चंद्रशेखर आज़ाद हमलावरों, मायावती और राहुल गांधी पर क्या बोले

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DMT : सहारनपुर  : (04 जुलाई 2023) : –

सहारनपुर में 28 जून को चंद्रशेखर पर हमला हुआ जिसमें एक गोली उनको छूकर निकल गई. इस हमले के बाद उन्होंने बीबीसी हिंदी से ख़ास बातचीत की है.

सहारनपुर से क़रीब बीस किलोमीटर और राजधानी दिल्ली से 200 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के छुटमुलपुर गांव में भीम आर्मी के संस्थापक और आज़ाद समाज पार्टी-कांशीराम के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद से मिलने के लिए लोगों का तांता लगा हुआ है.

एक छोटे से कमरे में सोफ़े पर बैठे चंद्रशेखर अपने शुभचिंतकों को बार-बार भरोसा दे रहे हैं कि वो बिलकुल ठीक हैं और हमले से वो डरे हुए नहीं हैं.

28 जून को देवबंद में चार युवकों ने चंद्रशेखर की कार पर गोलियां चलाईं थीं. एक गोली गाड़ी की खिड़की को पार करते हुए चंद्रशेखर को छूते हुए निकल गई थी. इन चारों हमलावरों को पुलिस ने अब गिरफ़्तार कर लिया है.

चंद्रशेखर इस हमले में बाल-बाल बच गए. गोली उनकी कमर को छूकर निकली और इससे हुए ज़ख़्म को भरने में अभी वक़्त लगेगा.

चंद्रशेखर मानते हैं कि ये उनके समर्थकों की दुआओं का असर है कि वो इस हमले में बच गए.

ये मेरा पुनर्जन्म’

चंद्रशेखर कहते हैं, “लाखों माओं बहनों और नौजवान भाइयों की दुआएं मेरे साथ हैं. ये सच है कि जिस तरह की घटना थी, शायद मैं आपके बीच बैठकर बात करने के लिए मौजूद ही ना रहता. लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि जो काम कुदरत मुझसे लेना चाहती है, वो अभी पूरा नहीं हुआ है. जिस उद्देश्य के लिए मेरा जन्म हुआ है वो अभी पूरा नहीं हुआ है. मेरे लिए ये पुनर्जन्म जैसा है. मैं आगे भी अपना काम करता रहूंगा.”

चंद्रशेखर बार-बार ये कहते हैं कि इस हमले से वो डरे नहीं हैं.

शनिवार को चंद्रशेखर एंबुलेंस मैं बैठकर राजस्थान के भरतपुर गए और वहां उन्होंने एक जनसभा को भी संबोधित किया.

लेकिन राजनीतिक और सामाजिक जीवन से इतर उनका एक पारिवारिक जीवन भी है और इस हमले के बाद से ही उनके परिजन सकते में हैं.

चंद्रशेखर कहते हैं, “हमले के बाद मैंने अपनी मां को फ़ोन किया था और उनसे कहा था कि मैं ठीक हूं और आप मुझसे मिलने अस्पताल ना आएं. मैं नहीं चाहता था कि मेरी मां मुझे इस हालत में देखें. मां अगर बेटे को ख़ून से लथपथ देखती तो उसे बहुत तक़लीफ़ होती.”

चंद्रशेखर पर हमला करने वाले चार युवकों में से तीन सहारनपुर और एक हरियाणा का है.

पुलिस पूछताछ में इन्होंने कहा है कि वो चंद्रशेखर के बयानों से आहत थे और उन्हें मार देना चाहते थे.

‘मेरा वश चला तो हमलावरों से मिलने जाऊंगा’

चंद्रशेखर कहते हैं, “हिंसा किसी चीज़ का रास्ता नहीं है. अगर उन्हें मुझसे कोई शिकायत थी तो वो अपना विरोध दर्ज कराते. लोकतंत्र में हमें आलोचना के लिए तैयार रहना चाहिए. अच्छे बुरे सब तरह के लोग हैं, अगर इन्होंने हमला किया है तो इनके ही समाज के बहुत से लोग हैं जो मुझे पसंद करते हैं. मैं किसी के विरोध में नहीं हूं, मैं अन्याय का कल भी विरोध करता था, आज भी करता हूं और हमेशा करता रहूंगा.”

लेकिन चंद्रशेखर कहते हैं कि वो नहीं चाहते कि इस हमले की वजह से इन हमलावरों के परिजनों को दंडित किया जाए.

चंद्रशेखर कहते हैं, “मैं इसकी सज़ा इनके परिवार को नहीं देना चाहता. मैं चाहता हूं कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे. विश्वास कीजिए, अगर मेरे ऊपर ज़िम्मेदारी ना होती तो मैं उन्हें माफ़ कर देता और भूल जाता कि मेरे साथ कुछ हुआ है.”

“लेकिन अगर मैं उन्हें माफ़ कर देता हूं तो बहुत से लोग ये सोचेंगे कि मैंने ये हमला ख़ुद ही करवाया है. इसलिए ही मैं मज़बूत जांच की मांग कर रहा हूं ताकि ये सच पता चल सके कि उन्होंने हमला क्यों किया और इस हमले के पीछे कौन लोग हैं. अगर मेरा वश चला तो मैं उन हमलावरों से मिलने भी जाऊंगा और उनसे पूछूंगा कि आपने ऐसा क्यों किया.”

36 साल के चंद्रशेखर सबसे पहले साल 2015 में चर्चा में आए थे जब उन्होंने दलित युवाओं के संगठन भी आर्मी की स्थापना की थी.

चंद्रशेखर ने एक आक्रोशित दलित युवा की छवि बनाई.

लेकिन अगले कुछ सालों में उन्होंने अपना दायरा बनाया और साल 2020 में आज़ाद समाज पार्टी-कांशीराम की स्थापना की.

एक आक्रोशित दलित युवा से एक राजनेता तक के सफर के बारे में चंद्रशेखर कहते हैं, “जब मैंने अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ना शुरू किया तो मुझे लगता था कि शोषण के ख़िलाफ़ लड़ना ही सबकुछ है. आगे चलकर मुझे पता चला कि शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है और पीड़ित वर्ग को शिक्षा हासिल करनी चाहिए. लेकिन फिर में जेल गया और क़रीब से चीज़ों को देखा और सत्ता की ताक़त को समझा.”

चंद्रशेखर कहते हैं, “मैं निर्दोष होते हुए लंबे समय तक जेल में रहा, मुझ पर एनएसए लगा दिया गया. तबियत ख़राब होने पर मेरा इलाज नहीं होने दिया गया, धीमा ज़हर देकर जेल में मेरी हत्या का प्रयास तक हुआ.”

“इस दौरान मुझे सत्ता की ताक़त समझ आई और मैंने जाना कि वो लोग कौन हैं जो शोषित और वंचित वर्ग को सत्ता के क़रीब नहीं पहुंचने देना चाहते हैं. भारत में सत्ता ही ऐसा हथियार है जिससे परिवर्तन हो सकता है क्योंकि परिवर्तन शक्ति से होता है और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सत्ता ही शक्ति है.”

चंद्रशेखर ने उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों में अकेले चुनाव लड़ा और उम्मीदवार उतारे. लेकिन उनकी पार्टी राजनीति में कुछ ख़ास नहीं कर सकी.

इस पर चंद्रशेखर कहते हैं, “कांग्रेस को स्थापना से सत्ता तक पहुंचने में लंबा वक़्त लगा. आरएसएस को ताक़तवर होने में लंबा समय लगा, बीजेपी कब बनीं और सत्ता में कब आई. हमारी पार्टी की स्थापना 2020 में हुई, दो साल तक लॉकडाउन रहा, लोग एक दूसरे से मिल तक नहीं पा रहे थे. हमारी पार्टी 20 में बनीं और अब 23 चल रहा है, हमें पैरों पर खड़ा होने दीजिए, अभी तो हम घुटने पर चल रहे हैं. जब खड़े होंगे तो ताक़त भी आ जाएगी.”

मायावती और राहुल गांधी के सवाल पर क्या बोले चंद्रशेखर

अगले लोकसभा चुनाव में अभी साल भर का वक़्त है लेकिन गठबंधन बनाने के प्रयास शुरू हो चुके हैं. विपक्ष ने बैठकें भी की हैं लेकिन चंद्रशेखर को न्यौता नहीं मिला है.

इस सवाल पर चंद्रशेखर कहते हैं, “बहुत लोग संपर्क कर रहे हैं, ये एक रणनीतिक फैसला होगा. अभी मैं आराम कर रहा हूं और ये फ़ैसला मेरी पार्टी के नेताओं को लेना है. अभी मेरा पूरा ध्यान स्वस्थ होने पर है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का चुनाव हम लड़ेंगे. मैं साइकिल यात्रा करने जा रहा था, अब ठीक होना है और यात्रा करनी है.”

चंद्रशेखर उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती को हमेशा ही बुआ जी कहकर संबोधित करते रहे हैं लेकिन मायावती उन्हें नज़रअंदाज़ करती रही हैं.

हमले के बाद भी मायावती ने न इसे लेकर कोई बयान दिया और न ही उनका हालचाल पूछा.

मायावती के साथ संबंधों से जुड़े सवाल पर चंद्रशेखर कहते हैं, “मुझे उनसे कोई नाराज़गी नहीं है, मैं आज तक यहां पहुंचा हूं इसमें भी उनका आशीर्वाद है. मायावती जी ने बहुत संघर्ष किया है. लोग मुझे उनसे लड़ाने का प्रयास करते रहते हैं, मैं ये समझता हूं लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा.”

“मैं ये मानता हूं कि ऐसा भी दिन आ सकता है कि जल और कुल मिल जाए, कल एक दिन ऐसा आए कि मायावती स्वयं कहें कि चंद्रशेखर भी मेरा अपना बेटा है, अब यही पार्टी चलाएगा.”

चंद्रशेखर पर हमले के बाद कई नेताओं ने फ़ोन करके उनसे हाल-चाल पूछा.

राहुल गांधी ने भी उन्हें फ़ोन किया.

राहुल गांधी के बारे में चंद्रशेखर कहते हैं, “पिछले कुछ समय में हमने एक अलग तरह के राहुल गांधी को देखा है. ऐसा नहीं लगता कि किसी सत्ता के लिए वो ये सब कर रहे हों. उनकी पार्टी अलग है, वैचारिक रूप से हम में बहुत मतभेद है.”

“मैं राजस्थान के भरतपुर गया जहां उनकी पार्टी की सरकार है, मैंने अपने लोगों से सरकार के ख़िलाफ़ एकजुट होने की अपील भी की लेकिन सच ये है कि जब मेरे कष्ट के समय में उनका फ़ोन मेरे पास आया तो मैंने उनसे कहा कि आप मणिपुर जा रहे हैं, अपना भी ख्याल रखना, अच्छे नेताओं की देश को ज़रूरत है.”

हाल के महीनों में विपक्ष ने एकजुट होने और सत्ताधारी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती पेश करने की कोशिश की है.

लेकिन क्या विपक्ष आगामी लोकसभा में प्रधानमंत्री के समक्ष मज़बूत चुनौती पेश कर पाएगा, इस सवाल पर चंद्रशेखर कहते हैं, “कर्नाटक में एक अकेली पार्टी ने बीजेपी को हरा दिया, दिल्ली में अकेली पार्टी ने हरा दिया. बीजेपी धार्मिक एजेंडा लाकर लोगों में बंटवारा करती है, धनबल की राजनीति कर रही है. जिस दिन भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, महंगाई और अपराधिकरण के ख़िलाफ़ जनता एकजुट होगी, तो एक झटके में बीजेपी को उखाड़ फेंकेगी.”

चंद्रशेखर को उम्मीद है कि अगले दस सालों में उनकी पार्टी मज़बूत होगी और कई राज्यों में सत्ता तक पहुंचेगी.

लेकिन वो कहां होंगे इस सवाल पर वो कहते हैं, “मैं ऐसे ही कहीं किसी खाट पर बैठा हुआ मिलूंगा, लेकिन हो सकता है कि काम की वजह से दायरा बड़ा हो गया हो. हो सकता है हमारी पार्टी कई राज्यों में सत्ता तक पहुंच जाए, लेकिन मैं ऐसा ही रहूंगा जैसा हूं. जो भी हो जाए, कभी किसी से डरूंगा नहीं.”

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