इसराइली सेना ग़ज़ा में दाख़िल क्यों नहीं हो रही?

Hindi International

DMT : इसराइल  : (19 अक्टूबर 2023) : –

बीते कुछ दिनों से इसराइल बार-बार इस बात के संकेत देता रहा है कि उसकी पैदल सेना ग़ज़ा के भीतर घुसने जा रही है.

सेना का मकसद है – हमास का हमेशा के लिए ख़ात्मा.

सात अक्तूबर को इसराइल पर हुए हमले में कम से कम 1200 इसराइली मारे गए थे. उसके बाद से इसराइल लगातार ग़ज़ा शहर पर बमबारी कर रहा है.

इसराइल ने तीन लाख रिज़र्व सैनिकों को ड्यूटी पर बुलाया गया है.

इसराइल की वायु सेना और नेवी ग़ज़ा में हमास और फ़लस्तीनी इस्लामिक जिहाद के ठिकानों पर कई दिनों से लगातार बम बरसा रहे हैं. इस बमबारी में हज़ारों फ़लस्तीनी मारे गए हैं और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं.

हमास के कुछ कमांडर भी इसराइली बमबारी का शिकार हुए हैं.

ग़ज़ा के अस्पताल में हुए विस्फोट में बड़ी संख्या में जानें गई थीं. हमास और इसराइल दोनों ने ही एक-दूसरे पर इस हमले का आरोप लगाया है. लेकिन अस्पताल पर हमले ने इस संकट को और गहरा करने का काम किया है.

तो प्रश्न ये उठता है कि इसराइल आख़िर ग़ज़ा में दाखिल क्यों नहीं हो रहा है?

इस सवाल के जवाब के लिए कई कारणों पर नज़र डालनी होगी.

बाइडन फ़ैक्टर

अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन का अचानक इसराइल के दौरे पर पहुँचना इस बात का संकेत है कि व्हाइट हाउस पश्चिमी एशिया में बिगड़ते हालात से ख़ासा चिंतित है.

अमेरिका की दो बड़ी चिंताएं हैं – बेकाबू होता मानवीय संकट और संघर्ष के पूरे मध्य-पूर्व में फैलने का डर.

अमेरिका ने पहले ही ग़ज़ा पर इसराइल के दोबारा कब्ज़ा करने का विरोध कर दिया है. साल 2005 में इसराइल ने ग़ज़ा पर अपना नियंत्रण छोड़ दिया था.

अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने कहा है कि दोबारा इसराइल का ग़ज़ा पर कब्ज़ा करना एक बड़ी चूक होगी.

आधिकारिक रूप से बाइडन मध्य-पूर्व में अपने सबसे अहम सामरिक सहयोगी के समर्थन के लिए तेल अवीव पहुँचे हैं. और साथ ही वो इसराइल की ग़ज़ा के प्रति नीति के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं.

लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से वो बिन्यामिन नेतन्याहू की हार्डलाइन सरकार से थोड़ा सब्र से काम लेने को कह रहे हैं. अमेरिका ये साफ़ जानना चाहता है कि अगर इसराइल दोबारा ग़ज़ा में घुसा तो वो कब तक वहां रहेगा और क्या करेगा?

बहरहाल जब तक एयर फ़ोर्स वन (अमेरिकी राष्ट्रपति का विमान) तेल अवीव में था इसराइल के ग़ज़ा में दाख़िल होने की उम्मीद कम ही थी.

बाइडन की इसराइल यात्रा पर ग़ज़ा के अल-अहली अरब अस्पताल पर हुए हमले का मुद्दा हावी रहा है.

राष्ट्रपति बाइडन ने सार्वजनिक रूप से अस्पताल पर हमले में इसराइली वर्ज़न को सच मानते हुए इसका आरोप ‘दूसरी टीम’ पर लगा चुके हैं.

फ़लस्तीनी अधिकारियों ने साफ़ कहा है कि हमला इसराइल ने किया है.

बीते कुछ दिनों से ईरान ने बार-बार कहा है कि ग़ज़ा पर इसराइली हमले का जवाब दिया जाएगा. हक़ीक़त में इन धमकियों के क्या मायने हैं?

ईरान मध्य-पूर्व में शिया चरमपंथियों को ट्रेनिंग, हथियार और फंड्स देता है. एक हद तक ईरान इन गुटों पर नियंत्रण भी रखता है.

इन गुटों में से सबसे ख़तरनाक हिज़बुल्लाह है जो इसराइली सीमा के उस पर लेबनान में तैनात है.

साल 2006 मे हिज़बुल्लाह और इसराइल में भयानक जंग हुई थी जिसमें हिज़बुल्लाह ने बारुदी सुरंगों के सहारे कई टैंक उड़ा दिए थे.

उस जंग के बाद ईरान ने हिज़बुल्लाह को और मज़बूत किया है. एक अनुमान के अनुसार हिज़बुल्लाह के पास 150,000 रॉकेट और मिसाइल हैं. इनमें कुछ लंबी दूरी तक मार करने वाले सटीक मिसाइलें भी हैं.

अगर इसराइल ग़ज़ा में दाख़िल हुआ तो इस बात की संभावना है कि हिज़बुल्लाह इसराइल की उत्तरी सीमा पर एक नया फ्रंट खोल सकता है. दो मोर्चों पर लड़ना इसराइल की मुसीबतें बढ़ा सकता है.

लेकिन ये साफ़ नहीं है कि हिज़बुल्लाह इस स्थिती में युद्ध के लिए आतुर रहेगा या नहीं. क्योंकि अमेरिकी नेवी के दो युद्धपोत भूमध्य सागर में तैनात हैं और आसानी से हिज़बुल्लाह को निशाने पर ले सकते हैं.

इससे इसराइल को भी थोड़ा भरोसा मिलता है. क्योंकि वो जानता है कि अगर हिज़बुल्लाह मैदान में उतरा तो अमेरिका उसे तबाह करने के लिए ताबड़तोड़ गोले बरसा सकता है.

हालांकि ये भी नोट करने वाली बात है कि साल 2006 में हुए युद्ध में हिज़बुल्लाह के कुछ मिसाइल भूमध्य सागर में तैनात इसारइली युद्धपोत पर भी गिरे थे.

दुनिया के लिए जो मानवीय संकट की परिभाषा है वो इसराइल के लिए थोड़ी अलग है. ख़ासकर ग़ज़ा और हमास के विषय में.

लेकिन जैसे-जैसे फ़लस्तीन में आम लोगों की मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है, हमास की सात अक्तूबर की बर्बरता के बजाय ध्यान इसराइल की ओर जा रहा है.

दुनिया के देश आम ग़ज़ा वासियों की सुरक्षा के लिए चिंतित दिख रहे हैं. और जब भी इसराइली सेना ग़ज़ा में दाख़िल होगी तो मौत का आंकड़ा और भी बढ़ेगा.

सेना ग़ज़ा में गई तो इसराइली सैनिक भी मरेंगे. उनपर घात लगाकर हमले किए जाएंगे, स्नाइपर निशाने पर लेंगे,बारुदी सुरंगों का इस्तेमाल होगा.

और ग़ज़ा में फैली सैकड़ों किलोमीटर लंबी सुरंगें इसराइल के लिए मुसीबत बन सकता है. लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि अधिकतर नुकसान आम लोगों को उठाना पड़ेगा.

इसराइल ख़ुफ़िया तंत्र के लिए बीता एक महीना बुरे ख़्वाब सा रहा है.

इसराइल की घरेलू ख़ुफ़िया एजेंसी शिन बेत के हमास के हमले के बारे में बेख़बर होने पर काफ़ी आलोचना का सामना करना पड़ेगा.

शिन बेत का ग़ज़ा के भीतर ख़बरियों और जासूसों का जाल-सा है. ये लोग हमास के हर कदम पर नज़र रखते हैं. इनकी नज़र फ़लस्तीनी इस्लामिक जिहाद नामक गुट पर भी रहती है.

इसके बावजूद जो सात अक्तूबर को हुआ उसे साफ़ तौर पर इसराइल की सबसे बड़ी इंटेलिजेंस विफलता कहा जा सकता है.

बीते दस दिनों मे इसराइली ख़ुफ़िया तंत्र उसी चूक की भरपाई का प्रयास कर रहा होगा.

ये लोग इसराइली सेना को ग़ज़ा में अग़वा किये गए लोगों के नाम और उनकी लोकेशन की जानकारी दे रहे होंगे. इसके अलावा हमास के कमांडरों और ठिकानों की जानकारी भी जुटाई ही जा रही होगी.

ये भी मुमकिन है इंटेलिजेंस एजेंसियों ने जानकारी एकत्रित करने के लिए वक़्त मांगा हो ताकि जब पैदल सेना ग़ज़ा में दाखिल हो तो उनके पास पर्याप्त जानकारी हो.

सेना ग़ज़ा में घुसने के बाद हमास के जाल में फंसना तो बिल्कुल नहीं चाहेगी.

हमास और इस्लामिक जिहाद ने इसराइली हमले के इंतज़ार में कई बारुदी सुरंगें बिछाई होगीं. इनकी वजह से इसराइल सेना की स्पीड कम हो सकती है.

अंडरग्राउंड सुरंगों में तो चुनौती बिल्कुल अलग ही होगी.

ख़ुफ़िया एजेंसियों को इनकी सटीक जानकारी इसराइली सेना को देनी होगी ताकि वो घात लगाकर किए जाने वाले हमलों से बच सकें.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *