कनाडा के लिए अमेरिका क्या जाएगा भारत के ख़िलाफ़?

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DMT : कनाडा : (23 सितंबर 2023) : –

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारत का हाथ होने का इल्ज़ाम लगाने के बाद से दोनों देशों के बीच तल्ख़ी लगातार बढ़ती दिख रही है.

इस राजनयिक संकट के बीच दोनों देश एक-दूसरे के राजनयिकों को अपने यहां से निष्कासित कर चुके हैं. अपने नागरिकों के लिए प्रतिकूल ट्रैवल एडवाइज़री जारी कर चुके हैं. भारत ने कनाडा में वीज़ा सेवाओं को भी बंद कर दिया है.

भारत में वॉन्टेड लोगों को कनाडा में पनाह दिए जाने की बात भी भारत ने कही है. उसने साथ ही ये भी कहा है कि इन अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने या उनके प्रत्यर्पण के लिए कनाडा की तरफ़ से कोई मदद नहीं मिली है.

दोनों देशों के बीच बिगड़े हालत में बहुत सी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि अमेरिका का इस पूरे घटनाक्रम पर क्या रुख़ होगा.

अमेरिका और कनाडा के बीच दशकों से अच्छे संबंध हैं. दोनों ही देश फ़ाइव आईज़ अलायन्स नाम के रणनीतिक समझौते का हिस्सा भी हैं.

वहीं पिछले कुछ सालों में भारत और अमेरिका के बीच नज़दीकी बढ़ी है. ये साफ़ है कि अमेरिका भारत के साथ अपने रिश्ते मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है.

भारत को कोई ‘विशेष छूट’ नहीं – अमेरिकी एनएसए

हाल ही में हाउस ऑफ़ कॉमन्स में कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने भारत सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था, ”हमारे पास ठोस सबूत है जिसके आधार पर ये सामने आया है कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारत के एजेंटों का हाथ हो सकता है.”

उन्होंने कहा था, ”कनाडा की धरती पर किसी कनाडाई नागरिक की हत्या में किसी विदेशी सरकार की संलिप्तता हमारी संप्रभुता का अस्वीकार्य उल्लंघन है.”

भारत ने इन आरोपों को पूरी तरह ख़रिज किया है और कहा है कि ये आरोप ‘बेतुके’ और ‘प्रेरित’ हैं.

अमेरिका के कई अधिकारियों के हालिया बयानों पर नज़र डालें तो साफ़ हो जाता है कि अमेरिका निज्जर की हत्या के मसले पर भारत को कोई ख़ास रियायत देने के मूड में नहीं है.

गुरुवार को अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने कहा कि इस मामले में अमेरिका भारत को कोई ‘विशेष छूट’ नहीं देगा. सुलिवन से पूछा गया था कि इस मामले में अमेरिका की चिंता क्या दोनों देशों के मज़बूत होते संबंधों को प्रभावित कर सकती है. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि अमेरिका अपने सिद्धांतों के लिए खड़ा रहेगा, फिर चाहे कोई भी देश प्रभावित क्यों न हो.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ व्हाइट हाउस में पत्रकारों से सुलिवन ने कहा, “यह हमारे लिए चिंता का विषय है. यह एक ऐसी चीज़ है, जिसे हम गंभीरता से लेते हैं. यह एक ऐसा मामला है जिस पर हम काम करना जारी रखेंगे और किसी देश की परवाह किए बिना हम ऐसा करेंगे.”

उन्होंने कहा, ”इस तरह के काम के लिए आपको कोई विशेष छूट नहीं मिलती है. देश की परवाह किए बिना हम खड़े होंगे और अपने बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा करेंगे. हम कनाडा जैसे सहयोगियों के साथ भी नज़दीकी से काम करेंगे, क्योंकि इस मामले में जांच और राजनयिक प्रक्रिया को कनाडा आगे बढ़ा रहा है.”

जैक सुलिवन ने ये भी कहा कि अमेरिका अपने कनाडाई समकक्षों के साथ लगातार संपर्क में है. उन्होंने कहा, “हम उनके साथ करीबी तौर पर परामर्श कर रहे हैं. हम इस जांच में उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों का समर्थन करते हैं. हम भारत सरकार के भी संपर्क में हैं.”

इसके साथ ही सुलिवन ने कहा कि उन्होंने प्रेस में इस मुद्दे पर अमेरिका और कनाडा के बीच दरार पैदा करने की कोशिशों के कुछ प्रयास देखे हैं. उन्होंने कहा, “मैं इस विचार को दृढ़ता से खारिज करता हूं कि अमेरिका और कनाडा के बीच दरार है. हमें आरोपों को लेकर गहरी चिंता है और हम चाहेंगे कि इस जांच को आगे बढ़ाया जाए और अपराधियों को सज़ा दी जाए.”

कनाडा के समर्थन में अमेरिकी सुर?

हाल ही में सीएनएन से बात करते हुए व्हाइट हाउस के रणनीतिक संचार प्रमुख जॉन कर्बी ने कहा था,” निश्चित रूप से राष्ट्रपति (जो बाइडन) इन गंभीर आरोपों के प्रति सचेत हैं…और वे बहुत गंभीर हैं… और हम इसकी जांच के लिए कनाडा के प्रयासों का समर्थन करते हैं.”

कर्बी ने कहा, “हमारा मानना है कि पूरी तरह से पारदर्शी और व्यापक जांच ही सही दृष्टिकोण है ताकि हम सब जान सकें कि वास्तव में क्या हुआ था और निश्चित रूप से हम भारत को इसमें सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.”

साथ ही व्हाइट हाउस नेशनल सिक्योरिटी काउन्सिल प्रवक्ता एड्रिएन वाटसन ने अमेरिकी अख़बार ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ की एक ख़बर के जवाब में ट्वीट कर कहा, “ऐसी रिपोर्टें बिल्कुल झूठी हैं कि हमने इस पर कनाडा को किसी भी तरह से झिड़क दिया.”

वाटसन ने कहा, “हम इस मुद्दे पर कनाडा के साथ निकटता से समन्वय और परामर्श कर रहे हैं. यह एक गंभीर मामला है और हम कनाडा के चल रहे कानून प्रवर्तन प्रयासों का समर्थन करते हैं. हम भारत सरकार से भी बातचीत कर रहे हैं.”

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मार्गरेट मैकलियोड ने बीबीसी से कहा, “कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का आरोप बेहद संजीदा है. सबसे महत्वपूर्ण है कि मुजरिम न्याय का सामना करें. हमें उम्मीद है कि भारत इस जांच में कनाडा का सहयोग करेगा. हम कनाडा और भारत दोनों की ही बात सुनेंगे. दोनों हमारे क़रीबी साथी हैं. हर देश के साथ हमारे अलग-अलग रिश्ते हैं. तफ़्तीश जारी है तो मैं और तफ़्सील से इस पर बात नहीं करूंगी. सबसे ज़रूरी है कि जांच ठीक से आगे बढ़े और मुजरिम न्याय का सामना करे.”

‘अमेरिका के लिए मुश्किल राह’

सामरिक मसलों के जानकारों की मानें तो अमेरिका की तरफ से जो सार्वजानिक बयान आए हैं उनके अलावा अमेरिका कुछ और कहने की स्थिति में अभी नहीं है. उनके मुताबिक इन बयानों से ऐसा लग सकता है कि अमेरिका भारत का पक्ष नहीं ले रहा लेकिन इस मुद्दे की वजह से दोनों देशों के संबंधों में कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला.

प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष हैं.

उनका कहना है, “ये निश्चित रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के लिए मुश्किल राह होने वाली है क्योंकि उन्होंने भारत के साथ सम्बन्ध बनाने में बहुत निवेश किया है.”

वे कहते हैं, “साथ ही कनाडा अमेरिका का लंबे समय से सहयोगी रहा है और दोनों पार्टियों–बाइडन के डेमोक्रेट और ट्रूडो के उदारवादियों के बीच वैचारिक समानताएं भी हैं. कनाडा का अमेरिका से पुराना रिश्ता है. बाइडन को ये देखना होगा कि भारत को नाराज़ किए बिना वो कितनी दूर तक जा सकते हैं.”

हर्ष पंत के मुताबिक़ ये एक मुद्दा है, जहां भारत इस बात पर ज़ोर दे सकता है कि मामला आतंकवाद से जुड़ा है. वे कहते हैं, “ये साफ़ नहीं है कि बाइडन प्रशासन या कनाडा का कोई भी मित्र देश इंतज़ार करने और ये उम्मीद करने के अलावा क्या कर सकता है कि कनाडा अधिक सबूत लेकर आएगाा. इस समय स्थिति बहुत धुंधली है.”

भारत के कनाडा में वीज़ा सेवाओं को बंद करने के फैसले पर पंत कहते हैं, “ये भारत का अपनी नाराज़गी साफ़तौर पर जताने का एक तरीक़ा है. दोनों देशों के बीच का विवाद पहले ही एक अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ चुका है और इसके बढ़ने की वजह जस्टिन ट्रूडो के सदन में सार्वजनिक रूप से लगाए गए आरोप हैं. भारत को भी निश्चित रूप से ये दिखाना होगा कि वो इस सब को गंभीरता से ले रहा है.”

प्रो. पंत कहते हैं, “सार्वजनिक रूप से बाइडन प्रशासन को कुछ हद तक कनाडा को समर्थन देना होगा लेकिन निजी तौर पर वो कनाडा को बताएंगे कि उन्हें अब तनाव कम करना होगा. शायद यही बाइडन प्रशासन का संदेश होगा. लेकिन सार्वजनिक रूप से यह निश्चित रूप से बाइडन प्रशासन को मुश्किल स्थिति में डाल देगा. इस सब के बीच ये भी दिलचस्प है कि भारत ने बाइडन को गणतंत्र दिवस के लिए आमंत्रित किया है.”

हर्ष पंत कहते हैं कि कुछ मायनों में ट्रूडो ने मामले को व्यक्तिगत बना दिया है. वे कहते हैं, “यह व्यक्तिगत द्वेष जैसा ज़्यादा लगता है. अगर कनाडा की मंशा समस्या का हल करने की थी–अगर उसके पास सबूत था कि ऐसा कुछ हो रहा था- तो ऐसा करने के लिए बैक चैनल या राजनयिक चैनल जैसे कई तरीक़े उपलब्ध थे. उन्होंने सदन में जो कुछ किया है उससे ऐसा लगता है कि वे इस समय भारत पर निशाना साध रहे हैं. ये सबसे गंभीर परिणामों वाले सबसे कमज़ोर बयानों में से एक है.”

‘कनाडा को सबूत साझा करना चाहिए’

पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने अमेरिका सहित कई भारतीय मिशनों में काम किया है.

बीबीसी से उन्होंने कहा, “भूराजनीतिक नज़रिए से कनाडा इस मामले में एक लाइटवेट (कम वज़न वाला) है”.

वे कहते हैं, “बिना किसी सबूत के सिर्फ़ अनुमानों के आधार पर अपने सहयोगियों को मनाना भी आपके लिए नामुमकिन है. उन्हें अंधेरे में नहीं रखा जा सकता. वहीं दूसरी तरफ भारत ने कम से कम 13-14 मामलों में साक्ष्य दिए हैं, 26 से अधिक बार इस मामले को उठाया है. भारत में जब पीएम मोदी ने ट्रूडो से मुलाकात की तो उन्होंने उनसे कहा कि अगर आपके पास कोई सबूत है तो हमारे साथ साझा करें. भारत ने कभी नहीं कहा कि हम सहयोग नहीं करेंगे.”

हालांकि, अब जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि उन्होंने भारत को सबूत उपलब्ध कराए थे.

त्रिगुणायत कहते हैं कि दूसरे देश भी समझते हैं कि भारत एक ऐसा देश है जो पिछले चार दशकों से आतंकवाद से पीड़ित है. वो कहते हैं, “आप अलगाववादी गतिविधियों को अपने देश से होने की अनुमति नहीं दे सकते और फिर दूसरे देश से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह कोई कार्रवाई नहीं करेगा.”

त्रिगुणायत के मुताबिक़ ट्रूडो के इस मामले को सार्वजनिक डोमेन में लाने की वजह उनकी गिरती लोकप्रियता और राजनीतिक मजबूरियां हैं. वे कहते हैं, “ट्रूडो अपने राजनीतिक अस्तित्व की तलाश में हैं इसलिए वह इस समय इसके लिए कुछ भी कुर्बान करने के लिए तैयार हैं. लेकिन मुझे लगता है कि उन्होंने ग़लत दांव खेल दिया है.”

तो क्या इस घटनाक्रम की वजह से भारत और अमेरिका के बीच कोई तनाव पैदा हो सकता है?

त्रिगुणायत कहते हैं कि मौजूदा स्थिति के कारण भारत-अमेरिका संबंधों पर सीधे तौर पर असर पड़ने की संभावना नहीं है. “अमेरिका और ब्रिटेन जैसे जी7 देश कनाडा और भारत के बीच विभाजन को पाटने की कोशिश में भूमिका निभा सकते हैं. लेकिन फिलहाल, मुझे ऐसा होता नहीं दिख रहा है.”

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