भारत में जो क़दम उठाए हैं उनसे यही इशारे मिलते हैं.

भारत सरकार ने अपनी ड्रोन पॉलिसी को एक स्वतंत्र रूप दिया है, ड्रोन की स्थानीय स्तर पर तैयारी के लिए सरकार ने 2022- 2023 के बजट में 120 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है और ड्रोन बनाने की क्षमता को बढ़ाने के लिए भारत ने निजी कंपनियों के साथ भी सहयोग किया है.

यह सरकार की 2030 तक भारत को ड्रोन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाने की कोशिशों का हिस्सा है.

भारतीय वायुसेना के लिए स्वार्म ड्रोन तैयार करने वाली एक कंपनी ‘न्यूज़ स्पेस’ के संस्थापक समीर जोशी कहते हैं कि स्वार्म ड्रोन ही युद्ध का भविष्य हैं और भारत भी इसमें भागीदारी की कोशिश कर रहा है.

ड्रोन स्टार्टअप्स को भारत में बढ़ावा

‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम के तहत सरकार ऐसे स्टार्टअप्स की मदद कर रही है जो नई तकनीक लाने की कोशिश कर रहे हैं.

इन कोशिशों के तहत भारत ने 2018 में एक ड्रोन स्टार्टअप अवार्ड शुरू किया जिसे पहली बार समीर जोशी की कंपनी ‘न्यूज़ स्पेस’ ने जीता था.

समीर जोशी ने एक एयर शो के दौरान रक्षा ड्रोन की बात करते हुए बताया था कि साल 2018 में भारत में 50 से 60 स्टार्टअप्स एक हज़ार ड्रोन ऑर्डर्स के लिए मुक़ाबला कर रहे थे. अब ढाई हज़ार ड्रोन ऑर्डर्स के लिए 200 कंपनियां हैं. इसका मतलब यह है कि ड्रोन के इस्तेमाल और उसकी मांग में वृद्धि हुई है.

उन्होंने कहा था, “मैंने एक तरह से ड्रोन के नियमों को नज़रअंदाज़ करने से इनकार करने तक, और फिर समर्थन करने से उसे स्वीकार करने तक का बदलाव देखा है.”

मेहता के स्टार्टअप ने 2009 में बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर फ़िल्म 3 इडियट्स में इस्तेमाल होने वाले वर्टिकल ड्रोन का प्रोटोटाइप बनाया था. अब भारतीय सेनाएं उनके बनाए ड्रोन्स को चीन के साथ लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर इस्तेमाल कर रही हैं.

सेना ने उनकी कंपनी के साथ ऊंचाई पर उड़ने वाले और खड़ी उड़ान भरने वाले ड्रोन उपलब्ध कराने के लिए कई समझौते किए हैं जो सीमावर्ती क्षेत्रों की निगरानी में सेना के लिए एक कारगर हथियार साबित हो सकते हैं.

यह ड्रोन संभावित तौर पर अत्यंत ऊंचाई पर शून्य से नीचे के तापमान में भी उड़ान भर सकते हैं और लंबे समय तक आसमान में बिना ‘ट्रेस’ हुए अपने काम अंजाम दे सकते हैं.

उनकी कंपनी के ड्रोन्स को सिविल काम के साथ-साथ कश्मीर में चरमपंथियों का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा चुका है.

भारत में ड्रोन्स की तैयारी

भारत का स्थानीय ड्रोन प्रोग्राम अमेरिकी ड्रोन के इस्तेमाल से शुरू हुआ था. इस ड्रोन की मदद से भारत के डिफ़ेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन (डीआरडीओ) ने ‘लक्ष्य’ नाम का ड्रोन तैयार किया है जो इंसानी निगाह से आगे तक जा सकता था.

इसके बाद डीआरडीओ ने ‘निशांत’ और ‘गगन’ जैसे कई शॉर्ट रेंज ड्रोन्स तैयार किए जिसमें हाई रेज़ुलेशन थ्रीडी तस्वीरें बनाने की क्षमता है. इसी तरह ‘रुस्तम 2’ ख़ुद-ब-ख़ुद लैंडिंग की क्षमता रखता है और यह निगरानी और जासूसी के लिए बेहतरीन ड्रोन है.

वैसे भारत ने सबसे अधिक इसराइल से ड्रोन आयात किए हैं. भारत ने पहली बार इसराइल से ही 1998 में ड्रोन आयात किया था.

फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के अनुसार भारत में ड्रोन के उत्पादन की क्षमता 2025 तक 4.2 अरब डॉलर तक हो जाएगी और साल 2030 तक इसकी क्षमता 23 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगी.

लेकिन जानकार मानते हैं कि ड्रोन उत्पादन में विस्तार बहुत हद तक सरकार की नीतियों पर निर्भर करेगा. फ़िलहाल सरकार ने शोध और रक्षा उद्देश्यों के अलावा दूसरे देशों से हर प्रकार के ड्रोन के आयात पर पाबंदी लगा दी है ताकि भारत में इसके उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके.

‘भारत 2030 तक ड्रोन्स उत्पादन का केंद्र बनना चाहता है’

भारत के ड्रोन्स की क्षमता, चाहे वह स्थानीय स्तर पर तैयार हो या आयात किया गया हो, मूलतः कम और मध्यम ऊंचाई तक जाने वाले ड्रोन्स तक सीमित है.

अधिक ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता वाले आधुनिक ड्रोन्स के लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है.

हाल के अमेरिकी दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 प्रिडेटर ड्रोन्स के लिए एक समझौते पर दस्तख़त किया. ये ड्रोन अधिक ऊंचाई पर काम करते हैं, इन्हें ‘हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेन्स’ ड्रोन कहते हैं.

रक्षा मामलों के विशेषज्ञ ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) राहुल भोंसले इस बात पर रोशनी डालते हैं कि भारत के पास इस तरह के ड्रोन्स को स्थानीय तौर पर बनाने का कोई विकल्प नहीं है और ना ही उसे बनाने के लिए किसी दूसरे देश के साथ कोई साझेदारी है.

वह कहते हैं, “जहां तक इनकी निगरानी की क्षमताओं का संबंध है, यह ड्रोन अब तक के सबसे बेहतर ड्रोन है. निगरानी के अलावा इसमें लक्ष्य को निशाना बनाने की क्षमता है.”

जम्मू एयर बेस पर साल 2021 के ड्रोन हमले का उल्लेख करते हुए वह कहते हैं, “जम्मू के बाद हमने बहुत से ड्रोन रोधी ड्रोन तैयार किए हैं, मुझे विश्वास है कि भारतीय वायु सेना ने इन्हें तैनात कर दिए हैं.”

भारत और उसके पड़ोसी देश

चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण रहते हैं लेकिन अगर चीन की क्षमताओं की बात करें तो उसने अपना स्थानीय ड्रोन उत्पादन सिस्टम तैयार कर लिया है.

समीर जोशी कहते हैं, “2000 के दशक की शुरुआत में चीन ने निर्णय लिया था कि जो कुछ उनके पास है वह बहुत अच्छा नहीं है लेकिन जो वह चाहते हैं, वह अच्छा और अद्वितीय हो. चीन जो चाहता था, उसने उस पर काम शुरू कर दिया. पिछले 20 सालों में उन्होंने सब कुछ बदल कर रख दिया.”

हालांकि युद्ध की स्थिति में इस्तेमाल नहीं होने के कारण चीन के स्थानीय ड्रोनों की क्षमता का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है लेकिन यह स्पष्ट है कि उसने ड्रोन की एक रेंज तैयार की है और भविष्य पर नज़र रखते हुए उन्हें और तैयार कर रहा है.

इसी तरह पाकिस्तान के पास चीन और तुर्की की मदद से मिले ड्रोन्स हैं. तुर्की से मिले ड्रोन्स कितने प्रभावी हैं, वह अज़रबैजान-आर्मीनिया और यूक्रेन-रूस जैसे युद्धों में साफ़ हो गया है.

भोंसले कहते हैं, “इसराइल और अमेरिकी ड्रोन्स हमें पाकिस्तान पर और कुछ हद तक चीन पर भी बढ़त दिलाते हैं क्योंकि यह युद्धों में आज़माए जा चुके हैं.”

क्या भारत ड्रोन बनाने का वैश्विक केंद्र बन सकता है?

एक ऐसे उद्योग में क़दम जमाने के लिए, जिस पर अमेरिका और चीन का वर्चस्व है और अब तुर्की और ईरान जैसी उभरती हुई शक्तियां भी जिस क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रही हैं, भारत समीर जोशी और मेहता जैसे लोगों पर निर्भर कर रहा है.

भारत में स्थानीय स्तर पर ड्रोन बनाने वाले इसमें आने वाली मुश्किलों के बारे में बताते हैं. इन मुश्किलों में सॉफ़्टवेयर का लाइसेंस और भविष्य के ड्रोन में इस्तेमाल होने वाले हार्डवेयर्स के आयात जैसी चुनौतियां हैं.

हालांकि वे सरकार की ओर से की गई कोशिशों की तारीफ भी करते हैं लेकिन कहते हैं कि इस क्षेत्र में फंडिंग जैसी समस्याएं लगातार बनी हुई हैं.

रक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ क़मर आग़ा का कहना है कि दुनियाभर में भारत का एक बड़ा टेक्निकल वर्ग फैला हुआ है जो उसकी ड्रोन इंडस्ट्री के लिए लाभकारी साबित हो सकता है. उनका कहना है कि इन उद्देश्यों के लिए फंड तलाश करना अधिक मुश्किल काम है.

वह कहते हैं, “अब तकनीक पर किसी का अकेले अधिकार नहीं है. बल्कि फंडिंग की अधिक ज़रूरत है. अगर सरकार फंड उपलब्ध करा दे तो भारत में बहुत क्षमता है.”

लेकिन क्या भारत में उपलब्ध तकनीकी क्षमताएं उन चुनौतियों से पार लगा सकती हैं जिनका उसके इस नए नवेले उद्योग को सामना है?

वहीं समीर जोशी कहते हैं कि पिछले दो-तीन वर्षों से सरकार काफ़ी ध्यान से उन जैसे ड्रोन तैयार करने वालों की बात सुन रही है लेकिन वो कहते हैं, “मेरा मानना है कि हमें इसका पहला संकेत 2025 से 2027 के बीच मिलेगा कि क्या सरकार ड्रोन सेक्टर के लिए जो चाहती है, हम उसके लिए तैयार हैं या नहीं.”

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