DMT : इंदौर : (01 अप्रैल 2023) : –
मध्य प्रदेश के इंदौर में रामनवमी के दिन हुए हादसे में अब तक 35 लोगों की मौत हो चुकी है.
इंदौर के बेलेश्वर महादेव मंदिर में एक बावड़ी की छत ढह गई थी. धार्मिक आयोजनों के कारण मंदिर में भारी भीड़ थी.
जिस बावड़ी को सीमेंट की स्लैब से ढंका गया था, उस पर हवन कुंड बना दिया गया था.
हादसे के वक़्त इसी स्लैब पर बने हवन कुंड के पास लोग बैठे हुए थे, तभी छत गिरी और उसमें बैठे लोग बावड़ी में गिर गए.
भारत में किसी धार्मिक मौक़े या आयोजन पर इस तरह के हादसे अक्सर होते रहे हैं और थमने की बजाय ये सिलसिला अभी भी जारी है.
हाल के वर्षों में भारत में भीड़ के कारण हुए बड़े हादसों पर नज़र डालें तो ऐसी घटनाओं की लंबी फेहरिश्त नज़र आती है.
30 अक्टूबर, 2022, मोरबी, गुजरात
दिवाली और रविवार की की छुट्टियां होने के कारण भारी भीड़ के चलते गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बना एक सस्पेंशन ब्रिज गिर गया. इस हादसे में कम से कम 141 लोगों की मौत हो गई.
1 जनवरी, 2022, वैष्णो देवी, जम्मू
जम्मू-कश्मीर स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर के परिसर में नए साल के दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण भगदड़ में 12 लोगों की मौत हो गई और कम से कम 20 लोग ज़ख़्मी हो गए.
10 अप्रैल, 2016, कोल्लम, केरल
केरल के कोल्लम ज़िले में एक मंदिर में आग लगने से कम से कम 108 लोगों की मौत हो गई, जबकि 200 से ज़्यादा घायल हो गए थे.
19 अक्टूबर, 2018, अमृतसर, पंजाब
पंजाब के अमृतसर में में दशहरे के त्योहार के मौक़े पर रावण दहन को देखने में भीड़ रेलवे ट्रैक पर आ गई और ट्रेन से कुचलकर क़रीब 60 लोगों की मौत हो गई.
14 जुलाई 2015, राजमुंद्री, आंध्रप्रदेश
पुष्करम त्योहार के दौरान भगदड़ में 27 लोगों की मौत और कई घायल हुए थे.
3 अक्टूबर 2014, पटना, बिहार
गांधी मैदान में दशहरे के दौरान मची भगदड़ में 32 लोगों की मौत हुई.
13 अक्टूबर, 2013, दतिया, मध्य प्रदेश
रतनगढ़ मंदिर के पास दशहरे के त्योहार के दौरान भगदड़ में 121 लोगों की मौत और सौ से ज़्यादा घायल हुए.
10 फ़रवरी 2013, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
कुम्भ मेले के दौरान इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 36 लोग मारे गए और क़रीब 40 लोग घायल हो गए.
19 नवंबर, 2012, पटना, बिहार
छठ पूजा के मौक़े पर पटना के अदालतगंज घाट पर मची अफरा तफरी और उसके बाद भगदड़ के कारण कम से कम 18 लोग मारे गए और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए.
24 सितंबर, 2012, देवघर, झारखंड
यहां ठाकुर अनुकूल चंद की 125वीं जयंती पर एक आश्रम परिसर में भारी भीड़ और भगदड़ की वजह से क़रीब 10 लोगों की मौत हो गई. जबकि कई लोग बेहोश हो गए.
8 नवंबर, 2011, हरिद्वार, उत्तराखंड
गायत्री परिवार के एक यज्ञ समारोह में भगदड़ मचने से क़रीब 20 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए.
14 जनवरी 2011, सबरीमाला, केरल
इस हादसे में 102 तीर्थयात्री सबरीमाला मंदिर से लौटते हुए मची भगदड़ में मारे गए. यह मंदिर घने जंगलों के बीच पहाड़ी इलाके में स्थित है. यहां साल 1999 में भी 14 जनवरी को हादसे में 52 लोगों की मौत हुई थी.
4 मार्च, 2010, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
रामजानकी मंदिर में हादसे में 65 लोगों की मौत हुई.
30 सितंबर, 2008, जोधपुर राजस्थान
जोधपुर के प्रसिद्ध महेन्द्रगढ़ क़िले के अंदर स्थित चामुंडा देवी के मंदिर में भगदड़ की वजह से 249 लोग मारे गए.
3 अगस्त, 2008, नैना देवी, हिमाचल प्रदेश
उत्तराखंड में पहाड़ी पर बने नैना देवी मंदिर में भगदड़ की वजह से कम से कम 162 लोग मारे गए. इस भगदड़ में सैकड़ों लोग घायल भी हुए थे.
25 जनवरी 2005, मंधर देवी, महाराष्ट्र
मंधर देवी के मंदिर में मची भगदड़ में 300 से अधिक हिन्दू तीर्थयात्री मारे गए. इनमें से कई तीर्थयात्री मंदिर को जाने वाले संकरे रास्ते पर बनी दुकानों में आग लगने के कारण जल कर मारे गए.
अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक ख़बर के मुताबिक़, भारत में हाल के कुछ साल में धार्मिक जगहों पर होने वाले हादसे बढ़े हैं.
इस ख़बर के मुताबिक़ आंकड़े बताते हैं भीड़ से जुड़े हादसों में 70 फ़ीसदी हादसे धार्मिक उत्सव के दौरान होते हैं.
इस तरह के सुझाव ख़ास तौर पर राज्य सरकार, स्थानीय अधिकारियों, प्रशासन और आयोजन करने वालों के लिए था.
इस रिपोर्ट में भीड़ के प्रबंधन से जुड़े लोगों के हुनर को विकसित करने और बेहतर ट्रेनिंग देने का सुझाव शामिल था. इसके लिए ज़मीनी स्तर पर काम करने की ज़रूरत बताई गई थी.
इस रिपोर्ट में पुलिस और प्रशासन को स्थानीय कॉलेज और यूनिवर्सिटी से संपर्क में रहने की सलाह दी गई थी.
इसका मक़सद भीड़ के व्यवहार और मनोविज्ञान का अध्ययन कर भीड़ के प्रबंधन की बेहतर तकनीक विकसित करना था.
भीड़ के प्रबंधन के लिए ऐसी जगहों के लिए केस स्टडी तैयार करने की सलाह दी गई थी, जैसी आईआईएम अहमदाबाद ने तिरुपति मंदिर की व्यवस्था को तैयार किया था.
इसके अलावा इस रिपोर्ट में पुलिस को ताक़त से ज़्यादा अच्छे व्यवहार का इस्तेमाल करने की सलाह भी दी गई थी.
एनडीएमए की यह रिपोर्ट साल 2014 में आई थी और उसके सुझावों के बाद भी भारत में भीड़ से जुड़े हादसे लगातार होते रहे हैं.