सऊदी अरब के बाद रूस ने भी लिया यह फ़ैसला, क्या भारत पर पड़ेगा भारी?

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DMT : सऊदी अरब : (04 जुलाई 2023) : –

सऊदी अरब और रूस के फ़ैसले का असर भारत पर सीधा पड़ सकता है.

सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्रालय ने जुलाई महीने में 10 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का उत्पादन घटाने का फ़ैसला किया है जो कि अगस्त तक जारी रहेगा.

एसपीए सूत्रों के हवाले से लिखता है कि तेल उत्पादन करने वाले देशों के समूह ओपेक प्लस के तेल बाज़ार को स्थिरता देने के प्रयासों की कोशिशों के लिए ये फ़ैसला लिया गया है.

वहीं, सऊदी अरब को देखते हुए रूस ने भी अगस्त में प्रतिदिन पांच लाख बैरल तेल निर्यात कम करने का फ़ैसला किया है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, मॉस्को की ये कोशिश सऊदी अरब के साथ मिलकर तेल के वैश्विक दामों में उछाल लाने की है.

रूस का क्या है कहना

सऊदी अरब और रूस के फ़ैसले के बाद कच्चे तेल के दामों में 1.6 फ़ीसदी का उछाल आया है और एक बैरल कच्चे तेल की क़ीमत 76.60 डॉलर तक पहुंच गई है.

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हुए हैं, इसके बावजूद रूस का तेल निर्यात मज़बूत बना हुआ है. रूस ने फ़ैसला किया हुआ है कि वो इस साल के आख़िर तक तेल उत्पादन घटाएगा और 95 लाख बैरल प्रतिदिन उत्पादन करेगा.

सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है और 27 जून को सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से बात की थी.

रूस और सऊदी अरब लगातार कच्चे तेल के दामों में उछाल लाने की कोशिशें कर रहे हैं.

आर्थिक सुस्ती और बड़े तेल उत्पादकों की पर्याप्त आपूर्ति के बाद कच्चे तेल के दाम में गिरावट आई है. एक साल पहले कच्चे तेल के दाम 113 डॉलर प्रति बैरल थे.

रूस की बड़ी ऊर्जा कंपनी में शामिल रोसनेफ़्ट के प्रमुख इगार सेशिन ने कहा है कि बीते महीने ओपेक प्लस देशों की तुलना में रूस पीछे छूट रहा था और वो अपने तेल उत्पादन का बहुत छोटा हिस्सा ही निर्यात कर पा रहा था.

सेशिन ने कहा कि कुछ ओपेक प्लस देश अपने उत्पादन का 90 फ़ीसदी तक निर्यात कर रहे थे, जहां रूस अपने उत्पादन का सिर्फ़ आधा ही वैश्विक बाज़ार में भेज पा रहा था.

तेल के दामों में क्यों नहीं है तेज़ी

रूसी वित्त मंत्रालय ने सोमवार को बताया था कि पश्चिमी देशों के प्राइस कैप के बाद रूसी कच्चे तेल के दाम जून में औसतन 55.28 डॉलर प्रति बैरल थे जबकि एक साल पहले इसके दाम 87.25 डॉलर प्रति बैरल थे.

सऊदी अरब ने तेल उत्पादन में कटौती का फ़ैसला अगस्त तक जारी रखना तय किया है. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ये सितंबर तक जारी रह सकता है.

एनर्जी इंटेलिजेंस के मुताबिक़, तेल के दाम ऊपर उठाने के लिए बुनियादी तत्व मज़बूत नहीं हैं और इन्वेस्टमेंट बैंक इस साल के लिए तेल के दामों का अनुमान कम ही मानकर चल रहे हैं.

एचएसबीसी ने 2023 की दूसरी छमाही के लिए कच्चे तेल के दामों का अपना अनुमान घटाकर 80 डॉलर प्रति बैरल कर दिया है जबकि पहले उसने इसका अनुमान 93.50 डॉलर प्रति बैरल रखा था.

हालांकि ये भी माना जा रहा है कि सऊदी अरब और रूस की इन कोशिशों के बाद इस साल के दूसरे हिस्से में वैश्विक तेल बाज़ार में उछाल आएगा.

संयुक्त अरब अमीरात स्थित अमीरात एनबीडी बैंक का अनुमान है कि सऊदी अरब साल 2023 के अंत तक अतिरिक्त कटौती की नीति अपना सकता है.

सऊदी अरब को लगता है कि तेल उत्पादन में दूसरी कटौती ज़रूरी थी. ऊर्जा की मांग को लेकर अब भी अनिश्चितता बनी हुई है जबकि ट्रैवेल इंडस्ट्री पिक पर है.

सऊदी अरब तेल से राजस्व बढ़ाना चाहता है ताकि उसकी परियोजनाओं में पैसे की कोई कमी ना हो.

दूसरी तरफ़ रूस भी यूक्रेन जंग के कारण तेल से ज़्यादा से ज़्यादा राजस्व हासिल करना चाहता है.

पश्चिम के प्रतिबंध के कारण रूस को निर्यात से मिलने वाले राजस्व में मई महीने में 1.4 अरब डॉलर की गिरावट आई थी.

युआन में रूसी तेल का भुगतान कर रहा भारत?

24 फ़रवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था और तब से भारत का रूस से तेल आयात बढ़ता गया. पश्चिम के देशों के कड़े प्रतिबंधों के कारण रूस से यूरोप ने तेल आयात सीमित कर दिया था.

ऐसे में रूस ने भारत समेत कई देशों को सस्ता तेल देना शुरू किया था. भारत को यूक्रेन में जारी जंग के बाद रूस से सस्ता तेल मिल रहा है. जो तेल सऊदी अरब से भारत को 86 डॉलर प्रति बैरल मिल रहा है, वही रूस से 68 डॉलर प्रति बैरल मिल रहा है.

भारत का रूस से कच्चे तेल का आयात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है लेकिन पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूस भारत से डॉलर में भुगतान नहीं चाहता है.

तेल के भुगतान के लिए लेन-देन किस मुद्रा में हो ये सवाल अब तक दोनों देशों के सामने खड़ा है. शुरुआत में भारत ने रूस को रुपये में भुगतान किया था लेकिन रूस को इसका कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था.

रॉयटर्स के मुताबिक़, वैश्विक तेल ख़रीद के लिए अमेरिकी डॉलर मुख्य तौर पर इस्तेमाल किया जाता था और भारत भी इससे ही तेल ख़रीदता था लेकिन युआन ने रूस के वित्तीय सिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण मॉस्को को डॉलर और यूरो वित्तीय नेटवर्क से बाहर कर दिया गया है.

सूत्रों के आधार पर रॉयटर्स ने लिखा है कि जून में कच्चा रूसी तेल ख़रीदने वाली सबसे बड़ी कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने युआन में भुगतान किया था. वो चीनी मुद्रा में भुगतान करने वाली पहली सरकारी कंपनी बन गई है.

इसके अलावा भारत की तीन में से दो निजी कंपनियों ने रूसी तेल के आयात के लिए युआन में भुगतान किया है.

रॉयटर्स ने इंडियन ऑयल, रिलायंस इंटस्ट्रीज़ लिमिटेड, रूस समर्थक नायारा एनर्जी और एचपीसीएल मित्तल एनर्जी लिमिटेड से इस मुद्दे पर उसका पक्ष जानना चाहा लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

युआन में भुगतान करने में आई तेज़ी से चीन को उम्मीद जगी है क्योंकि वो अपनी मुद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिशें करता रहा है.

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