राहुल गांधी की कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में कितनी टक्कर दे पाएगी मोदी-शाह की बीजेपी?

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DMT : छत्तीसगढ़  : (03 सितंबर 2023) : –

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस नेता राहुल गांधी छत्तीसगढ़ में आमने-सामने हैं.

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की मुंबई बैठक के बाद ये पहला मौका है,जब दोनों नेताओं ने एक ही दिन चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ में रैली की.

अमित शाह का पिछले 70 दिनों में छत्तीसगढ़ का ये चौथा दौरा था. बीजेपी के कई नेता साफ़ कर चुके हैं राज्य का विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा.

जबकि कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस साल फरवरी में पार्टी अधिवेशन के बाद पहली बार राज्य का दौरा कर रहे थे. यानी राहुल गांधी की कांग्रेस का मुक़ाबला बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व से ज़्यादा मोदी-शाह की जोड़ी से है.

अमित शाह ने शनिवार को छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार के ख़िलाफ़ आरोप पत्र जारी किया. इसे ‘ब्लैक पेपर’ कहा जा रहा है.

उन्होंने इस ‘आरोप पत्र’ में राज्य में कथित शराब घोटाले का जिक्र किया और कहा कि यहां ‘घपले-घोटालों और वादाख़िलाफी की सरकार’ चल रही है.

उन्होंने कहा, “जो लोग जेल में बंद हैं, वो लोग (सत्ताधारी पार्टी के नेताओं) इनके नाम उजागर न कर दें इसलिए इन्हें नींद नहीं आती.”

वहीं राहुल गांधी ने कहा,”बीजेपी और नरेंद्र मोदी हिंदुस्तान के दो-तीन अरबपतियों के लिए काम करते हैं. मैं आपको साफ़ कर देता हूं कि हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री अदानी की कोई जांच नहीं करा सकते क्योंकि जांच का नतीजा निकला तो उसका नुकसान अदानी को नहीं किसी और को होगा.’’

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव इस साल के अंत तक हो सकते हैं. लिहाजा बीजेपी, कांग्रेस को टक्कर देने के लिए आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए है.

2 सितंबर को रायपुर में अमित शाह का भूपेश बघेल सरकार के ख़िलाफ़ आरोप पत्र जारी करना इसी रणनीति का हिस्सा है.

बीजेपी ने राज्य की 21 सीटों पर उम्मीदवारों का भी एलान कर दिया है. बीजेपी के कई बड़े नेता छत्तीसगढ़ में जमे हुए हैं और पार्टी की रणनीति तैयार कर रहे हैं.

पार्टी के जो बड़े नेता इस समय राज्य के दौरे पर हैं उनमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया और पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष शामिल हैं. अमित शाह राज्य के दो दिवसीय दौरे पर हैं.

छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व में 15 साल (2003-2018) तक सत्ता में रहने के बाद बीजेपी को 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था.

कांग्रेस को इस चुनाव में 90 में से 68 सीटें मिली थीं. जबकि बीजेपी को सिर्फ 15 सीटें मिली थीं. जनता कांंग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) को पांच सीटें और बीएसपी को दो सीटें मिलीं.

जानकार कांग्रेस की स्थिति यहां मजबूत होने का दावा कर रहे हैं. वहीं बीजेपी इस बार उसे चुनाव मैदान में चुनौती देने के लिए अपनी तैयारियां पुख्ता करने की कोशिश में लगी है.

पिछले कुछ वर्षों में विपक्ष ने जिन राज्यों में बीजेपी को हराया है, उनमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है.

2018 के चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी के ख़िलाफ़ जो बड़ी जीत मिली थी उसकी कई वजहें थीं.

जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने बीबीसी से कहा कि कांग्रेस की जीत में पार्टी के एकजुट होने का बड़ा रोल था.

उन्होंने कहा, “2018 में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की लीडरशिप एकजुट थी. भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंहदेव में भले ही प्रतिद्वंद्विता हो लेकिन पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ी और जीतने में कामयाब रही.”

अमिताभ तिवारी कहते हैं, “2018 में कांग्रेस ने तीन बड़े वादे किए थे. किसानों की कर्ज माफी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य और शराबबंदी. कांग्रेस ने ‘रमन का चश्मा’ जैसा जुमला भी उछाला. पार्टी का कहना था कि रमन सिंह (पूर्व मुख्यमंत्री) के चश्मे से सब अच्छा दिखता है. जबकि राज्य के हालात बेहद खराब हैं.”

अमिताभ तिवारी कहते हैं कि स्थानीय मुद्दों, एकजुट नेतृत्व और वोटरों से सीधे संवाद ने कांग्रेस को 2018 के चुनाव को जीतने में काफी मदद की.

बीजेपी की चुनावी स्टाइल और स्थानीय उम्मीदवार

बीजेपी के बड़े नेता छत्तीसगढ़ का लगातार दौरा कर रहे हैं. अमित शाह के अलावा बीजेपी के कई बड़े नेता लगातार रायपुर पहुंच कर कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में लगे हैं.

अमित शाह ने 22 जून को दुर्ग में आम सभा को संबोधित किया था. इसके बाद भी 5 जुलाई और 22 जुलाई को वो रायपुर आए थे. अब वो एक बार फिर रायपुर में है.

आखिर बीजेपी के बड़े नेताओं के तूफानी दौरे छत्तीसगढ़ में कमजोर दिख रही पार्टी को कांग्रेस के मुकाबले खड़ा कर पाएंगे?

अमिताभ तिवारी कहते हैं, “रमन सिंह बीजेपी में सक्रिय नहीं है या फिर निष्क्रिय कर दिए गए हैं. पिछले पांच साल में बीजेपी नई लीडरशिप खड़ी नहीं कर पाई है. पिछले साल आदिवासी नेता विष्णुदेव सॉय की जगह ओबीसी लीडर अरुण साव को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया. हालांकि उनकी सीमित अपील है. पार्टी में एक मात्र बड़े नेता बृजमोहन अग्रवाल है. लेकिन उनकी जाति के मतदाताओं की आबादी राज्य में एक से डेढ़ फीसदी ही है. पार्टी में गंभीर लीडरशिप संकट है’’

लीडरशिप के मामले में कांग्रेस, बीजेपी की तुलना में काफी अच्छी स्थिति में हैं. भूपेश बघेल को चुनौती देने वाले टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बना दिया गया है. जबकि ताम्रध्वज साहू को कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया है.

अमिताभ तिवारी कहते हैं, ” कोई भी सत्ताधारी पार्टी सीट दर सीट चुनाव नहीं लड़ सकती है. और बीजेपी तो वैसे भी सीट दर सीट चुनाव नहीं लड़ती. वो राष्ट्रीय मुद्दों और राष्ट्रीय नेताओं की छवि के आधार पर चुनाव लड़ती है. अब जाकर बीजेपी को लग रहा है कि उसे छत्तीसगढ़ में सीट दर सीट चुनाव लड़ना चाहिए. इसीलिए इसने 21 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का एलान कर कर दिया है. जब विपक्ष में रहते हए स्थानीय चुनाव लड़ना होता है तो स्थानीय उम्मीदवार अहम हो जाते हैं.”

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीतने की कितनी संभावना है?

इस सवाल पर अमिताभ तिवारी कहते हैं, “कांग्रेस राज्य में चलाई जा रही अपनी स्कीमों की वजह से सफल रही है. छत्तीसगढ़ में धान और दूसरी फसलों का अच्छा समर्थन मूल्य एक बड़ा मुद्दा रहा है. इसके अलावा बीजेपी के पास वहां कोई मजबूत ओबीसी चेहरा नहीं है. जबकि भूपेश बघेल बड़े ओबीसी नेता हैं.”

वो कहते हैं, ” बीजेपी राज्य में कोई मजबूत लीडर भी खड़ा नहीं कर पाई है. आरएसएस का खुद मानना है कि मौजूदा बीजेपी अध्यक्ष के नाम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता. इसलिए पार्टी अब बैकफुट पर है. राष्ट्रीय मुद्दों और मोदी और अमित शाह के चेहरे पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी अब स्थानीय उम्मीदवारों पर भरोसा कर रही है.’’

क्या बीजेपी अपने डर की वजह से आक्रामक हो रही है. क्या इसीलिए उसने कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के ख़िलाफ़ 102 पन्नों का लंबा-चौड़ा ‘आरोप पत्र’ पेश किया है. आखिर इस आरोप पत्र में कितना दम है?

आलोक पुतल कहते हैं, “ये तो पता नहीं लेकिन आने वाले दिनों में राज्य में ईडी और सीबीआई की रेड बढ़ सकती हैं. हालांकि केंद्रीय एजेंसियों को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं और कुछ सरकारी अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के आधार भी मिल रहे हैं. सरकार के कुछ बड़े अधिकारी जेल में भी हैं. ये लिस्ट अगले दस-पंद्रह दिनों में और बड़ी हो सकती है.”

पुतुल कहते हैं, “अमित शाह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के दूसरे बड़े नेताओं के जितने दौरे हो चुके हैं उससे ये साफ है कि बीजेपी मुकाबले के लिए तैयार है. अभी से एक महीने पहले संकट ये था कि चुनाव में उसका प्रमुख चेहरा कौन होगा. वो चुनावी होड़ में खुद को रख पाएगी या नहीं. लेकिन अब बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि पार्टी कांग्रेस को चुनौती देने के मूड में दिख रही है. अब तो बीजेपी लगभग बराबरी का मुकाबला करने की स्थिति में आती जा रही है.”

वो कहते हैं, “बीजेपी के बड़े नेताओं के लगातार दौरों से पार्टी कार्यकर्ताओं में थोड़ा जोश भरा है. वरना उसका आत्मविश्वास कमजोर था.अब बीजेपी कार्यकर्ता सड़क पर संघर्ष करने की स्थिति में दिख रहे हैं. वरना पिछले कुछ समय में विधानसभा में शोर-शराबा तो जरूर हुआ लेकिन बीजेपी नेता जनता के बीच नजर नहीं आ रहे थे. लेकिन अब कांग्रेस से मुकाबले के लिए अपनी तैयारियों को पुख्ता करती नजर आ रही है.”

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