प्लेन हादसे के बाद कोलंबिया के घने जंगलों में 40 दिन तक कैसे ज़िंदा रहे ये चार बच्चे?

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DMT : कोलंबिया  : (13 जून 2023) : –

शुक्रवार 9 जून की रात, कोलंबिया के घने जंगलों के बीच से सेना के वाकी टॉकी पर ज़िंदगी की वो गूंज सुनाई दी जिसके लिए पूरा देश दुआ मांग रहा था: ‘चमत्कार, चमत्कार, करिश्मा, चमत्कार!’

वॉकी टाकी पर सेना के कोडेड संदेश से लोगों को पता चला कि पिछले 40 दिनों से घने जंगलों के बीच जो चार बच्चे लापता थे, वो मिल गए हैं… ज़िंदा और सही सलामत.

ये चारों बच्चे, कोलंबिया के हुईतोतो आदिवासी समुदाय के हैं. सभी बच्चे एक मई को हुए विमान हादसे के वक़्त से लापता थे. चारों बच्चे उस हल्के विमान में सफ़र कर रहे थे, जो एक मई को तड़के अमेज़न के घने जंगलों के बीच दुर्घटना का शिकार हो गया था.

इस हादसे में बच्चों की मां की मौत हो गई थी. जिसके बाद 13 साल, 9 बरस, चार साल और एक साल के ये बच्चे उन घने जंगलों के बीच फंस गए थे, जहां पर ज़हरीले सांपों, ख़तरनाक जगुआर और मच्छरों का बसेरा है.

राहत और बचाव करने वालों को शुरुआत में लगा था कि विमान हादसे में इन चारों बच्चों की भी मौत हो गई है.

लेकिन, जंगल में बच्चों के पैरों के निशान, अधखाए जंगली फलों और दूसरे सुराग़ों ने बचाव टीमों के बीच ये उम्मीद जगा दी कि विमान दुर्घटना के बाद शायद ये बच्चे ज़िंदा बच गए और मदद मांगने के लिए हादसे वाली जगह से दूर चले गए.

विमान हादसे के बाद के छह हफ़्तों तक इन चारों बच्चों तमाम ऐसी मुश्किलों का सामना किया, जिनसे बच पाना शायद अच्छे अच्छों के बस की बात नहीं थी. इसीलिए, कोलंबिया के राष्ट्रपति ने कहा कि ‘इन बच्चों का ज़िंदा बचे रहना एक ऐसी मिसाल है, जो इतिहास में हमेशा दर्ज रहेगा.’

‘जंगल की संतानें’

अगर दुनिया में कभी कोई बच्चा इतने मुश्किल हालात में ज़िंदा रहना जानता है, तो वो मुकुतुई परिवार का ही हो सकता था.

इन बच्चों के दादा फिडेंशियो वैलेंशिया ने पत्रकारों को बताया कि इन चारों में दो बड़े बच्चे लेस्ली और सोलेनी, जंगल में ज़िंदा रहने उसूलों से बख़ूबी वाक़िफ़ थे. उन्होंने बताया कि, हुईतोतो क़बीले के सदस्य बहुत कम उम्र से ही शिकार करना, मछली पकड़ना और खाने-पीने का सामान जमा करना सीखने लगते हैं.

कोलंबिया के मीडिया से बात करते हुए इन बच्चों की चाची दमारिस मुकुतुई ने बताया कि उनके परिवार के बच्चे जब बड़े हो रहे होते हैं, तो वो अक्सर ख़ानदान के दूसरे लोगों के साथ ‘ज़िंदा रहने का खेल’ खेलते हैं.

उन्होंने अपना बचपन याद करते हुए बताया कि, ‘जब हम सब बचपन में ये खेल खेलते थे, तो हम छोटे छोटे तंबू बनाया करते थे.’

उन्होंने बताया कि, ’13 साल की लेस्ली को पता था कि कौन से फल नहीं खाने हैं, क्योंकि जंगल में बहुत से ज़हरीले फल भी मिलते हैं. लेस्ली को एक छोटे बच्चे का ख़याल रखना भी अच्छे से आता था.’

विमान हादसा होने के बाद, लेस्ली ने पेड़ों की शाखों को अपने बालों के फीते से बांधकर रहने का अस्थायी ठिकाना तैयार किया था. जिस सेसना 206 विमान में बच्चे सफ़र कर रहे थे, उसके मलबे से लेस्ली ने फ़रीना नाम का एक तरह का आटा भी खोज निकाला था.

जब तक ये आटा चला, तब तक बच्चे इसी पर गुज़र करते रहे थे. बच्चों की तलाश के अभियान में हिस्सा लेने वाले हुईतोतो समुदाय के एक बुज़ुर्ग एडविन पाकी ने बताया कि, आटा ख़त्म होने के बाद, चारों बच्चे जंगली पेड़ों के बीज खाने लगे थे.

चुनौतियों का जंगल

एडविन पाकी ने पत्रकारों को बताया कि, ‘जंगलों मे पैशन फ्रूट की तरह का ही एक जंगली फल मिलता है, जिसे एविचुर कहते हैं. बच्चे जंगल में इसी फल के बीज खाकर रहते थे. एविचुर का एक पेड़ हादसे वाली जगह से क़रीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर था.’

कोलंबिया के परिवार कल्याण संस्थान के प्रमुख एस्ट्रिड कैसेरेस ने कहा कि ये विमान हादसा उस वक़्त हुआ, जब जंगली ‘पेड़ों में फल आने का मौसम’ था, और ये बच्चे वो फल खाकर बसर कर सकते थे.

फिर भी, जंगल के बेहद दुर्गम माहौल में इन बच्चों को अपनी जान बचाने के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था.

बीबीसी मुंडो से बात करते हुए कोलंबिया के आदिवासी समुदाय के जानकार एलेक्स रुफिनो ने कहा कि ये बच्चे जंगल के ‘बेहद घने और अंधेरे इलाक़े में थे, जहां इस क्षेत्र के सबसे बड़े पेड़ पाए जाते हैं.’

और, वो कहते हैं कि, ‘वैसे तो कई पेड़ों की पत्तियां ऐसी हैं, जिनसे ये बच्चे पानी को साफ़ करके पी सकते थे. मगर, इसी जंगल में कई पेड़ ऐसे भी हैं, जिनके पत्ते ज़हरीले होते हैं.’

एलेक्स ने कहा कि, ‘ये जंगल का वो इलाक़ा है, जहां इंसानों की बहुत आवाजाही नहीं रही है. इन इलाक़ों में छोटे छोटे क़स्बे हैं और वो जंगल के अंदरूनी हिस्से के बजाय नदियों के किनारों पर बसे हैं.’

40 दिनों तक जंगल में शिकार करने वाले जंगली जानवरों से बचने के साथ साथ बच्चों ने भयंकर तूफ़ानी बारिश का भी मुक़ाबला किया. और, हो सकता है कि इस दौरान उन्हें उन हथियारबंद गिरोहों का भी सामना करना पड़ा हो, जिनके बारे में कहा जाता है कि वो जंगल के उस इलाक़े में सक्रिय हैं.

राष्ट्रपति पेट्रो ने बताया कि एक बार तो बच्चों को एक जंगली कुत्ते से अपनी हिफ़ाज़त करनी पड़ी थी.

लेकिन, एलेक्स रुफिनो ने कहा कि इन बच्चों में 13 साल की एक लड़की भी थी, जो आदिवासी समुदाय के बीच पली बढ़ी थी. उसने ऐसे कई हुनर सीख लिए थे, जिनसे वो घने जंगलों और शिकारी जानवरों के ख़तरनाक माहौल के बीच ज़िंदा रह सकती थी.

इन बच्चों की परवरिश कोलंबिया के दक्षिणी पूर्वी इलाक़े वाउपेस में हुई थी. यहां के गुआनानो समूह के नेता जॉन मोरेनो ने कहा कि बच्चों को ‘उनकी दादी ने पाला-पोसा’ था.

आदिवासी समुदाय के बीच इन महिलाओं का बहुत सम्मान किया जाता है. जॉन मोरेनो ने कहा कि, ‘बच्चों ने जंगल में अपनी जान बचाने के लिए उन नुस्खों को इस्तेमाल किया, जो उन्होंने अपने समुदाय के बुज़ुर्गों से सीखे थे. उन्होंने ज़िंदा रहने के लिए अपने पुरखों के तजुर्बों का इस्तेमाल किया.’

एक नाटकीय बचाव अभियान

विमान हादसे के बाद जब बच्चों की तलाश का अभियान चल रहा था, तो इसकी धीमी रफ़्तार को लेकर कोलंबिया के अधिकारियों की आलोचना भी हुई थी. जब राष्ट्रपति गुस्ताव पेट्रो के ऑफ़िस ने बच्चों के मिल जाने का एक ग़लत ट्वीट किया, तो उसके लिए राष्ट्रपति की भी तीखी आलोचना हुई थी.

अधिकारियों ने विमान हादसे वाली जगह के आस-पास के जंगलों में 10 हज़ार पर्चियां गिराई थीं. इनमें स्पेनिश भाषा और हुईतोतो आदिवासियों की ज़बान में, जंगल में ज़िंदा बचे रहने की तरकीबें लिखी हुई थीं. हेलीकॉप्टर के ज़रिए जंगलों में लाउडस्पीकर से एलान किए जाते थे, जिसमें इन बच्चों की दादी अपनी आवाज़ में उनका हौसला बढ़ाती रहती थीं कि बच्चों की तलाश की जा रही है.

लेकिन, मीडिया की नज़रों से दूर रहते हुए, कोलंबिया की सेना इन बच्चों के बेहद क़रीब पहुंचती जा रही थी. बचाव अभियान चला रहे दस्ते के कमांडर जनरल पेड्रो सांचेज़ ने बताया कि बचाव दल के सदस्य कई बार तो, उस जगह से 20 से 50 मीटर (66 से 164 फुट) की दूरी से गुज़र गए थे, जहां आख़िरकार बच्चे मिले थे.

जब आख़िरकार बच्चों को जंगल में खोज निकाला गया, उस वक़्त सेना के 150 जवान और स्थानीय आदिवासी समुदायों के 200 स्वयंसेवक उनकी तलाश में जुटे हुए थे. ये सब मिलकर 300 वर्ग किलोमीटर (124 वर्ग मील) इलाक़े में बच्चों को खोज रहे थे.

तलाशी अभियान के दौरान जनरल पेड्रो सांचेज़ ने पत्रकारों से कहा था कि, ‘ये भूसे के ढेर में से सुई की तलाश नहीं है. हमारा अभियान तो एक विशाल क़ालीन में से एक नन्हीं सी मक्खी खोज निकालने का है.’

लेकिन, एक महीने से भी ज़्यादा लंबे समय तक चले खोजी अभियान का अंत शुक्रवार को हुआ, जब ख़ास खोजी कुत्तों ने जंगलों के बीच से इन बच्चों को ढूंढ निकाला.

कोलंबिया के रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी किए गए एक वीडियो में इन बच्चों को घने जंगलों के ऊंचे पेड़ों के बीच से निकालकर हेलीकॉप्टर में बिठाते दिखाया गया था. इन बच्चों को कोलंबिया की राजधानी बोगोटा ले जाया गया, जहां सबसे पहले उन्हें एंबुलेंस से इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया.

सेना का शुक्रिया अदा

बच्चों के परिजनों ने सेना का शुक्रिया अदा किया कि बचने की बहुत कम उम्मीद होने के बावुजूद खोजी दस्तों ने उम्मीद नहीं हारी और बच्चों को घने जंगलों में तलाशते रहे. उन्होंने सरकार से भी गुज़ारिश की कि बच्चों को जल्दी से जल्दी उनके परिवार को सौंपा जाए.

इन बच्चों की दादी ने सरकारी मीडिया से कहा कि ‘मैंने कभी भी उम्मीद नहीं हारी थी. मैं हमेशा बच्चों की तलाश के अभियान का समर्थन करती रही था. मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है. मैं राष्ट्रपति पेट्रो और अपने देश के नागरिकों का शुक्रिया अदा करती हूं, जिन्होंने बच्चों की तलाश के लिए इतनी मुश्किलों का सामना किया.’

राष्ट्रपति गुस्ताव पेट्रो ने भी सेना और स्वयंसेवकों की कोशिशें कामयाब होने पर ख़ुशी जताई. उन्होंने कहा कि, ‘ये सब ज्ञान के संगम से मुमकिन हुआ: आदिवासियों का और सेना का’, और उन्होंने कहा कि, ‘यही अमन का सच्चा रास्ता है.’

लेकिन, राष्ट्रपति ने जंगल में तमाम मुश्किलों के बीच 40 दिनों तक ज़िंदा रहे बच्चों और प्रकृति से उनके संबंध की ख़ास तौर से तारीफ़ की. राष्ट्रपति पेट्रो ने कहा कि, ‘वो जंगल की संतानें हैं और अब वो पूरे कोलंबिया के बच्चे हैं.’

कोलंबिया में बहुत से लोग कैथोलिक संप्रदाय में गहराई से यक़ीन रखते हैं. उन लोगों ने बच्चों के मिलने को ‘चमत्कार’ क़रार दिया. वहीं, कोलंबिया के आदिवासी समुदायों के जानकार एलेक्स रुफिनो ने कहा कि असली बात तो इन समुदायों के जंगल से आध्यात्मिक रिश्ते की है, जिसके चलते ये बच्चे जंगल में इतने दिन बचे रह सके.

एलेक्स रुफिनो ने कहा कि, ‘ये जंगल केवल हरा-भरा नहीं है बल्कि, इसमें वो आदिम ऊर्जा भी है, जिससे आदिवासियों का गहरा नाता रहा है. जिससे वो सीखते हैं और एक दूसरे की मदद करते हैं.’

एलेक्स ने कहा कि, ‘इसे समझ पाना मुश्किल है. लेकिन, समाज और इंसानों के लिए ये एक अच्छा मौक़ा है. इस घटना से वो सीख सकते हैं कि अलग अलग क्षेत्रों में दुनिया और ज़िंदगी के प्रति अलग नज़रिया रखने वाले लोग किस तरह जीवन बसर करते हैं.’

उन्होंने कहा कि, ‘उन बच्चों की मां जो हादसे का शिकार हो गई, उसी ने मौत के बाद आत्मा बनकर बच्चों की हिफ़ाज़त की, और अब जबकि बच्चे सुरक्षित हाथों में हैं, तब जाकर उस मां आत्मा को तसल्ली मिली होगी. अब जाकर वो सुकून से रह सकेगी.’

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