DMT : दिल्ली : (24 जुलाई 2023) : –
दिल्ली से तक़रीबन 60 किलोमीटर दूरी पर बाग़पत का गांव है रटौल. इस गांव की पहचान यहां के होने वाले ख़ास आम भी है.
इस आम का नाम इसी गांव के नाम पर ही रखा गया है.
पाकिस्तान में भी लोग दावा करते हैं कि रटौल भारतीय का नहीं, बल्कि पाकिस्तान का आम है.
इसको लेकर एक राजनीतिक वाक़या बहुत चर्चित रहा है.
1981 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल मोहम्मद ज़िया-उल-हक़ ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक ख़ास क़िस्म के आम भेंट किए थे.
जनरल ज़िया-उल-हक़ ने उन्हें बताया था कि ये आम रटौल कहलाता है और उसकी प्रजाति पाकिस्तान में पाई जाती है.
जब बात उत्तर प्रदेश के रटौल गांव पहुंची, तो वहां के कुछ लोग इंदिरा गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे और उन्हें बताया कि रटौल आम पाकिस्तान की नहीं बल्कि भारत में पश्चिम उत्तर प्रदेश के ज़िला मेरठ (उस समय रटौल गांव का ज़िला मेरठ लगता था) के रटौल गांव की प्रजाति है.
वर्तमान में ये गांव बाग़पत की खेकड़ा तहसील की नगर पंचायत रटौल है.
जुनैद फ़रीदी रटौल मैंगो प्रोड्यूसर एसोसिएशन के सचिव और नगर पंचायत चेयरमैन हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया, “उस समय तत्कालीन कैबिनेट मंत्री चौधरी चांदराम, चाचा जावेद फ़रीदी, मैं और एक-दो लोग और इंदिरा गांधी से मिलने दिल्ली गए थे.”
“हमने उनको बताया था कि रटौल आम पाकिस्तान का नहीं बल्कि मेरठ के रटौल गांव की प्रजाति है, इसे हमारे दादा ने विकसित किया है. इस पर इंदिरा गांधी ने पत्रकारों को बुलाया, प्रेस कॉन्फ्रेंस कराई और हमारे साथ अपनी फोटो भी खिंचवाई थी.”
रटौल आम पर पाकिस्तानी दावेदारी के सवाल पर रटौल मैंगो प्रड्यूसर एसोसिएशन से जुड़े हबीबुर्रहमान कहते हैं, “पाकिस्तान रटौल आम पर अपना झूठा दावा पेश करता है. सच तो ये है कि आम की ये प्रजाति बाग़पत के रटौल गांव में ही पैदा की गई थी.”
रटौल अब गांव से नगर पंचायत बन चुका है और नगर पंचायत अध्यक्ष जुनैद फ़रीदी ही हैं, जिनका दावा है कि रटौल आम की प्रजाति को उनके दादा शेख़ मोहम्मद आफ़ाक़ फ़रीदी ने सबसे पहले तैयार किया था.
जुनैद फ़रीदी कहते हैं, ” हम इस आम को जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस) कराने के लिए काफ़ी समय से कोशिशों में रहे. इस आम की प्रजाति हमारे दादा शेख़ मोहम्मद आफाक़ ने विकसित की थी.”
वो बताते हैं, “वे आम की पत्ती खाकर आम की प्रजाति बता दिया करते थे. रटौल आम प्रजाति भी उन्होंने ही विकसित की थी, इसका प्रमाण ये है कि हमको 5 अक्टूबर 2021 में बनारस में हुए एक कार्यक्रम में चेन्नई की एक संस्था ने जीआई टैग की घोषणा की थी.”
वो कहते हैं, “हमारी वर्षों की मेहनत रंग लाई और हम रटौल के अधिकृत निर्यातक बन गए हैं.”
जीआई टैग मिलने की प्रक्रिया के बारे में बाग़पत के जिला उद्यान अधिकारी दिनेश कुमार अरुण ने बीबीसी को बताया, “किसी भी इलाक़े का जो उत्पाद होता है, उससे उस इलाक़े की पहचान होती है.”
वो कहते हैं, “जब ये उत्पाद उस स्तर तक पहचान बना लेता है कि दूर-दर तक उसे पहचाना जाने लगे तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया अपनाई जाती है, इस प्रक्रिया में प्रमाणिकता साबित होने पर ही जीआई टैग मिलता है.”
वे साथ में ये भी कहते हैं, “बाग़पत के गांव रटौल मैं पैदा होने वाले रटौल आम को वर्ष 2021 में जीआई टैग मिल चुका है, ये क्षेत्र के लिए एक ख़ुशी की बात है.”
कैसे पाकिस्तान पहुंची पौध?
सवाल यही है कि रटौल प्रजाति पाकिस्तान कैसे पहुंची?
इसको लेकर बाग़पत के इस रटौल गांव में अलग-अलग दावे पेश किए जाते हैं, लेकिन इस प्रजाति को जब से जीआई टैग मिला है तभी से उनके दावों को बल मिलता दिखता है.
रटौल आम को जीआई टैग उमर फ़रीदी ऑर्गेनाइज़ेशन के नाम से मिला है. उमर फ़रीदी रटौल के नगर पंचायत अध्यक्ष जुनैद फ़रीदी के बेटे हैं.
उमर फ़रीदी ने बीबीसी को बताया, “रटौल आम प्रजाति हमारे गांव की है और हमारे परदादा ने इसे विकसित किया. इसका प्रमाण हमें जीआई टैग मिलना है.”
वो कहते हैं, “हमारे परदादा आफ़ाक़ फ़रीदी एक बार आम के एक बाग़ के पास से गुज़र रहे थे. आदतन उन्होंने आम की पत्ती तोड़ी और उसे चबाने लगे, उन्हें ये पत्ते का स्वाद थोड़ा अलग लगा, उन्होंने इस आम के पौधे को लेकर इस पर कुछ शोध किए और 40 वर्षों के भीतर रटौल प्रजाति की कई नस्लें तैयार कर दी.”
उमर फ़रीदी के दावे के मुताबिक़ उन्होंने 1928 में सारा-ए-आफाक़ पौधशाला तैयार की जिसमें आम की 500 से अधिक प्रजातियां मौजूद थीं.
इसके अलावा इस पौधशाला का 1935 में सरकारी विभाग में पंजीकरण भी कराया जिसके प्रमाण उनके पास मौजूद हैं.
कैसे पड़ा नाम
रटौल आम की पैदावार रटौल गांव में होती है इसलिए रटौल आम कहलाना स्वाभाविक है, लेकिन पाकिस्तान में इसे अनवर रटौल का नाम दिया गया है.
हालांकि जुनैद फ़रीदी कहते हैं, “मेरी दादी का नाम अनवर ख़ातून था, मेरे दादा ने उनके नाम पर इस आम का नाम अनवर रटौल रखा था. लेकिन भारत के विभाजन के बाद रटौल गांव से ही हमारे एक रिश्तेदार पाकिस्तान गए तो वह यहां से इस रटौल आम के कुछ पौधे अपने साथ ले गए और अनवर रटौल नाम रख दिया.”
जुनैद फ़रीदी कहते हैं कि ये आम बेहद मीठा और ख़ुशबूदार होता है, एक कमरे में यदि दो आम रख दिए जाएं तो उनकी महक से प्रतीत होता है मानो पूरा कमरा आमों से भरा हुआ हो.
रटौल प्रजाति ही नहीं बल्कि आमों की अन्य प्रजातियों के बाग़ों की संख्या और फसल पैदावार में कमी आने की बातें सामने आ रही हैं.
मैंगो प्रड्यूसर एसोसिएशन से जुड़े हबीबुर्रहमान कहते हैं, “मैंने बीएससी कृषि संकाय में पास किया है. 10 साल पहले तक आम के जो बाग़ थे, उन में कमी आई है. रटौल आम की फसल भी अब सिर्फ 500 एकड़ के लगभग में ही रह गई है.”
“इसमें भी तापमान में उतार-चढ़ाव इस फसल को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. पिछले दो सालों में रटौल की पैदावार मुश्किल से बीस प्रतिशत ही हो पाई है.”
बाग़ों की कम होती संख्या पर क्षेत्रीय उद्यान अधिकारी दिनेश कुमार अरुण कहते हैं, “क्षेत्र में ईट भट्टों से उठे प्रदूषण और आम की फसल में रोग के चलते क्षेत्र में रटौल की कुल खेती तक़रीबन ढाई सौ हेक्टेयर है जबकि अन्य क़िस्मों के आम की फसल मिलाकर ये 1000 हेक्टेयर के लगभग है. ये क्षेत्र एनसीआर में होने के चलते लोग ज़मीनों को महंगे दामों पर बेच रहे हैं जिससे बाग़ों की संख्या घट रही है.”
देश विदेश तक फैला आम का नाम
एसडीएम ज्योति शर्मा कहती हैं, “रटौल आम के बाग़ घटने के पीछे शहरीकरण को कारण नहीं माना जा सकता है, लेकिन मैंने हाल ही में यहां चार्ज लिया है, इसलिए इस आम की पैदावार बढ़ाने के लिए उचित प्रयास किए जाएंगे.
“इसके अलावा मैंने इस आम का बहुत नाम सुना है. इस प्रजाति को जीआई टैग भी मिल चुका है, अब देखते हैं हम इसमें और बेहतर क्या कर सकते हैं.”
रटौल आम का नाम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों तक है.
यहां दिल्ली के अलावा देश के तमाम शासक- प्रशासकों में आम की मांग रहती है. साथ ही विदेशी लोग भी रटौल का स्वाद लेने के लिए इस गांव में पहुंचते हैं.
स्थानीय निवासी शकील अहमद कहते हैं, “अभी हाल ही में स्वीडन और चीन से सैलानी यहां पहुंचे थे जबकि अमेरिका लंदन आदि देशों से भी कई बार लोग यहां पहुंच आम का स्वाद ले चुके हैं. अपने साथ भी आमों की पेटियां ले जाते हैं. आम की कीमत 100 रुपये प्रति किलो से शुरू होती है.”