DMT : New Delhi : (11 मार्च 2023) : –
“मैंने जनता के हित में बैंक लूटे, मगर आप उसे चोरी नहीं कह सकते क्योंकि किसी ग़रीब इंसान को लूटना चोरी कहलाता है. वो शख़्स जो किसी लुटेरे को लूटता है, उसे हमेशा की माफ़ी है और बैंक लूटना तो सम्मान की बात है.”
लोसियो अर्तोबिया के लिए डकैती उस समय तक एक ‘क्रांतिकारी काम’ था जब तक कि यह ‘सामूहिक भलाई’ को मद्देनज़र रखते हुए किया जाए, न कि अपने फ़ायदे के लिए. लोसियो वह शख़्स थे जिन्होंने दुनिया के सबसे बड़े बैंक को नाच नचा दिया था.
एक अच्छे अनार्किस्ट (अराजकतावादी) के तौर पर लोसियो अर्तोबिया के लिए क़ानून और नैतिकता के बीच बहुत ओझल सा अंतर था.
दिन के उजाले में बतौर मज़दूर काम करने वाले लोसियो रात को बड़े ‘जालसाज़’ का रूप धारण कर लेते थे, वह निरक्षर थे और अपने जीवन के अंतिम समय तक ‘बाग़ी’ रहे.
एक डाकू, कथित अपहरणकर्ता और स्मगलर के तौर पर जाने जाने वाले लोसियो अर्तोबिया 1980 के दशक में दुनिया के लिए सबसे ज़्यादा ‘वांटेड’ लोगों में से एक थे.
उनकी देखरेख में दर्जनों लोगों का एक नेटवर्क काम करता था जिसकी अगुवाई वह करते थे और वह उस दौर के दुनिया के सबसे बड़े बैंक नेशनल सिटी बैंक (जो अब सिटी बैंक के नाम से जाना जाता है) से जालसाज़ी के ज़रिए बहुत सारे ट्रैवलर्स चेक बनाने में कामयाब हुए थे.
यह साफ़ नहीं कि इस वारदात में कितनी रक़म का घपला किया गया मगर ख़ुद लोसियो के मुताबिक़ यह रक़म कम से कम 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर के लगभग थी. लोसियो का दावा था कि यह रक़म लैटिन अमेरिका और यूरोप में सरकारों के ख़िलाफ़ गुरिल्ला लड़ाई लड़ने वाले समूहों की आर्थिक मदद के लिए इस्तेमाल की गई.
यह बात मशहूर है कि उनकी जालसाज़ियों के कारण प्रसिद्ध गुरिल्ला ग्रुप ब्लैक पैंथर्स के प्रमुख एल्ड्रिच क्लेवर को फ़रार होने में मदद मिली और उन पैसों की मदद से बोलिविया में नाज़ी क्लाउस बार्बी को अग़वा करने की कोशिश की गई.
और उनका अपना दावा था कि गुरिल्ला कार्रवाइयों के लिए रणनीतियों के बारे में उन्होंने चे-ग्वेरा के साथ विचार विमर्श किया था.
इन सब में सच्चाई कितनी है और डींग या कहानी कितनी, यह तो मालूम नहीं मगर इन सबके बीच लोसियो अर्तोबिया का जीवन किसी फ़िल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं.
एक फ़िल्मी जीवन
लोसियो अर्तोबिया सन 1931 में कासकेंट नाम के क़स्बे के एक परिवार में पैदा हुए. अपनी आत्मकथा में वह लिखते हैं कि अपने बचपन में “मैंने कभी ऐसी चीज़ का सम्मान नहीं किया जो प्रतिबंधित थी. अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती तो उसे पाने के लिए मैं हर वह काम कर गुज़रता जो मुझे सही मालूम होता था.”
उदाहरण के लिए अपने बचपन में उन्होंने वह सिक्के चुराने से गुरेज़ नहीं किया जो उस दौर के अमीर लोग उनके क़स्बे के चर्च के सामने वाले तालाब में श्रद्धा से भेंट स्वरूप फेंकते थे.
लोगों के बाग़ों से वह फल चुरा लेते थे और हर वह काम कर गुज़रते थे जो ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी था.
छोटी मोटी चोरी चकारी के बाद वह सीमा पर होने वाली स्मगलिंग के काम में शामिल हुए. अपने भाई के साथ वह तंबाकू, दवाइयां और शराब सरहद पार तस्करी करते थे.
और जब वह जवान हुए तो उस दौर के क़ानून के तहत उन्हें ज़रूरी सैन्य सेवा अंजाम देने के लिए भर्ती किया गया. यह वह समय था जब उनके लिए फ़ौजी बैरकों के गोदामों तक पहुंचना आसान था और यहां उनके सामने एक नई दुनिया थी.
जल्द ही बैरकों से फ़ौजी जूते, शर्ट्स, घड़ियां और दूसरे क़ीमती सामान कूड़े के डिब्बों में बैरकों से बाहर स्मगल होने लगे. हालांकि फ़ौज को कुछ ही दिनों में इस लूटमार का पता चल गया लेकिन गिरफ़्तारी से पहले ही वह फ़रार होकर फ़्रांस पहुंच गए क्योंकि अगर वह फ़रार ना होते तो उन्हें जेल में चक्की पीसना नसीब होता या वह फ़ायरिंग स्क्वाड के सामने होते.
वह फ़्रांस तो पहुंच गए मगर मुश्किल यह थी कि उन्हें फ़्रांसीसी भाषा का एक शब्द भी नहीं आता था. अपनी आत्मकथा में वह लिखते हैं, “फ़्रांस पहुंचकर मुझे किसी चीज़ के बारे में कुछ मालूम नहीं था.” लेकिन जल्द ही उन्होंने एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करना शुरू कर दिया और मरते दम तक इस उद्योग से जुड़े रहे.
वह कहते थे, “इंसान वही हैं जिनकी पहचान अपने काम की वजह से है. यही वजह है कि मैंने मुक्ति हमेशा अपने काम में पाई, जिसके बिना कोई कुछ नहीं.”
मगर सच्चाई यह है कि यही वह काम था जो उनके ख़ुफ़िया जीवन के लिए एक बहरूपिए का काम करता था क्योंकि कोई नहीं सोच सकता था कि एक अनपढ़ सा मज़दूर उस दौर की बड़ी जालसाज़ियों के पीछे हो सकता है.
यह वह दौर है जब फ़्रांस की राजधानी पेरिस हज़ारों स्पेनी कम्यूनिस्टों, अराजकतावादियों, समाजवादियों और विद्रोहियों की शरणस्थली थी.
लेकिन लोसियो की, जो बहुत मुश्किल से पढ़ पाते थे, राजनीति से जुड़ी कोई ट्रेनिंग नहीं थी. अपनी याददाश्तों में वह बताते हैं कि एक दिन उनके साथी ने उनसे पूछा, “तुम्हारी राजनैतिक सोच क्या है? तुम हो कौन?”
लोसियो ने उसे जवाब दिया कि वह कम्यूनिस्ट हैं क्योंकि उनके शब्दों में उनका विचार था कि फ़ासिज़्म के सभी विरोधी यही सोच रखते हैं.
उनका साथी इस जवाब पर हंसा और बोला, “क्या बात है! तुम कम्यूनिस्ट बनने जा रहे हो, तुम अनार्किस्ट हो.”
राजनैतिक चेतना
उन्होंने यह शब्द अपने पिता से सुना था. ग़ुस्से में आकर एक दिन उनके पिता ने कहा था, “अगर मैं दोबारा पैदा हुआ तो एक अनार्किस्ट बनूंगा.”
यह उनके दूसरे जीवन की शुरुआत थी. “इससे मेरे लिए सच की शुरुआत हुई, यह असली आज़ादी थी.”
उन्होंने कुछ फ़्रांसीसी कोर्स करने के लिए ख़ुद का नाम लिबर्टेरियन यूथ में दर्ज कराया और पेरिस के इलाक़े सीन, मार्थ में नज़र आने लगे जहां नोबेल पुरस्कार विजेता दार्शनिक अल्बर्ट कैमोस और दूसरे महत्वपूर्ण लोग रहा करते थे.
उनके अनुसार फ़्रांसीसी भाषा के जिन स्कूलों ने उनके लिए शिक्षा के दरवाज़े बंद किए, वह थियेटर ग्रुप्स के हाथों उनके लिए खुल गए.
एक दिन सीएनटी सेक्रेटरी ने उनसे मदद मांगी, “हमें मालूम है कि आपके पास एक अपार्टमेंट है और हमारा एक दोस्त है जिसे मदद दरकार है. आप कुछ देर के लिए उनकी मदद करें, जब तक हम उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं कर लेते.”
यह दोस्त कवाको साबाती थे जो कैटलोनिया में फ़्रांस विरोधी गुरिल्ला झड़पों में शामिल थे और स्पेन में सबसे अधिक ‘वांटेड’ लोगों में से थे. बर्नार्ड थॉमस के अनुसार लोसियो उनसे बहुत प्रभावित थे और उन्हें ‘अनार्किज़्म का गुरु’ कहते थे.
लोसियो ने कवाको को छिपाने में मदद की और जब वह छह माह क़ैद की सज़ा में जेल गए तो उन्हें थॉमसन मशीन गन और पिस्तौल जैसे ‘औज़ार’ मिल गए.
इन ‘औज़ारों’ और खुले लिबास की मदद से लोसियो के अनुसार उन्होंने पेरिस में पहली बार एक दोस्त के साथ बैंक लूटा था. वह उसे ज़ब्ती कहते थे, जैसे राज्य किसी की संपत्ति ज़ब्त करता है.
पहली बार बैंक लूटने का दिलचस्प किस्सा
लोसियो उस समय कड़ी मेहनत मज़दूरी करके एक हफ़्ते में 50 फ़्रांक्स कमाते थे मगर 16 मिनट में उन्होंने लाखों फ़्रांक्स कमा लिए थे. पहली डकैती के बाद उन्होंने कई और बैंक लूटे मगर लोसियो ने कभी कंस्ट्रक्शन की जगह वाली मज़दूरी नहीं छोड़ी. उनके अनुसार लूटी गई दौलत ‘क्रांतिकारी’ मक़सद के लिए इस्तेमाल की जानी थी.
उनके लिए बैंक लूटना आसान होता था क्योंकि उस दौर में कोई सिक्योरिटी कैमरे नहीं होते थे मगर वह उस काम को पसंद नहीं करते थे क्योंकि उन्हें डर था कि कोई घायल न हो जाए. बाद के इंटरव्यूज़ में उन्होंने बिना मुस्कुराए हुए कहा था, “जब मैं पहली बार बैंक को ज़ब्त करने (लूटने) जा रहा था तो मैंने अपनी पैंट में पेशाब कर दिया था.”
हालांकि उन्होंने अपनी थॉमसन मशीन गन की जगह प्रिंटिंग प्रेस ख़रीद ली जो के अनार्किस्ट का बहुत बड़ा हथियार था.
प्रिंटिंग की दुनिया में अपने दोस्तों की मदद से उन्होंने नक़ली स्पेनी पहचान पत्र, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस बनाना शुरू कर दिया. इससे लोगों को दूसरे देश जाने में मदद मिलती और सरकार के विरोधी किसी देश में जा सकते थे.
उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा, “इसकी मदद से गाड़ियां किराए पर लेना आसान हो गया था, बैंक के अकाउंट, सफ़र के दस्तावेज़ वग़ैराह सब हासिल हो सकता था और वह भी सरकारी अफ़सरों को पैसे दिए बिना. इससे वह दरवाज़े खुल गए जो हमारे लिए बंद थे.”
दस्तावेज़ों के बाद उनका अगला निशाना करंसी नोट बन गया. लोसियो के हाथ अमेरिकी डॉलर की अच्छी नक़ल लग गई थी. वह बताते हैं, “दूसरे काम जो हमने किए थे उनके मुक़ाबले डॉलर की नक़ल तैयार करना कुछ आसान था.”
करंसी के लिए सबसे मुश्किल काम काग़ज़ लाना है. जाली करंसी बनाने के लिए उन्होंने एक अमेरिका विरोधी देश की मदद लेने का फ़ैसला किया. लोसियो को एक बेवकूफ़ी भरा ख़्याल आया. उन्होंने पेरिस में क्यूबा के राजदूत से संपर्क किया ताकि उनकी मुलाक़ात चे ग्वेरा से हो सके जो पेरिस के एक हवाई अड्डे से गुज़र रहे थे. इस मुलाक़ात की पुष्टि करना मुश्किल है.
क्यूबा की क्रांति से कई अनार्किस्ट, कम्यूनिस्ट और पूंजीवादी व्यवस्था विरोधी प्रभावित हुए थे. इतिहासकार ऑस्कर फ़्रेन हर्नांडिज़ के अनुसार यह संभव है कि उस समय के सामाजिक कार्यकर्ता क्यूबा के दूतावास के संपर्क में होंगे लेकिन हमें यह मालूम नहीं कि “उन्हें चे ग्वेरा मिले थे या नहीं.”
लोसियो उत्साही थे और उनके पास एक सरल योजना थी: क्यूबा लाखों डॉलर छापे और मार्केट में डॉलर फेंककर अमेरिकी करंसी को डुबा दे. उन्होंने जाली करंसी बनाने के लिए प्लेटें देने की हामी भरी.
उनका दावा है कि चे ग्वेरा उस समय क्यूबा के वित्त मंत्री थे और उन्होंने कथित तौर पर उन्हें इस मामले पर बहुत स्पष्ट नहीं पाया. लोसियो को इस पर अफ़सोस हुआ.
उनके अनुसार चे ग्वेरा यह नहीं चाहते थे कि उनकी अपनी करंसी की नक़लें तैयार की जाएं क्योंकि इस जुर्म की बड़ी सज़ा 20 साल क़ैद थी.
लोसियो अपनी किताब में लिखते हैं, “इसलिए हमने ट्रैवलर्स चेक को चुना जिनकी नक़ल तैयार करने की सज़ा केवल पांच साल थी.”
वह ब्रसल्स जाने वाली एक ट्रेन पर सवार हुए ताकि वहां एक बैंक से ट्रैवलर्स चेक से तीस हज़ार फ़्रांक्स ख़रीद सकें. फ़र्स्ट नेशनल सिटी बैंक दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में से एक था.
यह आसान काम नहीं था लेकिन उन्होंने नक़ली चेक तैयार कर लिए. उन्होंने एक सौ डॉलर्स के 25 चेक्स की आठ हज़ार शीटें तैयार कर लीं. विभिन्न टीमों ने लगभग दो करोड़ डॉलर्स बैंकों से निकलवा लिए.
वह यूरोप के विभिन्न शहरों में अपनी टीमें भेजते और ख़ास वक़्त में चेक कैश करवाते. इस तरह दस्तावेज़ों के नंबर चोरी हो गए या संदिग्ध चेक्स में दर्ज ना हो पाते.
उन पैसों का क्या हुआ?
इतिहासकार ऑस्कर फ़्रेन हर्नांडिज़ कहते हैं कि यह सबसे बड़ा सवालों में से एक है कि उन पैसों का क्या हुआ. “उन्होंने कितने पैसे चुराए और उन्हें कहां और कैसे भेजा?” वह इस दावे को रद्द करते हैं कि इस पैसे से वह ख़ुद अमीर बन गए.
लोसियो अर्तोबिया और उनके साथियों के अनुसार उस पैसे से लैटिन अमेरिका और यूरोप में वामपंथी गुरिल्ला लड़ाकों और सशस्त्र समूहों की आर्थिक मदद की गई.
हर्नांडिज़ के अनुसार सुरक्षा कारणों, ख़ुफ़िया शोधों और पुलिस सूत्रों की अनुपलब्धता के कारण इसकी लिस्ट मौजूद नहीं. “उनके ख़िलाफ़ ग़ैर क़ानूनी कार्रवाइयों की वजह से किसी सबूत को दर्ज नहीं किया जा रहा था. पैसों के स्थान के बारे में लोसियो की कहानी में पुष्टि की गई कोई बात दर्ज नहीं है.”
लोसियो को हिंसा से नफ़रत थी और इसीलिए उन्होंने ज़ब्ती यानी बैंक लूटने का काम छोड़ दिया था क्योंकि उन्हें डर था कि कोई ज़ख़्मी हो सकता है या मारा जा सकता है लेकिन उन पैसों से स्पेन में सशस्त्र समूह ईटीए की मदद की गई और इस पर किसी ने नैतिक आपत्ति नहीं की.
लोसियो ने 2015 में एक स्पेनी टीवी प्रोग्राम में इस बात का बचाव किया था और बताया था कि उन्होंने बचपन और जवानी में अपने गांव में अन्याय का सामना किया था. “मुझे स्पेन और नॉर्वे से नफ़रत थी क्योंकि मैंने अपनी ज़िंदगी ख़ौफ़ में गुज़ारी थी. इसलिए लड़ने वालों के साथ मेरी एकजुटता थी.”
लेकिन इस प्रतिरोध को भी पतन का शिकार होना पड़ा.
हर जगह जाली ट्रैवलर्स चेक पकड़े जाने लगे. फ़र्स्ट नेशनल सिटी बैंक ने उन्हें स्वीकार करना बंद कर दिया जिससे अफ़रा-तफ़री मच गई. जिन्होंने यह चेक ख़रीदे थे वह अब अपने पैसे वापस नहीं ले पा रहे थे.
लोसियो को अपने दोस्त की ओर से प्रस्ताव दिया गया: एक ख़रीदार उन से 30 प्रतिशत कम रक़म पर सभी चेक ख़रीदेगा.
लोसियो को जून 1980 में गिरफ़्तार किया गया और तुरंत जेल भेज दिया गया.
उनके वकीलों में से एक रोलैंड दोमास थे, जो बाद में फ़्रांस के वित्त मंत्री बने. लोसियो कहते हैं, “हम तुरंत समझ गए कि ये पैसे हमारे लिए नहीं बल्कि हमारी राजनीति के लिए थे. हम कहते थे कि नक़ली ट्रैवलर्स चेक बनाओ, उन्हें व्यवस्था में घुसाओ ताकि सरकार कमज़ोर हो सके.”
दोमास का स्पेन से कूटनीतिक संबंध था और उन्होंने लोसियो से कहा कि वह ईटीए से संपर्क स्थापित करने में मदद करें. उन्होंने स्पेन के राजनेता हावियर रोपेरेज़ को अग़वा कर रखा था.
उन्हें 31 दिन बाद रिहा कर दिया गया. 1981 में जब हथियारबंद गिरोहों ने स्पेन में ऑस्ट्रिया, एल साल्वाडोर दूतावास कर्मियों को अग़वा किया तो दोबारा लोसियो की मदद ली गई.
फ़र्स्ट नेशनल सिटी बैंक का क्या हुआ?
लोसियो ने लगभग छह माह जेल में बिताए और इस दौरान उनके ख़िलाफ़ केस की जांच की जा रही थी. मगर पुलिस को प्रिंटिंग प्लेट्स नहीं मिलीं और जब तक यह प्लेट्स जाली नोट बनाने वालों के पास थीं, तब तक समस्या बनी थी.
मजबूरी में बैंक ने बातचीत करने का फ़ैसला किया. एक वकील थिअरी फ़गार्ट ने, जो फ़्रांसीसी प्रधानमंत्री के सलाहकार भी थे, लोसियो से भेंट की और बैंक के वकीलों को वार्ता के लिए तैयार किया.
फ़गार्ट ने बताया, “फ़र्स्ट नेशनल सिटी बैंक के वकीलों ने कहा कि यह कारोबार के लिए हानिकारक था, इसलिए यह रुकना चाहिए और यह इस तरह जारी नहीं रह सकता. बहुत से लोग जेल जा चुके थे.”
“मगर यह समस्या जारी थी तो इस तरह सिटी बैंक और लोसियो के वकीलों ने वार्ता से इस समस्या का हल निकालने के बारे में सोचा. सबको पता था के लोसियो ही इसके मास्टरमाइंड हैं.”
फ़गार्ट के अनुसार उसी बैंक ने, जिससे उन्होंने और उनके गिरोह ने लाखों डॉलर चुराए, उन पर लगाए गए आरोपों को वापस ले लिया और बदले में उन्हें वह प्लेट्स मिल गईं जिन्हें पेरिस के एक लॉकर रूम में छिपाया गया था.
इससे संबंधित डॉक्यूमेंट्री में वकीलों ने बताया कि यह लेन-देन एक होटल के कमरे में हुआ जहां बैंक के प्रतिनिधि भी मौजूद थे. “यह बेमिसाल था, जैसे पुलिस पर बनाई गई कोई फ़िल्म हो.” बैंक ने इस बात की पुष्टि की और फ़गार्ट के अनुसार उन्होंने समझौते के तहत ब्रीफ़केस में बड़ी रक़म अदा की.
लोसियो के अनुसार यह डील चार करोड़ फ़्रांक्स में हुई जिसके बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. वह इस बात पर क़ायम हैं कि उन्होंने कोई पैसा नहीं रखा.
क्रांतिकारी जीवन छोड़कर परिवार को देने लगे समय
लोसियो ने 50 साल की उम्र में अपना क्रांतिकारी जीवन छोड़कर परिवार को समय देने का फ़ैसला किया और पेरिस के पास मज़दूरी जारी रखी.
इतिहासकार हर्नांडिज़ कहते हैं, “कुछ बातें ऐसी हैं जो हम कभी नहीं जान सकेंगे और हमें इसे मान लेना होगा.”
“मगर सबसे रोचक बात यह है कि एक दूसरे देश से आया व्यक्ति जिसके पास राजनीतिक समर्थन और चेतना नहीं थी, फ़्रांस आया और अनार्किस्ट दृष्टिकोण सीखा. वह कार्यकर्ता बना और ऐसे क़दम उठाए जिनसे वह मिथकीय हीरो बन गया.”
लोसियो ने 2020 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्होंने कई इंटरव्यूज़ में कहा था कि उन्होंने कभी अपराध की दुनिया नहीं छोड़ी थी. उनका कहना था, “मुझे ख़ुद भी अपने अनुभवों पर विश्वास नहीं होता.”