अजीत डोभाल ने सऊदी अरब में यूक्रेन पर हो रहे शांति सम्मेलन में क्या कहा, प्लान कामयाब होने की कितनी उम्मीद?

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DMT : नई दिल्ली : (06 अगस्त 2023) : –

सऊदी अरब में यूक्रेन संकट के हल के लिए शांति सम्मेलन हो रहा है. पोर्ट सिटी जेद्दाह में आयोजित सम्मेलन में यूक्रेन के दस सूत्रीय शांति प्रस्ताव पर चर्चा हो रही है.

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी इस सम्मेलन के लिए सऊदी अरब पहुंचे हैं.

सम्मेलन में लगभग 40 देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और बडे़ अधिकारी हिस्सा ले रहे हैं.

लेकिन इसमें रूस हिस्सा नहीं ले रहा है. रूस ने कहा है कि वो इस पर नजर रखेगा.

रूस के सहयोगी चीन ने यूक्रेन पर हमले की निंदा नहीं की है लेकिन उसने कहा है कि वह अपने यूरेशियन मामलों के विशेष दूत ली हुई को बातचीत में शामिल होने के लिए जेद्दाह भेजेगा.

चीन की तरह ही भारत भी यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा से बचता रहा है.

सम्मेलन में हिस्सा ले रहे भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने कहा है कि भारत संघर्ष शुरू होने के तुरंत बाद से ही रूस और यूक्रेन से लगातार बात कर रहा है.

उनका कहना है कि भारत ‘यूएन चार्टर में मौजूद सिद्धांतों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर आधारित विश्व व्यवस्था का समर्थक है.’

डोभाल ने कहा कि उनका देश रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष का स्थायी समाधान चाहता है. इसके लिए वो लगातार कोशिश कर रहा है.

यूक्रेन पश्चिमी देशों के बाद इन देशों से अपने पक्ष में समर्थन जुटाने की कोशिश में लगा है. इनमें से कई देश ऐसे हैं जो रूस-यूक्रेन संघर्ष पर निष्पक्ष रवैया अपनाए हुए हैं.

दूसरी ओर, सऊदी अरब अपनी छवि को विस्तार देते हुए विश्व राजनीति और कूटनीति में बड़ी भूमिका निभाने के लक्ष्य के तहत यूक्रेन पर शांति सम्मेलन करा रहा है.

सऊदी अरब अपने इसी लक्ष्य के मद्देनजर संतुलन बनाए रखने की नीति अपना रहा है. उसने ओपेक प्लस में तेल उत्पादन में कटौती के मामले में रूस का साथ दिया है.

लेकिन अब यूक्रेन पर शांति सम्मेलन करा कर ये संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि सऊदी अरब दुनिया में एक ‘मिडिल पावर’ के तौर पर उभरना चाहता है.

सऊदी अरब पहुंचे डोभाल क्या बोले?

शांति सम्मेलन में हिस्सा लेने जेद्दाह पहुंचे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा कि भारत यूक्रेन संकट के हल के लिए लगातार कोशिश कर रहा है.

भारत यूक्रेन में शांति के लिए शुरू से ही बातचीत और कूटनीति का पक्षधर रहा है. यूक्रेन संकट का ऐसा हल निकाला जाना चाहिए जो रूस और यूक्रेन दोनों को मंजूर हो. भारत के लिए इससे ज्यादा खुशी की कोई बात नहीं होगी.

इस साल की शुरुआत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान में जी-7 सम्मेलन के इतर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से मुलाकात के दौरान कहा था कि भारत इस संकट के हल के लिए जो भी संभव होगा करेगा.

विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह चीन ने ईरान और सऊदी अरब का समझौता कराने के बाद एक बड़ी कूटनीतिक कामयाबी हासिल की है ठीक उसी तरह की सफलता सऊदी अरब भी चाहता है.

अगर सऊदी अरब में होने वाले सम्मेलन में यूक्रेन और रूस के बीच कोई समझ बनती है तो वो सऊदी अरब की बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत होगी.

इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफ़ेयर के फ़ेलो और मध्य-पूर्व मामलों के जानकार फज़्ज़ुर रहमान कहते हैं, ”रूस और यूक्रेन के बीच शांति की पहल कर वो ये संदेश देना चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर वो बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार है.’’

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफ़ेसर मुदस्सर क़मर कहते हैं, ”ये सऊदी अरब की बढ़ती महत्वाकांक्षा की निशानी है. वो अब एक मिडिल पावर के तौर पर उभरना चाहता है. वो जी-20 का सदस्य है. ब्रिक्स का सदस्य बनना चाहता है. एससीओ का डायलॉग पार्टनर है.”

”दरअसल वो भी अपनी विदेश नीति में भारत की तरह स्ट्रैटेजिक अटॉनोमी का तत्व जोड़ना चाहता है. सऊदी अरब अब विश्व मंच पर बड़ी भूमिका निभाना चाहता है और यूक्रेन युद्ध ने उसे ये मौका मुहैया करा दिया है.”

”सऊदी अरब बहुध्रुवीय विश्व के समर्थक और वैश्विक मंच पर मज़बूत हस्तक्षेप करने वाले देश की तरह दिखना चाहता है. वो अपनी विदेश नीति को लगातार विस्तार दे रहा है. एक ग्लोबल पावर के तौर पर अपनी पहचान बनाने के लिए सऊदी अरब ने पूरी ताकत झोंक दी है.’’

रूस-यूक्रेन के बीच शांति कायम करा पाएगा सऊदी अरब

मुदस्सर कहते हैं, ”शांति रूस और यूक्रेन पर निर्भर है. लेकिन अब तक दोनों देशों का जो रुख है उससे लगता नहीं कि दोनों लड़ाई रोकेंगे.”

यूक्रेन रूस से उसके कब्ज़े वाली जगहों से पीछे हटने को कह रहा है. तभी वो बात करेगा. वहीं रूस कह रहा है कि यूक्रेन ज़मीनी हकीकत स्वीकार करे तभी समझौते की कोई पहल होगी.

इसके बावजूद दोनों देशों के बीच शांति की इस पहल में सऊदी अरब के अपने दो अहम हित जुड़े हैं.

मुदस्सर कहते हैं, ”सऊदी अरब के लिए खाद्य सुरक्षा बेहद ज़रूरी है क्योंकि वो यूक्रेन और रूस से बड़ी मात्रा में अनाज मंगाता है.”

इसलिए रूस और यूक्रेन के बीच शांति कायम होती है तो खाद्य सुरक्षा के मोर्चे पर उसकी चिंता खत्म हो जाएगी.

सऊदी अरब का दूसरा बड़ा हित उसके तेल कारोबार से जुड़ा है. रूस के साथ उसकी नज़दीकी उसके तेल कारोबार को और मज़बूती देगा.

रूस के साथ खड़े होने से वह अमेरिकी तेल लॉबी भी चुनौती दे सकेगा.

रूस और यूक्रेन के बीच शांति की ये पहल अगर बहुत ज्यादा कामयाब न भी रही तो भी ये वैश्विक मंच पर सऊदी अरब की छवि को मज़बूत ही करेगा.

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