राघव चड्ढा पर सदन में ‘फ़र्ज़ी हस्ताक्षर’ कराने का आरोप, अमित शाह नाराज़, जानिए पूरा मामला

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DMT : नई दिल्ली : (08 अगस्त 2023) : –

सोमवार को राज्यसभा में दिल्ली सर्विस विधेयक पारित हो गया.

लेकिन इस दौरान आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा विवाद में घिर गए.

उन पर पाँच राज्यसभा सांसदों ने “फ़र्ज़ी हस्ताक्षर” कराने का आरोप लगाकर विशेषाधिकार हनन की शिकायत की है.

दरअसल, राघव चड्ढा इस विधेयक को सिलेक्ट कमिटी के पास भेजने का प्रस्ताव लेकर आए थे. इस प्रस्ताव पर पाँच सांसदों के नाम शामिल किए गए थे, जिनका कहना है कि उन्होंने इस पर हस्ताक्षर ही नहीं किए, ना ही उन्हें इस बात की कोई जानकारी थी कि उनके नाम इस प्रस्ताव के समर्थन में शामिल किए जा रहे हैं.

सांसदों के ‘फ़र्ज़ी हस्ताक्षर’ करवाने के आरोप पर चड्ढा ने कहा, “विशेषाधिकार समिति को मुझे नोटिस भेजने दीजिए, मैं अपना जवाब समिति को दूंगा.”

दिल्ली सर्विस विधेयक को सिलेक्ट कमिटी को भेजने के राघव चड्ढा के प्रस्ताव को ध्वनिमत से ख़ारिज कर दिया गया.

इस विधेयक के ज़रिए मोदी सरकार उस अध्यादेश को क़ानून बना रही है, जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल के पास दिल्ली में अधिकारियों की पोस्टिंग या ट्रांसफ़र का आख़िरी अधिकार होगा.

जिन पाँच सांसदों ने ये दावा किया गया है कि प्रस्ताव पर उनके हस्ताक्षर फ़र्ज़ी थे उनमें बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी, नरहरि अमीन, पी कोन्याक, बीजेडी सांसद सस्मित पात्रा और एआईडीएमके सांसद थम्बी दुरई का नाम शामिल है.

सोमवार रात सदन में क्या हुआ

सोमवार को राज्यसभा में दिल्ली सर्विस विधेयक पर चर्चा हुई. आम आदमी पार्टी ने इस विधेयक को सिलेक्ट कमिटी को भेजने का प्रस्ताव दिया.

वोटिंग से पहले उपसभापति ने उन सदस्यों के नाम पढ़े, जिन्हें प्रस्तावित सिलेक्ट कमिटी में शामिल किया गया था.

इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि पाँच सदस्यों ने शिकायत की है कि आप नेता की ओर से पेश किए गए प्रस्ताव में उनकी सहमति के बिना उनके नाम शामिल किए गए हैं, साथ ही उन्होंने हस्ताक्षर भी नहीं किए हैं.

अमित शाह ने इसे सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन बताते हुए कहा कि इस मामले को विशेषाधिकार समिति को भेजा जाना चाहिए.

शाह ने कहा, “इन सांसदों की ओर से किसने हस्ताक्षर किए हैं, यह जाँच का विषय है.”

उन्होंने उपसभापति से शिकायतकर्ता सदस्यों के बयान दर्ज करने की अपील की.

अमित शाह ने कहा, “ये फ़र्ज़ीवाड़ा है. संसद को रिकॉर्ड पर यह लेना चाहिए और जिसने फ़र्ज़ीवाड़ किया है उस पर कार्रवाई करनी चाहिए.”

वाईएसआर कांग्रेस के सांसद विजय साई रेड्डी ने दावा किया कि उनकी पार्टी के एक सदस्य का नाम भी राघव चड्ढा ने उनकी सहमति के बिना शामिल किया था.

रेड्डी ने कहा, “आम आदमी पार्टी सांसद राघव चड्ढा ने कुछ टिप्पणियां कीं और हमने उनका जवाब दिया है. किसी प्रस्ताव को पेश करने से पहले, उन सदस्यों से राय-मश्वरा करना पड़ता है, जिनके नाम इसमें शामिल हैं.”

रेड्डी ने कहा, ”लेकिन राघव चड्ढा ने हमारी पार्टी के एक सदस्य का नाम दिल्ली सर्विस बिल पर प्रस्तावित सिलेक्ट कमिटी में उनके साथ बातचीत किए बिना ही शामिल कर दिया. इसलिए, हमारे सांसद सहित कुछ सदस्यों ने राघव चड्ढा के ख़िलाफ़ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने का फ़ैसला किया है.”

बीजेडी के सांसद सस्मित पात्रा ने समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा, “जिस समय सदन में दिल्ली सर्विस बिल पर प्रस्ताव पेश किया जा रहा था, मुझे पता चला कि राघव चड्ढा की ओर से पेश किए गए एक प्रस्ताव में मेरे नाम का ज़िक्र किया गया है. आख़िर वो मेरी सहमति के बिना मेरा नाम कैसे लिख सकते हैं. मुझे उम्मीद है कि सदन के सभापति कार्रवाई करेंगे, मैंने एक शिकायत दर्ज कराई है. ज़ाहिर है, यह विशेषाधिकार का मामला है. हम सभी ने व्यक्तिगत रूप से अपनी शिकायतें दर्ज की हैं.”

बीजेपी के सांसद नरहरि अमीन ने कहा, “राघव चड्ढा ने विधेयक को सिलेक्ट कमिटी के पास भेजने को लेकर मेरा नाम भी शामिल किया जबकि ना ही उन्होंने इसे लेकर मुझसे बात की थी और ना ही मैंने कभी भी इस पर सहमति दर्ज कराई थी. मैंने कभी इस पर अपने हस्ताक्षर नहीं किए.”

एआईएडीएमके के सांसद थम्बी दुरई ने कहा कि वह पहले ही राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग कर चुके हैं.

उन्होंने कहा, “मैंने राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजें. प्रस्ताव में मेरा नाम कैसे शामिल किया गया जबकि मैंने किसी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर ही नहीं किये थे? यह संभव है कि मेरा हस्ताक्षर फ़र्ज़ी हो.”

संसदीय मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस पूरे वाक़ये पर कहा, “मैं कांग्रेस से पूछना चाहता हूँ कि क्या वे उन लोगों का समर्थन कर रहे हैं जो फ़र्ज़ीवाड़ कर रहे हैं. इस पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. ”

हालांकि कांग्रेस सांसद शक्ति सिंह गोहिल का कहना है कि सिलेक्ट कमिटी में नाम शामिल करने के लिए सदस्यों की सहमति की ज़रूरत नहीं होती, अगर कोई समिति में शामिल नहीं होना चाहता तो उसका नाम समिति से ख़ुद ब ख़ुद हट जाता है.

उन्होंने कहा, “एक बिल को अगर मैं सिलेक्ट कमिटी को भेजने का प्रस्ताव पेश कर रहा हूं तो कमिटी में रहने वाले सदस्य की सहमति लेने की कोई बाध्यता नहीं है. अगर कोई सदस्य समिति में नहीं रहना चाहता तो उसका नाम ख़ुद ही हटा दिया जाएगा. प्रस्ताव में जिस सदस्य के नाम का उल्लेख किया गया है, उसके हस्ताक्षर लेने का कोई प्रावधान नहीं है.”

131 वोटों के समर्थन से राज्यसभा में बिल पास

सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक को राज्यसभा में 131 वोटों के साथ पारित कर दिया गया. इस विधेयक के ख़िलाफ़ 102 वोट किए गए, चार सांसद वोटिंग प्रक्रिया में अनुपस्थित रहे.

इस बिल पर वोटिंग के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करते हुए लिखा, “बीजेपी द्वारा लाए गए इस ग़ैर क़ानूनी और काले क़ानून के ख़िलाफ़ संसद के अंदर और बाहर बहुत सारी पार्टियों ने, बहुत सारे नेताओं ने दिल्ली के लोगों का साथ दिया. इस समर्थन और साथ के लिए उन सभी नेताओं और सभी पार्टियों को दिल्ली के दो करोड़ लोगों की तरफ़ से मैं तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ.”

“विशेषकर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी और जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन जी का, जो स्वास्थ्य के नज़रिए से विपरीत परिस्थितियों में भी संसद में आए, दोनों वरिष्ठ नेताओं का सभी दिल्लीवासियों की तरफ़ से बहुत-बहुत आभार.”

मोदी सरकार को इस विधेयक पर वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी और टीडीपी का समर्थन मिला.

विधेयक के ख़िलाफ़ बोलते हुए आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने बीजेपी को अपने नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की बात मानने की सलाह दी जो दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा चाहते थे.

चड्ढा ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार इस मामले पर दोबारा कोर्ट जाएगी.

कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि बीजेपी के पास इस विधेयक को पारित कराने का न तो संवैधानिक और न ही नैतिक अधिकार है.

उन्होंने कहा, “आपने 25 साल पहले दिल्ली में चुनाव जीता था, आपके पास क्या नैतिक अधिकार है? सरकार इस बिल को दिल्ली के लिए एक मॉडल मानती है. उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लिए एक मॉडल का आविष्कार किया जो आज अदालत में है.”

सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला के उलट ये क़ानून?

इस साल 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफ़र और पोस्टिंग के अधिकार को लेकर केजरीवाल सरकार के समर्थन में फ़ैसला सुनाया था.

कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि ज़मीन, पुलिस और सार्वजनिक आदेश को छोड़कर अधिकारियों के ट्रांसफ़र और पोस्टिंग का अधिकार समेत सभी मामलों पर दिल्ली सरकार का पूरा अधिकार होना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एम आर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे.

हफ़्ते भर बाद, केंद्र सरकार ने 19 मई को राष्ट्रीय राजधानी से संबंधित संविधान के विशेष प्रावधान अनुच्छेद- 239एए के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफ़र और पोस्टिंग को लेकर एक अध्यादेश जारी किया था.

अध्यादेश के ज़रिए सेवाओं के नियंत्रण को लेकर आख़िरी फैसला लेने का अधिकार उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया था.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 के तहत दिल्ली में ‘दानिक्स’ कैडर के ‘ग्रपु-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित किया जाएगा.

दानिक्स का मतलब है दिल्ली, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दमन एंड द्वीप और दादरा एंड नागर हवेली सिविल सर्विसेस.

प्राधिकरण में दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली के गृह प्रधान सचिव समेत कुल तीन सदस्य होंगे. मुख्यमंत्री को इस प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया है लेकिन अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति से जुड़े फैसले लेने का हक़ तो होगा लेकिन आख़िरी मुहर उपराज्यपाल की होगी.

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